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राजनीति और इसके खिलाड़ियों के चरित्र को समझने के बाद विशाल ददलानी टूटे हुए दिखाई दे रहे हैं. कल तक आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के अटल समर्थक रहे विशाल ददलानी ने राजनीति को अलविदा कह दिया है.
अरविंद केजरीवाल जिसको पसंद नहीं करते थे ,मसलन नरेंद्र मोदी हों या आरएसएस, सभी पर सोशल मीडिया में बिना लाग लपेट के ददलानी ने हमले किए.
लेकिन शायद ददलानी केजरीवाल की अंधभक्ति में इतने मशगूल थे कि उनके इतिहास को नजरअंदाज कर गए. केजरीवाल लोगों को हर तरफ से उपयोग करने के बाद छोड़ देने के लिए जाने जाते हैं. केजरीवाल को देश में चलने वाली ‘खाया, चबाया और थूक दिया’ राजनीति का सटीक उदाहरण माना जा सकता है.
अन्ना हजारे, जो उस समय तक महाराष्ट्र में ही अपने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के लिए जाने जाते थे, को केजरीवाल ने बहुत सोच-समझकर अपनी देशव्यापी आंदोलन के लिए चुना. अन्ना हजारे के लिए annahazaresays@wordpress.com पर लिखने वाले पहले ब्लॉगर राजू पारूलेकर के मुताबिक, उस समय अन्ना, अरविंद के लिए सबसे उपयुक्त इंसान थे.
केजरीवाल अन्ना को मनाने में कामयाब हुए और आंदोलन खड़ा करने में भी. यह आंदोलन जयप्रकाश नारायण के इमरजेंसी के दौरान चलाए गए आंदोलन से किसी भी मामले में कम नहीं था. लेकिन जल्द ही अन्ना, आंदोलन के राजनीतिकरण से परेशानी महसूस करने लगे. इसके बाद अन्ना का किरदार धीरे-धीरे छोटा कर उन्हें भी राह से हटा दिया गया.
अन्ना के जाने के बाद किरण बेदी और अरविंदक केजरीवाल में उनके उत्तराधिकारी के सवाल को लेकर जंग छिड़ गई. किरण बेदी हार गईं, केजरीवाल जीत गए.
इसके बाद नंबर आया शांति भूषण और उनके बेटे प्रशांत भूषण का. यहां गौर करने वाली बात है कि जब आम आदमी पार्टी बनाई जा रही थी, तब शांति भूषण ने अपनी जेब से पार्टी को एक करोड़ रुपये दिए थे. उन्ही शांति भूषण को पार्टी से निकालने के अपने फैसले पर केजरीवाल ने न तो दोबारा सोचा, न ही थोड़ी-बहुत दया दिखाई.
विशाल ददलानी के केस के जरिए केजरीवाल की ‘यूज एंड थ्रो’ वाली राजनीति का एक और उदाहरण सामने आया है. उनकी पार्टी गुजरात में अपनी जमीन तलाश रही है, जहां जैन मतदाता बड़ी संख्या में है. ऐसे में उन्हें नाराज करना केजरीवाल को गंवारा नहीं हो सकता.
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Published: 29 Aug 2016,02:26 PM IST