मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019न्यायपालिका के अनसुलझे मुद्दे,4 जजों की बगावत से इन पर भी होगी बात

न्यायपालिका के अनसुलझे मुद्दे,4 जजों की बगावत से इन पर भी होगी बात

बात हो रही है कि न्यायपालिका को कैसे दुरुस्त किया जाए. ऐसे में जानना जरूरी है कि विवाद के मुद्दे कौन-कौन से रहे हैं

क्विंट हिंदी
नजरिया
Published:
इस बात पर काफी बहस हुई है कि जजों के करप्शन की जांच कैसे हो? किसी बाहरी एजेंसी से या फिर न्यायपालिका के अपने ही सिस्टम से?
i
इस बात पर काफी बहस हुई है कि जजों के करप्शन की जांच कैसे हो? किसी बाहरी एजेंसी से या फिर न्यायपालिका के अपने ही सिस्टम से?
(फोटो: The Quint)

advertisement

जिन जजों ने शुक्रवार को विरोध के स्वर उठाए, उनकी वरीयता देखिए- नंबर 2,3,4 और 5. इसके बाद बात हो रही है कि न्यायपालिका को कैसे दुरुस्त किया जाए. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि विवाद के मुद्दे कौन-कौन से रहे हैं.

जजों की नियुक्ति से जुड़ा मसला

इस पर कई सालों से बहस होती रही है. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को ‘कॉलेजियम सिस्टम’ कहा जाता है. 1993 से लागू इस सिस्टम के जरिए ही जजों के ट्रांसफर, पोस्टिंग और प्रमोशन का फैसला होता है. कॉलेजियम 5 जजों का एक ग्रुप है. इसमें चीफ जस्टिस समेत सुप्रीम कोर्ट के 4 सीनियर जज मेंबर होते हैं.

1998 में इस मामले पर 9 जजों की बेंच ने कहा था कि जजों की नियुक्ति पर आखिरी फैसला कॉलेजियम का होगा. इस सिस्टम को नया रूप देने के लिए NDA सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त‍ि आयोग (NJAC) बनाया था. यह सरकार द्वारा प्रस्तावित एक संवैधानिक संस्था थी, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया.

NJAC को खारिज करने वाले फैसले में कॉलेजियम सिस्टम को भी और दुरुस्त करने की बात की गई थी. इसी के तहत सुप्रीम कोर्ट ने मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर को अंतिम रूप दिया और 2017 के शुरू में उसे सरकार के पास भेजा.

चार जजों की चिट्ठी, जिसे शुक्रवार को सार्वजनिक किया गया, उसमें कहा गया है कि चूंकि सरकार का मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर पर कई महीनों तक कोई जबाव नहीं आया है, इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जो तय किया है, वही लागू है. मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर के हिसाब से जजों की नियक्ति में आखिरी फैसला कॉलेजियम का ही होगा और सरकार को उसे मानना ही होगा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
इस मुद्दे पर बहस इस बात पर हो रही है कि फ्री न्यायपालिका के लिए यह जरूरी है कि उसमें सरकारी हस्तक्षेप बिल्कुल न हो. लेकिन इस सिस्टम का विरोध करने वालों की दलील है कि इससे न्यायपालिका की अकाउंटेबिलिटी कम होती है.

जजों की अकाउंटेबिलिटी

इस बात पर काफी बहस हुई है कि जजों के करप्शन की जांच कैसे हो? किसी बाहरी एजेंसी से या फिर न्यायपालिका के अपने ही सिस्टम से? 2017 में जजों के करप्शन का मामला सामने आया था, जिसकी सुनवाई के दौरान जस्टिस चेलमेश्वर ने एक संवैधानिक बेंच बनाकर मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया था. जस्टिस चेलमेश्वर के फैसले को चीफ जस्टिस ने संवैधानिक बेंच के सदस्यों को यह कहकर बदल दिया कि बेंच का गठन करने का अधिकार सिर्फ चीफ जस्टिस को ही है.

इस बहस पर आखिरी शब्‍द अभी लिखा जाना बाकी है.

बेंच का गठन कैसे हो?

शुक्रवार की बगावत पर सबसे ज्यादा बहस इसी मुद्दे पर हो रही है. चार जजों ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस फर्स्ट एमंग द एक्वल्स हैं. 'फर्स्ट एमंग द एक्वल्स' का मतलब यह नहीं होता है कि जो फर्स्ट है, वो सारे फैसले अपने मन से ले. इसका मतलब होता है कि उनके हर बड़े फैसले में दूसरों के इनपुट हों, सहमति हो और हर फैसला रूल ऑफ लॉ के मुताबिक हो.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT