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अमेरिका (America) के राष्ट्रपति जो बाईडेन (Joe Biden) 2024 के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली नहीं आएंगे. ये जानकारी कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आई है. ऐसी अटकलें थीं कि भारत, बाइडेन की यात्रा के साथ मिलकर एक क्वाड शिखर सम्मेलन आयोजित करने की कोशिश कर रहा है, जिसके लिए ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्री भी दिल्ली आएंगे.
बुधवार, 13 दिसंबर को सरकारी 'सूत्रों' ने मीडिया को बताया कि क्वाड शिखर सम्मेलन 2024 के आखिरी में आयोजित किया जाएगा, जिससे पता चलता है कि बाइडेन, जनवरी में गणतंत्र दिवस के लिए भारत का दौरा नहीं करेंगे.
गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने के लिए किसी विदेशी नेता को निमंत्रण देना एक बड़ा कूटनीतिक सम्मान है, जो भारत उसे और उस देश को देता है जिसका वह नेतृत्व करता है. यह भारत के डिप्लोमैटिक कैलेंडर में उच्चतम स्तर की राजकीय यात्रा भी है.
ऐसा लगता है कि सितंबर में दिल्ली में दोनों देशों के बीच हुई बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाइडेन को न्योता दिया था. इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए हुए थे.
20 सितंबर को भारत में अनिश्चित और स्पष्ट रूप से अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने एक भारतीय पत्रकार को ऑन रिकॉर्ड बताया कि बाइडेन को नरेंद्र मोदी ने गणतंत्र दिवस 2024 के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर इनवाइट किया है.
यह पहली बार नहीं था कि गार्सेटी ने राजनयिक प्रोटोकॉल तोड़ा था.
इस साल जुलाई में, गार्सेटी ने मणिपुर के मुद्दों में अमेरिकी हस्तक्षेप की पेशकश की थी, जबकि यह साफ कहा गया था कि यह भारत का आंतरिक मामला था. उन्होंने यह भी कहा था कि अमेरिका को मणिपुर से जुड़ीं 'मानवीय चिंताएं' हैं. भारत ने इन आपत्तिजनक टिप्पणियों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया था.
उस वक्त मैंने एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार में लिखा था कि गार्सेटी को विदेश मंत्रालय में बुलाया जाना चाहिए और उन्हें अपमानित किया जाना चाहिए. अगर ऐसा किया गया होता, तो वह निश्चित ही सतर्क हो जाते और बाइडेन रिपब्लिक डे आमंत्रण मामले पर उन्होंने जो बड़ी शर्मिंदगी पैदा की है, उसे टाला जा सकता था.
यह साफ तौर पर कूटनीतिक रूप से सही नहीं है. इसलिए, ऐसा लगता है कि भारत और अमेरिका गणतंत्र दिवस के लिए बाइडेन के आने का रास्ता खोजने और उनकी यात्रा के साथ-साथ एक क्वाड शिखर सम्मेलन आयोजित करने के बारे में सोच रहे थे. ऐसा होता तो मोदी सरकार इसे एक कूटनीतिक उपलब्धि के रूप में पेश करती.
इसके बजाय, उसे उन वजहों पर अटकलों का सामना करना होगा, जिसके कारण बाइडेन को दिल्ली आने से बचना पड़ा.
पहला सवाल जो पूछा जाएगा वह यह है कि क्या बाइडेन का फैसला पन्नू मामले से संबंधित है? कैबिनेट स्तर सहित सभी अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि अमेरिका इस मामले को गंभीरता से लेता है. उन्होंने इस मामले में भारत द्वारा स्थापित की गई जांच का स्वागत किया है और कहा है कि वे इसके नतीजों का इंतजार कर रहे हैं.
हाल ही में, FBI के डायरेक्टर भारत में थे और इसमें कोई संदेह नहीं है कि पन्नू मामले पर चर्चा हुई होगी.
निश्चित रूप से, अमेरिका इस मामले के नतीजों से भारत-अमेरिका के ओवरऑल संबंधों को बचाना चाहता है. लेकिन यह सहज नहीं हो सकता है क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया में वक्त लग रहा है. इसके अलावा, बाइडेन की यात्रा पर फैसला लेते वक्त अमेरिका यह जानना चाहता होगा कि भारत, पन्नू मामले में किस हद तक सहयोग कर सकता है.
जाहिर है, भारत इस मामले में खुद को दोषी नहीं ठहरा सकता. इसलिए, भारत इस स्तर पर कोई आश्वासन देने की स्थिति में नहीं होगा. इसके अलावा यह कल्पना करना असंभव है कि भारत कभी किसी अधिकारी को अमेरिकी कोर्ट में मुकदमा चलाने के लिए भेजेगा.
अमेरिका और भारत दोनों को इन्हें संभालना परेशानी भरा लग रहा होगा.
पन्नू मुद्दे के अलावा, बाइडेन की घरेलू राजनीतिक व्यस्तताएं अब यह मांग कर रही हैं कि वह अपना लगभग पूरा ध्यान चुनाव पर लगाएं. इसका मतलब यह है कि उन्हें अपनी विदेश यात्राएं बहुत सीमित करनी होंगी. ऐसा खासकर इसलिए, क्योंकि उनकी जनता के बीच अप्रूवल रेटिंग कम है.
यह भी साफ है कि अगर कुछ अप्रत्याशित नहीं होता है तो उन्हें रिपब्लिकन उम्मीदवार के रूप में फिर से डोनाल्ड ट्रंप का सामना करना होगा. डेमोक्रेट्स और उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वियों द्वारा किए गए सभी प्रयासों के बावजूद, ट्रंप का असर बरकरार है.
रिपोर्ट के मुताबिक जॉर्जिया और मिशिगन जैसे कुछ अहम राज्यों में बाइडेन का ग्राफ गिरा है. बाइडेन की उम्र इसकी एक वजह होगी, जिसे उन्हें अपने चुनावी कैंपेन में संभालना होगा. जब 2024 के राष्ट्रपति चुनाव होंगे, तो वह 82 वर्ष से कुछ सप्ताह पीछे रह जाएंगे. ट्रंप उनसे सिर्फ साढ़े तीन साल छोटे हैं लेकिन ज्यादा ताकतवर नजर आते हैं.
उनकी मुख्य विदेश नीति संबंधी चिंताएं इजराइल-हमास युद्ध और यूक्रेन में जारी युद्ध से निपटना हैं. ये अमेरिकी वोटरों को प्रभावित कर सकते हैं. हालांकि उनकी पसंद मुख्य रूप से घरेलू मुद्दों, विशेषकर अर्थव्यवस्था की स्थिति से नियंत्रित होती है.
हालांकि, अमेरिका ने भारत के पश्चिमी पड़ोस में अधिक रुचि लेना शुरू कर दिया है और यह भारतीय हितों के अनुरूप नहीं हो सकता है.
(लेखक विवेक काटजू, विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव (पश्चिम) हैं. वो @VivekKatju पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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