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ईद-अल-अधा के मौके पर हरियाणा पुलिस इलाकों में जा जाकर बिरयानी में बीफ का पता लगा रही है, मुमकिन है कि ये सब राज्य सरकार के कहने पर किया जा रहा है. लेकिन राज्य के मेवात इलाके में पुलिस के इस तरह से व्यंजनों में बीफ के निरीक्षण के चलते एक दुर्भाग्यपूर्ण विवाद भी हुआ, जिसका अंत बहुत ही दुखद रहा.
खबरों के अनुसार 24 और 25 अगस्त 2016 को दिंगेड़हेड़ी गांव में दो लोगों की हत्या कर दी गई, दो को बुरी तरह से घायल किया गया और दो महिलाओं का गोरक्षक समिति के कार्यकर्ताओं ने बलात्कार किया. खबरों के अनुसार, पुलिस भी इस मामले पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है. अगर ये सभी बातें सही हैं तो इससे बीजेपी सरकार की प्राथमिकिताओं की विकृत सोच का पता चलता है.
ट्विटर यूजर्स ने हरियाणा में हो रही बीफ की खोज को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. ट्विटर यूजर ने लिखा है, ‘हरियाणा सरकार बिरयानी में बीफ खोजने के लिए कितनी मेहनत कर रही है. जाहिर है ऐसी प्राथमिकताओं के साथ वहां महिलाओं का ये हाल है.’
इसी मामले को लेकर दूसरी ट्वविटर यूजर ने लिखा है, ‘अखलाक के मामले में जो भी हुआ उसे देखते हुए तो ऐसा लगता है कि हरियाणा सरकार उन दो महिलाओं को गाय खाने के लिए गिरफ्तार कर सकती है.’
इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चुप्पी इसलिए भी ज्यादा अखर रही है क्योंकि अभी पिछले महीने ही उन्होंने टाउनहॉल सभा में इन गोरक्षकों पर अपना मत रखा था. उन्होंने कहा था, ‘मुझे इस बात पर गुस्सा आता है कि लोग गोरक्षा के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे हैं. इसमें से अधिकतर असामाजिक तत्व हैं जिन्होंने गोरक्षा का मुखौटा लगा रखा है.’
उन्होंने इस सभा में आगे कहा था, ‘मैं राज्य सरकारों से निवेदन करता हूं कि वो ऐसे 80 प्रतिशत लोगों की जानकारी इकट्ठा करे जो इस तरह के असामाजिक कार्यों में लगे हुए हैं जिसकी हर समाज निंदा ही करेगा.’
आसान शब्दों में कहें तो प्रधानमंत्री का मतलब था कि 80 प्रतिशत गोरक्षक गुंडे हैं. तो मोदीजी आपने जिन गुंडों की बात की थी उन्होंने दो लोगों को बेरहमी से मार दिया, दो को घायल किया और दिल्ली में आपके घर से 50 किलोमीटर दूर, दो औरतों का बलात्कार किया और आपने इस पर एक ट्वीट तक नहीं किया.
ये बर्बर और जघन्य अपराध जो भारत की मूल विचारधारा पर हमला करती है जो कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार के तौर पर दिया गया है. इस अधिकार की रक्षा करने की आपने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनते वक्त कसम खाई थी. लेकिन इस पर मुखर कार्रवाई की बात तो दूर की कौड़ी दिख रही है.
हरियाणा के गोवंश संरक्षण और गोसंवर्धन कानून 2015 की संवैधानिकता की अभी पड़ताल होनी बाकी है. अगर किसी कोर्ट ने इसके पक्ष में कोई फैसला सुना भी दिया लेकिन भारत की अन्य अदालतें इस कानून से कैसे तालमेल बिठाएंगी?
उदाहरण के तौर पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसी साल 7 मई को कहा था कि आयात किए गए बीफ पर प्रतिबंध लगाना ‘एकान्तता के अधिकार का उल्लंघन है जो हमारा मौलिक अधिकार है.’ बॉम्बे हाईकोर्ट ने आगे भी कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार सरकार लोगों के घरों में गैरजरूरी ताकझांक भी नहीं कर सकती. महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम के अनुसार जिस व्यक्ति के पास से बीफ बरामद होगा उसे अपनी बेगुनाही का सबूत देना होगा, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस कानून से इस प्रावधान को भी हटा दिया है. कोर्ट का कहना था कि ये कानून भी व्यक्ति के मूल अधिकार का उल्लंघन है.
इस वजह से हरियाणा पुलिस जो कर रही है वो और भी ज्यादा अजीब है, उनकी कहानी मेल ही नहीं खाती है. लेकिन पुलिस कथित गोहत्या की जांच कर उसके दोषियों को पकड़ने की जगह बिरयानी सूंघती फिर रही है. जाहिर है वो ऐसा कर पहले से डरे हुए अल्पसंख्यक समाज में और भी डर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.
एक ट्विटर यूजर ने हरियाणा सरकार पर बीफ मुद्दे को लेकर तंज भी कसा है. उन्होंने लिखा है, ‘अगर आपको बीफ खाना है तो आप हरियाणा में न आएंः हरियाणा स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज.’
ऐसे में ये साफ है कि ये केवल बीफ का मामला नहीं है बल्कि बहुसंख्यकवाद का है. जब से केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी है तभी से अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुसलमानों को नपी तुली तरह से बुरा दिखाने की कोशिश की जा रही है. चाहे घर वापसी हो या लव जिहाद सभी में अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक दिखाने की कोशिश की गई, साथ ही सुहावने शब्दों में राष्ट्रवाद को भी बढ़ावा दिया गया. बीफ बैन के जरिए सरकार देश पर विकृत राइट विंग का ठप्पा लगाना चाहती है.
एक निंदक राजनीतिक पक्ष भी है जिसमें आरएसएस-बीजेपी विश्वास करती है और वो ये कि ध्रुवीकरण से चुनावों में फायदा होता है. बिहार चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद इखलाक की हत्या के बाद ये कहा गया कि उसके पास बीफ था.
इसके बाद बीजेपी ने जिस तरह से अखबारों के पहले पन्ने पर गाय के गुणगान में विज्ञापन निकाले वो अपने फायदे के लिए लोगों को नुकसान पहुंचाने का सबसे क्रूर उदाहरण था. लेकिन बिहार की जनता ने उन्हें नकार दिया लेकिन फिर भी वो अभी तक अपना सबक नहीं सीख पाए हैं.
मेवात मामले को लेकर एक ट्विटर यूजर ने लिखा है, ‘ गौरक्षक आमतौर पर डरपोक लोगों का एक झुंड है जो बहुमत में अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करते हैं. लेकिन मेवात में उन्होंने ऐसा नहीं किया. जब गौरक्षकों की संख्या कम होती है तब क्या वो ऐसी हरकत कर पाते हैं? वो मेवात जैसी जगह जहां 75 प्रतिशत मुस्लिम रहते हैं वहां उन्होंने ऐसा कैसे कर दिया?’
पंजाब के मलेरकोटला में अभी हाल में कुरान को फाड़ने की घटनाएं सामने आई थीं. इस इलाके में अधिकतर वक्त शांति का ही माहौल रहता है, इस इलाके की अधिकतर जगहों पर बंटवारे के दौरान भी शांति का ही माहौल था जब पूरा पंजाब सांप्रदायिकता की आग में जल रहा था.
ऐसे में जो भी हरियाणा में, उत्तर प्रदेश और पंजाब में हो रहा है उससे साफ है कि समाज को बांटने की कोशिश की जा रही है. चूंकि पंजाब में मुस्लिमों की संख्या बहुत कम है ऐसे में वहां उनसे भाजपा की चुनाव रणनीति पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा.
लेकिन हरियाणा में ‘मोहम्मद इखलाक पार्ट 2’ दोहराया जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि इसका असर उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों पर हो. ये वैसा ही है जैसे उत्तर प्रदेश में हुए दादरी कांड को बिहार चुनावों के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की गई थी. लेकिन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक बात नहीं समझ पा रहे हैं. ये ऐसा ही है जैसा कि हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान हुआ था.
इस आंदोलन के दौरान कई बलात्कार की घटनाएं सामने आई थीं जिनकी सुनवाई पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चल रही है, जिससे गुड़गांव का नाम भी खराब हुआ था. इससे पूरे विश्व में एक ऐसा संकेत जा रहा है कि राष्ट्रीय राजधानी से सटे इलाकों में कहीं भी कभी भी अव्यवस्था और अराजकता फैल सकती है.
नरेंद्र मोदी को ये याद रखना चाहिए कि पैसा सबसे बड़ा डरपोक होता है और वो अपने लिए सबसे सुरक्षित जगह ढूंढ ही लेता है. वो ऐसी जगह नहीं जाता जहां अव्यवस्था और अराजकता होती है. आप या तो अपनी बीफ पर सतर्कता बरत सकते हैं या फिर विदेशी निवेश पर ध्यान दे सकते हैं. आप दोनों एक साथ नहीं कर सकते.
(लेखक के निजी विचार हैं.)
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Published: 13 Sep 2016,02:42 PM IST