मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019झारखंडी मन पढ़ न पाए ‘छत्तीसगढ़ी’ रघुवर,BJP की हार के 5 लोकल कारण

झारखंडी मन पढ़ न पाए ‘छत्तीसगढ़ी’ रघुवर,BJP की हार के 5 लोकल कारण

झारखंड चुनाव में बीजेपी को इतनी बड़ी हार मिलेगी, इसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी 

संतोष कुमार
नजरिया
Updated:
झारखंडी मन पढ़ न पाए ‘छत्तीसगढ़ी’ रघुवर,BJP की हार के 5 लोकल कारण
i
झारखंडी मन पढ़ न पाए ‘छत्तीसगढ़ी’ रघुवर,BJP की हार के 5 लोकल कारण
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

JMM-कांग्रेस-RJD गठबंधन के मुखिया तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा चीफ हेमंत सोरेन ने झारखंड में सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है. सोरेन ने 81 विधायकों वाली विधानसभा में 50 विधायकों के समर्थन का दावा भी किया है. झारखंड चुनाव में बीजेपी को इतनी बड़ी हार मिलेगी, इसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी. राष्ट्रीय स्तर पर ध्रुवीकरण, CAA-NRC को लेकर मुसलमानों में गलत संदेश जाना...ये तमाम वजहें बीजेपी की हार वजह बनीं. लेकिन सबसे ज्यादा असर कुछ लोकल मुद्दों का पड़ा है. 5 ऐसे लोकल मुद्दे हैं जिनके कारण बीजेपी की राज्य में ये हार हुई है.

1. SPT एक्ट और CNT एक्ट

अंग्रेजों के जमाने में, 1908 में ये कानून पास हुए थे. मकसद था आदिवासियों का जल-जंगल-जमीन पर हक बना रहे. इन कानूनों के तहत गैर आदिवासी या बाहरी झारखंड में जमीन नहीं खरीद सकते.  SPT एक्ट यानी संथाल परगना टेनेंसी एक्ट के तहत तो आदिवासी भी आदिवासी की जमीन नहीं खरीद सकता. छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट में एक थाना क्षेत्र के बाहर के लोग जमीन की खरीद-फरोख्त नहीं कर सकते. रघुवर सरकार ने इन कानूनों में बदलाव को कैबिनेट की मंजूरी दी और राज्यपाल के पास भेजा. माहौल बिगड़ने की आशंका से राज्यपाल ने इसपर अपनी मुहर नहीं लगाई.

राज्यपाल ने प्रस्ताव को वापस सरकार के पास भेजा. हालांकि रघुवर सरकार ने इसे दोबारा राज्यपाल के पास नहीं भेजा, लेकिन तबतक विपक्ष ने इस मुद्दे को लपक लिया था. विपक्ष खासकर झारखंड मुक्ति मोर्चा आदिवासियों को ये समझाने में कामयाबी पाई, कि इस सरकार की नजर आदिवासियों की जमीन पर है.

चुनाव परिणामों को देखकर साफ है कि आदिवासी रघुवर सरकार से कितने खफा थे.  राज्य की 28 आदिवासी सीटों में बीजेपी महज 2 सीटें जीत पाई. कोल्हान क्षेत्र में पार्टी को एक सीट भी नहीं मिली. मुख्यमंत्री रघुवर दास हारे, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा हारे, विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव हारे, साथ ही तीन और मंत्री भी हारे.

2.डोमिसाइल नीति में बदलाव

जब झारखंड राज्य बना और बाबुलाल मरांडी सरकार आई तो उसने डोमिसाइल नीति बनाई, जिसके तहत 1932 या उससे पहले से झारखंड में रहने वाले लोगों को झारखंड का निवासी माना गया. रघुवर सरकार ने 2016 में इसमें बदलाव किया.

झारखंड राज्य बना और बाबुलाल मरांडी सरकार आई(फोटो: फेसबुक)

बीजेपी सरकार ने नीति बनाई कि अब 1986 या उससे पहले से जो झारखंड में रह रहा है, काम कर रहा है, प्रॉपर्टी खरीद ली है, वो अपने आप झारखंड का निवासी होगा. इस नीति में बदलाव से आदिवासियों और गैर आदिवासियों, हर तरह के मूल निवासियों में गुस्सा था. लोगों को राज्य की डेमोग्राफी बदलने की चिंता थी, अपने संसाधनों के बंटने का डर था. लेकिन इस गुस्से को भी रघुवर सरकार समझ नहीं पाई.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

3.पत्थलगगड़ी

रही सही कसर 'पत्थलगड़ी' को लेकर सरकार की सख्ती ने पूरी कर दी. संविधान की पांचवीं अनुसूची के मुताबिक अगर किसी खास इलाके के लिए राज्यपाल नोटिफाई कर दें तो वहां आदिवासी अपने नियमों पर अपने स्तर पर शासन-प्रशासन चला सकते हैं. आदिवासियों के नाम पर बने झारखंड में आजतक ये नोटिफिकेशन नहीं आ पाया. पिछली सरकार में भी मांग उठती रही, लेकिन हर सरकार इसे टालती रही.

रघुवर सरकार आदिवासियों के खिलाफ है!(Photo: IANS)

रघुवर सरकार ने गलती ये कर दी कि जब रांची के करीब खूंटी में ग्रामीणों ने 'पत्थलगड़ी' कर कहा कि हमें संविधान ये सुविधा देता है कि हम संविधान के बजाय अपने नियमों के तहत चलें तो सरकार ने इनके खिलाफ सख्त एक्शन लिया. 10 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह का केस दर्ज हुआ. इन गांवों में अक्सर लाठीचार्ज जैसी चीजें भी हुईं. ये मुद्दा भी झारखंड में बड़ा हुआ और आदिवासियों ने जैसे कसम खा ली थी कि इस सरकार को उखाड़ फेकेंगे.

रघुवर सरकार आदिवासियों के खिलाफ है, इस संदेश को विपक्ष ने और पुख्ता तरीके से समझाने के लिए आदिवासियों को बार-बार याद दिलाया कि खुद रघुवर झारखंड के नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के हैं.

4.धर्मांतरण बिल

रघुवर सरकार का एक और कदम उल्टा पड़ गया. हिंदुत्व का एजेंडा कहिए या जो भी, सरकार ने धर्मांतरण बिल पास कर कहा कि जोर जबरदस्ती से धर्मांतरण नहीं करा सकते. कहने सुनने में तो अच्छा लगता है कि जबरदस्ती धर्मांतरण गलत है. लेकिन इसकी आड़ में मिशनरियों को परेशान किया गया.

इससे न सिर्फ क्रिश्चयन आबादी नाराज हुई बल्कि ऐसे आदिवासी और पिछड़े भी निराश हुए जिनके लिए ये मिशनरी एक सपोर्ट सिस्टम हैं. झारखंड में जहां सरकार आज तक मदद नहीं पहुंचा पाई है, वहां मिशनरी स्कूल और अस्पताल हैं.

पारा टीचर और आंगनबाड़ी सेविकाओं के धरना प्रदर्शन के खिलाफ भी रघुवर सरकार ने सख्त कार्रवाई की थी. इस चुनाव में उनका गुस्सा भी फूटा है.

5.बीजेपी काडर का गुस्सा

मीडिया में सरयू राय के टूटने का बड़ा जिक्र हुआ और इसका खासा असर भी हुआ. आखिरी के तीन महीनों में सरयू राय के अलग होने से बीजेपी के खिलाफ माहौल बना. लेकिन मामला सिर्फ सरयू राय का नहीं था. पार्टी ने 12 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे. तो काफी संभव है कि इन लोगों ने चुनाव में पार्टी के लिए काम नहीं किया. इस बात की भी शिकायत थी कि पंचायत स्तर पर पैसा नहीं पहुंचा. मुखिया-सरपंच तो छोड़िए, खुद बीजेपी काडर भी नाराज था.

सरयू राय के अलग होने से बीजेपी के खिलाफ माहौल बना(फोटो: क्विंट हिंदी)
रघुवर के खिलाफ काडर में गुस्से का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि चुनाव हारने के बाद जब रघुवर ने 24 दिसंबर को रांची में समीक्षा बैठक की, तो कार्यकर्ताओं में हाथापाई की नौबत आ गई. कई कार्यकर्ताओं ने सीधे रघुवर पर आरोप लगाया कि उन्होंने हमेशा अपने परिवार की सोची न कि कार्यकर्ताओं की.

तो लग ये रहा है कि बीजेपी की बुनियाद हिली हुई थी लेकिन वो वक्त रहते इसे पकड़ नहीं पाई. तभी तो वो आजसू पार्टी जैसी सहयोगी की ज्यादा सीटों की मांग के आगे झुकी नहीं. आजसू के अलग होने से महतो वोट का बड़ा हिस्सा भी बीजेपी से दूर चला गया. कुल मिलाकर लग यही रहा है कि 'छत्तीसगढ़ी' रघुवर  ये पढ़ ही नहीं पाए कि झारखंडी मन में चल क्या रहा है?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 24 Dec 2019,10:32 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT