मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019जनसंख्या नियंत्रण की धुन में कहीं हम भी चीन की तरह पछताने न लगें

जनसंख्या नियंत्रण की धुन में कहीं हम भी चीन की तरह पछताने न लगें

आम धारणा है कि मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं,हिन्दू कम.क्या जनसंख्या नियंत्रण में मुसलमानों का योगदान नहीं है?

प्रेम कुमार
नजरिया
Updated:
i
null
null

advertisement

बीते साल स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत बतायी थी. एक साल बाद उनसे अपेक्षा की जा रही है कि इस पर वो पहल करेंगे. ठीक उसी तरह जैसे तीन तलाक और आर्टिकल 370 को खत्म करने के लिए उन्होंने किया है. मगर, यह बात समझने की है कि वास्तव में क्या देश को जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत है?

जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत पर विचार से पहले उस भाषण को याद करना जरूरी है जो नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को लालकिले से दिया था-

“हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक संकट पैदा करता है. लेकिन ये भी मानना होगा कि देश में एक जागरूक वर्ग भी है, जो इस बात को अच्छे से समझता है. ये वर्ग इससे होने वाली समस्याओं को समझते हुए अपने परिवार को सीमित रखता है. ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं. ये लोग एक तरह से देशभक्ति का ही प्रदर्शन करते हैं.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो बातें स्पष्ट तौर पर कही थी.

  • भारत में जनसंख्या का विस्फोट हो रहा है जो भावी पीढ़ी के लिए संकट साबित होगा.
  • देश में एक वर्ग है जो जागरूक है और परिवार को सीमित रखता है. वे देशभक्त हैं.

क्या भारत में वास्तव में जनसंख्या का विस्फोट हो रहा है? अगर हां, तो निश्चित रूप से देश की यह प्राथमिकता होनी चाहिए कि इस पर नियंत्रण किया जाए. मगर, इस निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले हमें विश्व बैंक के जनसंख्या संबंधी आंकड़ों से तीन प्रमुख बातों पर गौर करना चाहिए-

  • भारत में जनसंख्या में वृद्धि की दर बढ़ नहीं रही है, घट रही है. 1990 में यह दर 2.07 फीसदी थी जबकि 2018 में यह 1.02 फीसदी के स्तर पर आ चुकी है.
  • भारत में जनसंख्या वृद्धि दर विश्व में जनसंख्या वृद्धि दर से कम है. 2018 में दुनिया में जनसंख्या वृद्धि दर 1.105% थी, तो भारत में 1.02 प्रतिशत.
  • फर्टिलिटी रेट भी भारत में दुनिया के मुकाबले कम है. 2018 में भारत में नेशनल फर्टिलिटी रेट 2.22 थी, जबकि दुनिया में 2.41.

ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में जनसंख्या विस्फोट जैसी स्थिति नहीं है. जनसंख्या बढ़ रही है लेकिन इसकी गति लगातार नियंत्रित होती चली गयी है. सच यह है कि जनसंख्या का नियंत्रण हिन्दुस्तान ने कर दिखाया है.

दुनिया के स्तर पर 2018 के आंकड़े को देखें तो एक महिला अपने जीवन में 2.41 बच्चे को जन्म दे रही है. 1961 में महिलाओं की प्रजनन दर 5 थी. वहीं भारत में 1961 में महिलाएं औसतन 5.9 बच्चों को अपने जीवन काल में जन्म दे रही थीं जो संख्या 2018 में 2.22 हो चुकी है. यह उपलब्धि बड़ी है और पिछली सरकारों ने जनसंख्या को नियंत्रित करने की जो नीतियां अपनाईं, उसने अपना असर दिखाया है.

आपातकाल के समय 1975 में हिन्दुस्तान में एक महिला औसतन अपने जीवनकाल में 5.19 बच्चों को जन्म दे रही थी. कठोर जनसंख्या नीति के कारण 1978 आते-आते यह संख्या 5 से कम हो गयी, तो 1991 में एक महिला औसतन अपने जीवन में 4 से कम बच्चों को जन्म दे रही थी. 2001 में यह औसत 3.24 पर आ गया, तो 2011 में यह घटकर हो गया 2.53. और, अब यह 2018 में 2.22 के स्तर पर आ चुका है.

मतलब साफ है कि जनसंख्या में वृद्धि दर रोकने की गति भारत में संतोषजनक है. ऐसी कोई बात नहीं हुई है जिससे नियंत्रण की तुरंत आवश्यकता महसूस हो रही हो. बीते छह साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनियाभर में इस बात का डंका पीटा है कि भारत के पास सबसे बड़ा वर्कफोर्स यानी कार्यबल है. वे जनसंख्या को अपनी ताकत बता रहे थे. यह ताकत आज भी देश के साथ है और इसमें कोई कमी नहीं आयी है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
वहीं, यह भी सच है कि हिन्दुस्तान 2024 तक चीन को जनसंख्या के मामले में पीछे छोड़ देगा. मगर, इस मामले में चीन स्पर्धा छोड़ने वाला हो, ऐसा भी नहीं है. चीन को जनसंख्या नियंत्रण की नीति को उदार बनाना पड़ा है. एक बच्चे की जगह दो बच्चों की नीति पर चीन चल रहा है. आखिर चीन को ऐसा क्यों करना पड़ा?

अगर हम इस बात को समझ लेते हैं तो घटती हुई जनसंख्या वृद्धि दर की स्थिति में हम ऐसे कदम उठाने से बचेंगे, जिसके दुष्परिणाम चीन की तरह भारत को भी भुगतने पड़ सकते हैं. प्रश्न उठता है कि चीन में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या और कार्यबल पर बढ़ता दबाव है, तो भारत में क्या ऐसा नहीं हो रहा है?

विकी इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार चीन में डिपेन्डेन्सी रेशियो यानी निर्भरता का अनुपात 37.7 है. इसका मतलब यह हुआ कि 62.3 फीसदी आबादी को 37.7 फीसदी आबादी का भरण-पोषण करना पड़ रहा है. इसमें बच्चे और बुजुर्ग दोनों शामिल हैं. सिर्फ बुजुर्गों का निर्भरता अनुपात देखें तो चीन में यह 13.3 है. वहीं भारत की बात करें तो भारत में कुल निर्भरता का अनुपात 52.2 है और बुजुर्गों के लिए यह अनुपात 8.6 है.

साफ है कि चीन में बुजुर्गों की तादाद भारत से कहीं अधिक है जो कार्यबल पर निर्भर करते हैं. इसी चिन्ता में चीन ने एक दंपती के लिए 1 बच्चे के बजाए 2 बच्चों की नीति को अपनाया है. इससे 18 साल बाद से बुजुर्गों के निर्भरता अनुपात में सुधार आना शुरू हो जाएगा.

चीन को जनसंख्या नीति में बदलाव इसलिए करना पड़ा क्योंकि बुजुर्ग और नौजवानों के बीच संख्या संतुलन गड़बड़ा रहा था. 2015 में 14 प्रतिशत बुजुर्गों का भार श्रमबल उठा रहा था जिसके बढ़ते जाने की आशंका ने चीन को बेचैन कर दिया. नयी नीति अपनाते ही 2016 में 7.9 प्रतिशत अधिक बच्चों का जन्म हुआ. संख्या में यह 13 लाख 10 हजार बच्चे हैं. हालांकि कुल बच्चों का जन्म 1 करोड़ 78 लाख 60 हजार रहा था. इनमें से 45 प्रतिशत बच्चे उस दंपती के थे जिनके पास पहले से एक संतान थी.

चीन ने जब एक बच्चे की नीति लागू की, तब वहां जनसंख्या का नियंत्रण करना अति आवश्यक हो गया था.

कल्पना कीजिए कि 1957 में चीन में एक महिला औसतन 6.21 बच्चे को जन्म दे रही थी. 1963 में यह 7.41 पर जा पहुंचा. आखिरकार चीन ने 1979 में एक बच्चे की नीति को लागू किया. हालांकि 1977 में प्रति महिला 3 बच्चे की जन्मदर का स्तर आ चुका था. अगले 16 साल में यानी 1993 में जन्मदर 2 बच्चा प्रति महिला के स्तर से भी नीचे आ गया. सन 2000 में यह दर 1.5 के स्तर पर पहुंच गया. 2016 में दो बच्चे की नीति अपनाने के बाद से प्रति महिला बच्चों की जन्मदर में 1.62 से 1.64 तक क्रमश: बढ़ोतरी दिख रही है. चीन इसे 2.1 के स्तर तक लाना चाहता है. यह वो स्तर है जिससे जनसंख्या संतुलित तरीके से आगे बढ़ती है. कहने का अर्थ ये है कि निर्भर रहने वाली बुजुर्गों की आबादी नियंत्रित होती चली जाती है.

अब बात समझ में आ रही होगी कि जनसंख्या की कोई विस्फोटक स्थिति भारत में फिलहाल नहीं है. जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर नियंत्रित है. यहां बुजुर्गों की निर्भरता का अनुपात बेहद नियंत्रित है. ऐसी स्थिति में सवाल ये उठता है कि आखिर वो कौन सी बात है कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता दे रही है?

भारत में आम धारणा है कि मुसलमान अधिक बच्चे पैदा करते हैं, हिन्दू कम. मगर, प्रश्न यह है कि क्या जनसंख्या नियंत्रण में जो कामयाबी भारत को मिली है उसमें मुसलमानों का कोई योगदान नहीं है? इस सवाल का उत्तर भी आंकड़ों से समझें तो ज्यादा बेहतर होगा.

2011 में हिन्दुओ की जनसंख्या में वृद्धि की दर 16.76 प्रतिशत थी. 2001 में यही दर 19.92 फीसदी थी. इस तरह 10 साल में हिन्दुओं की जनसंख्या में 3.16 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी थी.

2001 में मुसलमानों की आबादी 29.5 फीसदी की दर से बढ़ी थी जो 2011 में गिरकर 24.6 फीसदी हो गयी. यानी मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर में गिरावट 4.9 प्रतिशत की रही.

ये आंकड़े बताते हैं कि हिन्दुओं के मुकाबले मुसलमानों में जनसंख्या बढ़ोतरी की दर में तेज गिरावट हुई. इसके बावजूद मुसलमानों की जनसंख्या में वृद्धि की दर हिन्दुओं के मुकाबले ज्यादा है- यह भी सच है.

हालांकि कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी का ख्याल रखेंगे, तो ये भी बैलेंस हो जाएगा. ये आंकड़े चीख-चीख कर कह रहे हैं कि जनसंख्या नियंत्रण में मुसलमानों का योगदान प्रतिशत में ज्यादा है.

दुर्भाग्य से जब सियासत होती है तो इन तथ्यों को दबा दिया जाता है. सिर्फ ये बताया जाता है कि मुसलमानों की आबादी हिन्दुओं के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ रही है. जनसंख्या नियंत्रण की नीति के बहाने निशाने पर मुसलमान रहते हैं. इससे अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की सियासत को बढ़ावा मिलता है. राजनीति का यह अहम पहलू हो गया है. इसी वजह से नयी जनसंख्या नीति की आहट को सुनकर राजनीति तेज हो गयी है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 13 Aug 2020,02:29 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT