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आज संपूर्ण विश्व कोविड-19 सर्वव्यापी महामारी से जूझ रहा है. सभी देश इस सर्वव्यापी महामारी से निकलने और इसका उपचार खोजने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक इस महामारी पर कोई काबू नहीं पाया जा सका है. कुल मिलाकर देखा जाए तो कोई भी ऐसा देश नहीं जो इस महामारी की मार नहीं झेल रहा हो और जिसको कोई नुकसान नहीं हुआ हो. लेकिन ये विषम परिस्थितियां इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी लिकुड पार्टी के लिए वरदान साबित हुई हैं.
इजरायल में संसदीय लोकतंत्र है. यहां आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से हर 4 वर्ष के बाद चुनाव होता है. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सीधा मतलब यहां यह है कि लोग मतदान किसी व्यक्ति को न करके राजनीतिक दल को करते है. यहां पर प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया होता है और बहु-दलीय व्यवस्था पायी जाती है.
बहु-दलीय व्यवस्था होने से यहां पर राजनितिक दलों में काफी गहरा मतभेद पाया जाता है कोई भी दल पूर्ण बहुमत की स्थिति में नहीं पहुंच पाता है, इसलिए वहां पर मध्यावधि चुनाव होना आम बात है.
इजरायलमें 2009 से लिकुड पार्टी के नेता बेंजामिन नेतन्याहू प्रधानमंत्री पद पर रहे हैं. इससे पहले भी वो 1996 से 1999 तक इजरायल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. लगभग 15 साल तक इजरायल के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने की वजह से नेतन्याहू इजरायल में सबसे लम्बे समय तक प्रधानमंत्री बने रहने वाले व्यक्ति भी हैं.
यही वजह रही की बैनी गांट्ज की पार्टी ने इस चुनाव में बहुत कम समय में ही 35 सीटें प्राप्त कर लीं, जो की नेतन्याहू की पार्टी के बराबर थी. हालांकि नेतन्याहू की पार्टी लिकुड, की कम सीट आने की एक मुख्य वजह ये भी रही की नेतन्याहू काफी लंबे समय से इजरायल के प्रधानमंत्री पद पर थे, जिसकी वजह से उनके खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर भी थी. अप्रैल 2019 के चुनावों का नतीजा ये रहा कि दोनों पार्टियों को 35-35 सीटें मिली. कोई भी पार्टी बहुमत के लिए जरूरी 60 सीटें प्राप्त नहीं कर सकी और ना कोई गठबंधन सरकार बना सका.
इसके बाद इजरायल के राष्ट्रपति ने 17 सितंबर 2019 को पुन: चुनाव कराने की घोषणा कर दी. इस बार लिकुड पार्टी को 32 सीटें और ब्लू एंड वाइट पार्टी को 33 सीटें मिलीं. इस चुनाव में भी एक बार फिर कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना सकी और राष्ट्रपति ने फिर नए चुनाव कि घोषणा कर दी. 2 मार्च 2020 को फिर चुनाव हुए, जिसमें लिकुड को 36 सीटें और ब्लू एंड वाइट को 33 सीटें मिली. इस बार नेतन्याहू को लगा कि वो इस बार सरकार बना लेंगे, लेकिन नहीं बना पाए. राजनीतिक अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए 16 अप्रैल 2020 को इजरायल के राष्ट्रपति ने संसद के सभी सदस्यों से कह दिया कि या तो वो सरकार बना लें अन्यथा चौथी बार चुनाव होंगे.
इजरायल में जारी इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच दुनिया और इजरायल में कोविड -19 का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा था. ऐसी परिस्थियों में बैनी गांट्ज ने संकेत दिए कि देश की भलाई के लिए वो नेतन्याहू के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं और देखते ही देखते 20 अप्रैल 2020 को बैनी गांट्ज और नेतन्याहू के बीच एक समझौता होता है, जिसमें दोनों मिलकर सरकार बनाने और 18-18 महीने के लिए प्रधानमंत्री का पद संभालने का निर्णय लेते हैं.
इस राजनीतिक उठा-पटक के बीच कुछ विशेष चीजें उभरकर सामने आयी हैं, जैसे कि इस समझौते के बाद में ब्लू एंड वाइट पार्टी की समर्थक पार्टियां और उनके समर्थक लोगों का बहुत ज्याद नाराज होना क्योंकि सरकार बनाने से पूर्व बैनी गांट्ज ने जिस पार्टी के नेता की इतनी ज्यादा आलोचना की थी. आज उन्होंने उसी के साथ हाथ मिला लिया है. इसके अलावा राजनीति में यह देख जाता है कि अगर दो पार्टी मिलकर सरकार बनाती हैं तो उसमे बड़ी पार्टी अक्सर छोटी पार्टी के अस्तित्व को खत्म कर देती है या उसका महत्व एकदम कम कर देती है.
माना जा रहा है कि इसी स्थिति का सामना बैनी गेट्ज और उसकी ब्लू एंड वाइट पार्टी कर सकती है क्योंकि यह पार्टी अभी फरवरी 2019 में ही स्थापित हुई थी और इसने अपने सिद्धांतों के साथ समझौता भी कर लिया. दूसरी बात ये की कोविड -19 की वजह से नेतन्याहू को ब्लू एंड वाइट पार्टी पर बढ़त बनाने और फिर से प्रधानमंत्री बनाने का मौका मिल गया जिसका फायदा यह हुआ कि अब नेतन्याहू इजरायल के उस कानून के दायरे में नहीं आते, जो कहता है कि अगर किसी भी नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप है, तो वह मंत्री नहीं बन सकता , लेकिन इजरायल का प्रधानमंत्री पद इसके दायरे में नहीं आता, इस कानून को इजरायल के उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है.
इजरायल के पूर्व राष्ट्रपति मोशे कात्सव और पूर्व प्रधानमंत्री एहुद ओल्मर्ट सत्ता मुक्त होने के बाद भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोपों में जेल जा चुके हैं. कहा जाता है कि जहां भारत में लोग जेल जाने के बाद राजनीति में आते हैं, वहीं इजरायल में राजनीति में आने के बाद लोग जेल जाते हैं. खैर कहने का मतलब यह है कि इजरायल में जब तक नेता सत्ता में होते हैं, जेल जाने कि संभावना भी उतनी ही कम होती है. इस प्रकार नेतन्याहू के फिर से प्रधानमंत्री बनाने का मतलब है कि उनके जेल जाने कि संभावना बहुत कम है. अंत में जो चीज प्रतीत होती है वो ये है कि 21वीं सदी के सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट ने इजरायल के सबसे बड़े राजनीतिक संकट को तो कम से कम समाप्त कर दिया.
लेखक विजय कुमार गोठवाल JNU के पी.एच.डी रिसर्च स्कॉलर है.
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Published: 18 May 2020,09:32 AM IST