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भारत-पाकिस्‍तान की लड़ाई के बीच सुपरपावर चीन के रवैये पर गौर कीजिए

परमाणु युद्ध की यातना झेलने से तो अच्छा है कि इसका खौफ बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए.

राघव बहल
नजरिया
Published:
चीन से पाकिस्तान के समर्थन की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन उसके तेवर कम हुए हैं
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चीन से पाकिस्तान के समर्थन की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन उसके तेवर कम हुए हैं
(फोटो: Arnica Kala/The Quint)

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किसी अच्छे संकट को बेकार नहीं जाने देना चाहिए! इस हफ्ते हमने भारत और पाकिस्तान के बीच खून जमाने वाली ‘डॉग फाइट’ देखी, जो बेकाबू होने पर एटमी जंग में बदल सकती थी. ऐसा होता तो दक्षिण एशिया के आसपास और दुनिया की आधी आबादी का नामो-निशान मिट सकता था. आपको यह बात बढ़ा-चढ़ाकर कही हुई लग रही है, तो मैं उससे इनकार नहीं करूंगा, लेकिन अक्सर मामूली गलत फैसले बड़ी जंग का सबब बनते हैं. वैसे भी परमाणु युद्ध की यातना झेलने से तो अच्छा है कि इसका खौफ बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए.

इतना बड़ा संकट इंसान और देश के रूप में मेच्योर होने का मौका भी लेकर आता है. तो क्या भारत और पाकिस्तान इस खतरनाक मंजर को देखने के बाद परमाणु हथियार रखने वाले समझदार पड़ोसी बनेंगे? इसका जवाब हमारे पास नहीं है, लेकिन जिस चीन से इस मामले में पाकिस्तान के समर्थन की उम्मीद की जा रही थी, उसके तेवर जरूर कम हुए हैं.

भारत के ‘असैन्य’ हमले का समर्थन कर चीन ने चौंकाया

बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के कैंप पर हमला कर सैकड़ों आतंकवादियों को खत्म करने के भारत के दावे के अगले दिन चीन ने यह कहकर सबको हैरान कर दिया कि वह ‘हमारे असैन्य, आतंकवाद विरोधी, संभावित हमले को रोकने के लिए की गई कार्रवाई’ का समर्थन करता है. वह बड़ी आसानी से भारतीय हमले को पाकिस्तान की तरह ‘युद्ध जैसी हरकत’ बता सकता था, लेकिन उसने राजनयिक सूझबूझ दिखाते हुए कहा, '‘भारत ने आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का दावा किया है और आज दुनियाभर में ऐसा हो रहा है.’' इसके अगले दिन भारत की विदेश मंत्री के साथ आमने-सामने की बातचीत के बाद चीन और रूस ने औपचारिक बयान में कहा, '‘आतंकवादी संगठनों का समर्थन और उनका इस्तेमाल राजनीतिक और भू-राजनीतिक हित साधने के लिए नहीं किया जा सकता.’'

इसके बाद चीन के विदेश मंत्री कुछ फिसले और उन्होंने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि पाकिस्तान ने हमेशा आतंकवाद का विरोध किया है.’’ इस बयान से अगर आपको लगता है कि चीन ने आधा कदम पीछे खींच लिया, तो ऐन उसी वक्त उसने वहां से हजारों मील दूर न्यूयॉर्क के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में आधा कदम आगे भी बढ़ाया. वह पुलवामा हमले की आलोचना और इसके पीछे जैश का हाथ होने संबंधी फ्रांस की तरफ से लाए गए प्रस्ताव का समर्थन करने को मान गया.

यह भी सच है कि उसने प्रस्ताव में जैश से पहले ‘पाकिस्तान के’ शब्द को हटाने पर जोर दिया, लेकिन जो चीन 10 साल से मसूद अजहर को ‘संयुक्त राष्ट्र की तरफ से वैश्विक आतंकवादी’ घोषित करवाने के प्रस्ताव का विरोध करता आया था, उसने आगे की तरफ आधा ही सही, लेकिन बड़ा कदम बढ़ाया.

भारत-पाक संबंधों के केंद्र में आने की कोशिश कर रहा चीन

अब तक चीन के साथ हमारे रिश्तों में सबसे बड़ी अड़चन पाकिस्तान को उसका समर्थन रहा है. वह अब तक पाकिस्तान का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर और हथियारों का सप्लायर रहा है. 2013 से 2017 के बीच पाकिस्तान ने जितने हथियार दूसरे मुल्कों से खरीदे हैं, उसमें चीन का योगदान 70 पर्सेंट रहा है, जबकि चीन ने 35 पर्सेंट हथियारों का निर्यात पाकिस्तान को किया. जो देश हमारे सबसे बड़े दुश्मन की जंगी ताकत बढ़ा रहा है, भारत उसे कभी गले नहीं लगा सकता. अमेरिका, भारत का यह मिजाज जानता है.

पाकिस्तान ने अमेरिका से मिले हथियारों का भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई. यहां तक कि इस हफ्ते की ‘डॉग फाइट’ में भी एफ-16 लड़ाकू विमान से भारत के सैन्य ठिकानों पर हमला करके उसने अमेरिकी शर्त का उल्लंघन किया.

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चीन, पाकिस्तान को भारत के खिलाफ मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहता है. 2016 के आखिर में 46 अरब डॉलर में बने सीपीईसी के शुरू होने के बाद यह सोच मजबूत हुई है कि चीन और पाकिस्तान, भारत के खिलाफ मोर्चेबंदी कर रहे हैं. इस कॉरिडोर से चीन की हिंद महासागर और उसके आगे तक आसान पहुंच हो गई है. इससे पाकिस्तान की तबाह अर्थव्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर और इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट्स में नई जान लौटी है और वह चीन के और करीब आ गया है. ऐसी खबरें आई थीं कि जब सीपीईसी से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीन से ट्रकों की पहली खेप सामान लेकर पहुंची, तो इन्हें लेकर अफ्रीका जाने वाले चाइनीज शिप को रुखसत करने पाकिस्तान के आला अधिकारी भी आए थे.

क्या भारत को इस संकट से अच्छे पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए? चीन के पाकिस्तान पर दबाव बनाने से भारत को फायदा हो सकता है. खासतौर पर अगर वह पाकिस्तान पर आतंकवाद को रोकने के लिए प्रेशर बनाता है, जिसकी हम बार-बार मांग करते आए हैं. चीन और भारत दोनों के हित इससे जुड़े हुए हैं.

चीन को डर है कि पाकिस्तान के आतंकी संगठन उसकी धरती पर उइगुर मुसलमानों के विरोध को भड़का रहे हैं और उनकी मदद कर रहे हैं. उसने पाकिस्तान से सीपीईसी की कड़ी सुरक्षा की मांग की है. चीन के कहने पर ही पाकिस्तान पहले इस्लामिक जिहाद यूनियन और ईटीआईएम जैसे संगठनों को प्रतिबंधित और उनके मुखियाओं का प्रत्यर्पण कर चुका है. इस कड़ी का अगला हिस्सा भारत विरोधी आतंकवादी संगठन हो सकते हैं.

उरी में आतंकवादियों के हमले में जब 17 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, तब चीन ने पाकिस्तान के इस दावे का सार्वजनिक तौर पर विरोध किया था कि वह कश्मीर विवाद में उसका समर्थन करेगा (यह चीन का रुख बदलने का पहला संकेत था, जो इस हफ्ते और मजबूत हुआ है.)

उरी हमले के बाद पाकिस्तानी अखबार डॉन में खबर छपी थी कि चीन, भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों को लेकर पाकिस्तान के रुख में बदलाव चाहता है. इसमें कहा गया था कि पाकिस्तानी सेना के पास जैश और लश्कर-ए-तैयबा को प्रतिबंधित करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा. हालांकि, पाकिस्तान ने इस खबर का खंडन किया था.

2017 में हुए ब्रिक्स देशों के सम्मेलन के बाद भी चीन ने पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया था. सम्मेलन के जिस साझा घोषणापत्र पर चीन ने दस्तखत किए थे, उसमें लिखा था कि वह ‘तालिबान, इस्लामिक स्टेट (आईएस)... अलकायदा और उसके सहयोगी संगठनों की हिंसक गतिविधियों के कारण क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर चिंतित है.’ इसमें पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के नाम भी थे.

आतंकवाद के खिलाफ और शांति पहल में चीन की बढ़ती भूमिका

चीन का यह तेवर भविष्य में आतंक-विरोधी अभियान में भारत के साथ तालमेल की संभावना के लिहाज से अच्छी खबर है. भारत और चीन की सेना कई वर्षों से हर साल आतंक-विरोधी अभ्यास करती आई हैं. इसे बढ़ाने के लिए दोनों देशों के आला अधिकारियों की नियमित तौर पर मुलाकात होती रहती है. इसमें दोनों देश एक-दूसरे के साथ खुफिया सूचनाएं तक साझा करते हैं. आतंक-विरोधी अभियान में दोनों देश के बीच तालमेल को और बढ़ाने की गुंजाइश है. खासतौर पर अफगानिस्तान में, जहां भारत और चीन के साझा हित हैं.

वैश्विक सुरक्षा और शांति अभियानों में चीन की बढ़ती भूमिका से भारत को खुश होना चाहिए. वैश्विक शांति अभियान के लिए संयुक्त राष्ट्र के बजट में चीन 7 पर्सेंट का योगदान देता है. चीन की विदेश नीति की जानकार और हांगकांग यूनिवर्सिटी की पॉलिटिकल साइंटिस्ट कॉर्टनी फंग के मुताबिक यह कनाडा और स्पेन से अधिक है.

चीन सिर्फ ऐसी पहल की योजना और नीति बनाने तक सीमित नहीं है, उसने हैती, सूडान, लाइबेरिया और अफगानिस्तान में इसके लिए शांति सेना भी भेजी है. भारत और वैश्विक सुरक्षा के लिए इससे अच्छी बात नहीं हो सकती.

सिर्फ 10 दिनों में...

चीन को भारत-पाकिस्तान संबंधों में और निष्पक्ष भूमिका निभाने का मौका मिलेगा. क्या वह यूएनएससी में फिर से मसूद अजहर को ‘वैश्विक आतंकवादी’ घोषित किए जाने का विरोध करेगा? या वह इसके लिए होने वाली वोटिंग में शामिल न होकर निष्पक्ष और जिम्मेदार सुपरपावर होने का संकेत देगा. इस पर दुनियाभर की नजरें टिकी हैं.

इस आर्टिकल को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
China, the Centrist Superpower in the India-Pakistan Dogfight

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