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'आप ऐसा नहीं कर पाएंगी', 'खेल लड़कियों के लिए नहीं है', 'एक औरत वो नहीं कर सकती जो कोई आदमी कर सकता है' - ये रूढ़िवादी विचारधारा सालों से महिलाओं के लिए एक बड़ी रुकावट बनी रही है. हालांकि, इन सारी निराशाओं और कठिनाइयों के बावजूद हमारे देश में ऐसी कई महिला खिलाड़ी हैं जिन्हें इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. वो इन्हें नजरअंदाज करके अपने सपने और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में प्रयासरत हैं.
भारत की महिला खिलाड़ियों ने हर क्षेत्र में अपनी मेहनत की बदौलत पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है. चाहे बात सानिया मिर्जा की हो या दीपा कर्माकर की. पी वी सिंधु, सायना नेहवाल, दीपिका पल्लीकल जैसी वर्ल्ड क्लास खिलाड़ियों ने विश्व के मानचित्र पर अपनी पहचान बना ली है लेकिन कहीं न कहीं टीम गेम में महिलाओं को अभी तक उनकी जगह नहीं मिल पायी है जितनी की पुरुष टीम और उनके खिलाड़ियों को मिली है. इसकी वजह बहुत हद तक हमारी पुरुष प्रधान मानसिकता ही है.
क्रिकेट चैंपियंस ट्रॉफी 2017 में पाकिस्तान के हाथों भारत को मिली शिकस्त की चोट से अभी तक हम उबर नहीं पा रहे हैं जबकि हमारी महिला टीम ने उसी मुल्क को जबरदस्त तरीके से परास्त किया और वो भी वर्ल्ड कप के मैच में. सबसे हास्यास्पद बात ये कि रविवार का ये मैच देखने वाले लोग भी गिने चुने ही थे - मैदान में भी और टीवी पर भी.
बहुत से लोगों को तो मैच के बारे में भी पता नहीं था. वो तो धन्यवाद कुछ न्यूज चैनल्स का जो समय से जाग गए. नहीं तो कोच अनिल कुंबले और कप्तान विराट कोहली के बीच उभरे विवाद में पूरी की पूरी मीडिया इस कदर डूबी हुई थी की महिला वर्ल्ड कप टूर्नामेंट शुरू होने से पहले हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कप्तान मिताली राज से उन्हीं के बारे में सवाल पूछे गए .
इस बेहतरीन जबाब से एक बात तो साबित हो गयी की आगे से पत्रकार भाई महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को हल्के में लेने की भूल नहीं करेंगे. ये हम सबके लिए एक सबक है. मिताली का ये जबाब सिर्फ एक बंद कमरे तक ही सीमित नहीं रहा, उनकी टीम ने मैदान ए जंग में भी विरोधी टीम की बोलती बंद कर दी. पहले दो मैचों में मेजबान इंग्लैंड और वेस्टइंडीज की टीम को करारी शिकस्त दी.
टीम की बाएं हाथ की सलामी बल्लेबाज, स्मृति मंधाना भले ही दिखने में मासूम लगती हों, लेकिन जब उनका खुंखार बल्ला चलता है तो विपक्षी टीम के गेंदबाजों की लाइन और लेंथ बिगड़ जाती है. टीम का रन रेट बढ़ाने में वो काफी कारगर हैं. इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के खिलाफ उन्होंने 90 और नाबाद 106 रन बनाए थे.
इसके बाद अपने चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान पर शानदार जीत हासिल करके भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने ये भी साबित कर दिया कि कई सारी मुश्किलों के बावजूद वे पुरुषों से अच्छा कर सकती हैं.
महिला टीम के लिए सबसे बड़ी बात ये रही कि विराट कोहली की अगुवाई वाली टीम के वेस्टइंडीज से हारने के बाद कोच संजय बांगड़ को ये कहना पड़ा कि पुरुष टीम भारतीय महिला टीम से प्रेरणा ले रही है जो आईसीसी महिला विश्व कप में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं.
फिर भी सवाल यही कि क्या हम क्रिकेट के चाहने वालों को ये पता है कि पूनम राउत और दीप्ति शर्मा ने इस साल आयरलैंड के खिलाफ 300 रनों की साझेदारी कर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा दिया है- शायद नहीं!
घूम फिर कर बात वही आती है की हम कब अपनी आधी आबादी को उनका असली हक देना शुरू करेंगे. आज भी ये महिलाएं ना सिर्फ खेल के मैदान में बल्कि मैदान के बाहर अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं. जरूरत है हमें अपनी सोच और मानसिकता बदलने की.
(लेखक करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में सक्रिय हैं और फिलहाल टेन स्पोर्ट्स से जुड़े हुए हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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