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ये आम बात है कि ड्रग्स आसानी से उपलब्ध नहीं हैं और अवैध हैं. हालांकि, नशीली दवाओं का इस्तेमाल भारत में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जो परिवारों और समुदायों को प्रभावित करती है. हर साल नशीली दवाओं का सेवन गंभीर बीमारियों या चोटों के कारण लाखों युवाओं की जान ले लेता है. अक्सर, ड्रग एडिक्शन की इस दुनिया में घुसने के लिए तंबाकू कानूनों को पासपोर्ट के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. दूसरे शब्दों में, तंबाकू का सेवन नशीली दवाओं के उपयोग की संभावना और कितनी बार इस्तेमाल किया गया, दोनों के लिए एक भविष्यवाणी है.
9.5 करोड़ धूम्रपान करने वालों का घर, भारत दुनिया में तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है. भारत में हर साल 13 लाख से ज्यादा लोगों की तंबाकू के सेवन से मौत हो जाती है. ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे के मुताबिक, 13-15 आयु वर्ग के भारतीय किशोरों में से पांचवां हिस्सा तंबाकू उत्पादों का इस्तेमाल करता है. 38% सिगरेट पीने वाले, 47% बीड़ी पीने वाले और 52% धूम्रपान रहित तंबाकू उपयोगकर्ताओं को 10 साल की उम्र से पहले ही इसकी आदत पड़ गई थी.
अगर मैं आपको ये भी बता दूं कि तंबाकू भारत में नशीली दवाओं के इस्तेमाल में तंबाकू एक बड़ा फैक्टर है तो? सबूत कहते हैं कि नशीली दवाओं के इस्तेमाल का सामान्य पैटर्न, चबाने वाले तंबाकू (गुटका और खैनी) में मिलावट के रूप में दवाओं के साथ मिलाया जाता है, इसके बाद बीड़ी और सिगरेट का सेवन किया जाता है.
ये साफ है कि तंबाकू का सेवन अवैध नशीली दवाओं के इस्तेमाल का प्रवेश द्वार है, क्योंकि इसमें निकोटीन होता है, जो लत पैदा करने का काम करता है. अमेरिकन कैंसर सोसायटी के मुताबिक, जो कोई भी तंबाकू का सेवन शुरू करता है, वो निकोटीन का आदी हो सकता है. अध्ययनों से पता चलता है कि किशोरावस्था के दौरान धूम्रपान की आदत बनने की सबसे ज्यादा संभावना है. धूम्रपान करते समय आपकी उम्र जितनी कम होती है, आपके निकोटीन के आदी होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है. तंबाकू से शख्स सिगार और ई-सिगरेट जैसे दूसरे निकोटीन प्रोडक्ट्स की ओर बढ़ता है और फिर मादक पदार्थों की लत की काली दुनिया में हमेशा के लिए खो जाता है.
जितनी जल्दी कोई तंबाकू का इस्तेमाल करता है, उसकी कोकीन, हेरोइन या दूसरी अवैध दवाओं के साथ प्रयोग करने की उतनी ही संभावना होती है. जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक अध्ययन से पता चला है कि जो लोग 15 साल की उम्र से पहले सिगरेट पीते थे, उनमें गैर-कानूनी ड्रग्स का इस्तेमाल करने की संभावना, सिगरेट न पीने वालों की तुलना में 80 गुना ज्यादा थी.
भारत दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी का घर है. किशोरावस्था एक ऐसा समय है, जो न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि पूरे देश के लिए किसी के उज्ज्वल भविष्य के लिए मंच तैयार कर सकता है. हालांकि, ये एक ऐसा समय भी है जब मन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है और एक्सपेरिमेंट करने के लिए तैयार होता है. इसी उम्र में युवा दोस्तों के दबाव में पड़कर तंबाकू और नशे की चपेट में आ जाता है.
Drugabuse.com के मुताबिक, युवाओं के ड्रग्स, हुक्का, शीशा, ई-सिगरेट या बाकी चीजों के साथ एक्सपेरिमेंट करने के पीछे बोरियत, डिप्रेशन, जिज्ञासा, वजन घटने, तनाव, कम आत्मसम्मान, साथियों के दबाव या जेनेटिक्स जैसे कारण होते हैं. नशीली दवाओं के सेवन के चलते भारत अपनी एक महत्वपूर्ण उत्पादक आबादी को खोने वाला देश बन रहा है. अध्ययनों से पता चलता है कि नशीली दवाओं के सेवन से दिमाग में याद रखने की क्षमता कम होती है और काम करते समय दिमाग कम सक्रिय होता है. मैरीउआना और नशीली दवाओं का इस्तेमाल दिमाग के विकास और लंबी याद्दाश्त के लिए हानिकारक है, साथ ही ये फैसला लेने और को-ऑर्डिनेशन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है.
एक कैंसर सर्जन के रूप में, मैं लगभग हर रोज देखता हूं कि कैसे युवा रोगी और उनके परिवार वित्तीय बोझ और इसके साथ आने वाली अन्य चुनौतियों से गुजरते हैं. उन्हें बीमारी और मौत के भारी दर्द से गुजरना पड़ता है. तंबाकू के खिलाफ निरंतर लड़ाई नशीले पदार्थों के खिलाफ लड़ाई में हमारा लंबा साथ दे सकती है.
इसके अलावा, ये सुनिश्चित करना कि हमारी युवा आबादी जो पहले से ही प्रभावित है, सिल्वर स्क्रीन और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर तंबाकू के सकारात्मक चित्रण के साथ-साथ सरोगेट विज्ञापनों से आकर्षित न हो. साक्ष्य-आधारित और निरंतर बातचीत, जागरूकता कार्यक्रम और तंबाकू उत्पादों पर भारी टैक्स, तंबाकू के उपयोग को कम करने में महत्वपूर्ण हो सकते हैं. इससे अनगिनत कीमती जीवन बचाए जा सकते हैं.
1987 में, यूनाइटेड नेशन्स जनरल एसेंबली ने 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ विश्व ड्रग दिवस (World Drug Day) के रूप में मनाने का फैसला किया. भारत सरकार ने भी नशा-मुक्ति अभियान शुरू किया, जिसका टारगेट नशीले पदार्थों के सेवन से मुक्त एक अलग दुनिया बनाने में सहयोग करना है.
भारत सरकार का अभियान संयुक्त राष्ट्र के मिशन जैसा ही है. ड्रग्स पर कंट्रोल पाने के लिए इसके उपयोग के खतरनाक नतीजों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि जागरुकता फैलाने के बाद ही ड्रग्स जैसी समस्या को दूर किया जा सकता है. सामूहिक और लगातार प्रयासों के जरिए ही हम ड्रग-फ्री इंडिया के टारगेट को हासिल कर सकते हैं.
(लेखक हेड और नेक ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, और तंबाकू नियंत्रण पर कर्नाटक सरकार की उच्च समिति के सदस्य भी हैं. इस लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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