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साल 2024 की तारीख 4 मार्च, कल्पना सोरेन (Kalpana Soren) के जीवन में एक नया मोड़ लेकर आया. इस दिन उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की एक बड़ी सभा में शिरकत करते हुए सियासी सफर की शुरुआत की. अब एक महीने पूरे हो चुके हैं. इस दौरान कल्पना सोरेन जेएमएम में चुनावी नैया की खेवनहार बनकर उभरी हैं. तो पूछा जा सकता है कि कल्पना सोरेन अपनी जगह बनाते हुए कैसे आगे बढ़ रही हैं और उनके सामने क्या चुनातियां हैं?
एक महीने के दौरान कई रैलियों, सभा, बैठकों में भागीदारी के बीच 4 अप्रैल को वह अपने दल की एक बड़ी रैली में भीड़ के बीच से हाथ जोड़े आगे बढ़ रही थीं, तो हेमंत सोरेन जिंदाबाद, शिबू सोरेन जिंदाबाद सरीखे नारे गूंज रहे थे.
4 अप्रैल को झारखंड के हजारीबाग में जेएमएम के स्थापना दिवस को लेकर आयोजित यह रैली चुनावी लिहाज से महत्वपूर्ण थी. इसमें बड़ी तादाद में जेएमएम के कैडर और समर्थक शामिल हुए. सबकी नजरें कल्पना सोरेन पर टिकी थीं.
इसके अगले दिन 5 अप्रैल को लोकसभा चुनावों की रणनीति तय करने के लिए जेएमएम के विधायकों और सांसदों की रांची में हुई बैठक में भी कल्पना सोरेन शामिल थीं. इसमें 21 अप्रैल को रांची में जेएमएम ने महारैली कर ताल ठोंकने का निर्णय लिया है.
लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कल्पना सोरेन की सक्रियता से मालूम पड़ता है कि बीजेपी की ताकत का सामना करने के लिए वह चुनावी ताने-बाने, दांव-पेच और शह-मात के खेल को समझने के साथ जेएमएम के कैडर, समर्थकों और आदिवासियों को लामबंद करने की भरसक कोशिशों में और तेजी से जुटी हैं.
झारखंड में इंडिया ब्लॉक के बीच रिश्ते को मजबूत बनाने, पेंच को सुलझाने या कुछ अहम नेताओं को जेएमएम में लाने की कवायद हो, इन सबमें कल्पना सोरेन की भूमिका की चर्चा हो रही है.
चुनावी मुहिम को असरदार बनाने के लिए उन्होंने अपने साथ कुछ रणनीतिकारों और युवाओं की टीम को जोड़ रखा है.
कल्पना सोरेन, हेमंत सोरेन की पत्नी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो और राज्यसभा के सांसद शिबू सोरेन की बहू हैं.
31 जनवरी की रात प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हेमंत सोरेन को जमीन और मनी लाउंड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया था. इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. अभी वह रांची स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में बंद हैं.
जेएमएम के बड़े दारोमदार हेमंत सोरेन के सामने ये परिस्थितियां तब आईं, जब वह अपनी सरकार के पांचवें साल में प्रवेश कर चुके थे. सामने लोकसभा चुनाव है और इसी साल के अंत में झारखंड विधानसभा का भी चुनाव होना है.
कल्पना सोरेन सभा, रैली में लोगों की नब्ज टटोलने की कोशिशों के बीच इन बातों पर जोर दे रही हैं कि "एक आदिवासी मुख्यमंत्री ने झुकना स्वीकार नहीं किया, आंखों में आंखें डालकर अपनी बातें रखी, तो बीजेपी और केंद्र की सरकार को यह अच्छा नहीं लगा.’’
इनके अलावा भाषणों में वह शिबू सोरेन के संघर्ष, जेएमएम के वजूद, आदिवासी भावनाओं, सवालों और हितों को सामने रखते हुए कार्यकर्ताओं से जिस मुखरता से संवाद कर रही हैं, उसके भी मायने निकाले जाने लगे हैं.
दरअसल बीजेपी की ही तर्ज पर वह इन मामलों को नैरेटिव बनाकर असर डालने की जद्दोजहद कर रही हैं.
झारखंड की सियासत में कल्पना की एंट्री और प्रभाव के बीच इसकी चर्चा भी रेखांकित करने लायक है कि सार्वजनिक जीवन में प्रवेश के एक महीने के दौरान दो दफा विपक्षी गठबंधन के बड़े नेताओं के साथ उन्होंने न सिर्फ मंच साझा किया है, बल्कि भाषणों में भी प्रभाव छोड़ने की कोशिशें करती दिखी हैं.
कथित भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ्तार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के समर्थन में 31 मार्च को दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में विपक्षी गठबंधन की रैली हुई थी. इस रैली में झारखंड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के साथ कल्पना सोरेन भी मौजूद रहीं.
दिल्ली दौरे के दौरान कल्पना सोरेन की अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता अग्रवाल, मनीष सिसोदिया की पत्नी सीमा सिसोदिया और संजय सिंह की पत्नी अनीता सिंह के अलावा कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे सरीखे नेताओं से भी मुलाकातें भी चर्चा में रहीं.
इससे पहले 17 मार्च को मुंबई में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा‘ के समापन पर आयोजित रैली में भी कल्पना सोरेन शामिल हुई थीं. इन दोनों रैलियों में कल्पना की मौजूदगी ने उन्हें अब इंडिया ब्लॉक के नेताओं की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया है. इनसे कल्पना सोरेन में कॉन्फिडेंस डेवलप होता दिख रहा है. कल्पना अपने दल के सीनियर लीडरों की बात भी सुनती -समझती हैं.
कल्पना सोरेन की टीम से जुड़े जेएमएम के प्रवक्ता और युवा नेता डॉ तनुज खत्री बताते हैं:
हालांकि तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन बीजेपी में शामिल हो गई हैं. साथ ही वह जेएमएम और परिवार के खिलाफ लगातार हमलावर हैं. सीता सोरेन आरोप लगाती रही हैं कि परिवार और दल में उनकी उपेक्षा की जाती रही.
इन हालात ने दोनों बहुओं (सीता सोरेन-कल्पना सोरेन) को राजनीतिक विरासत की लड़ाई में आमने-सामने कर दिया है.
इस मामले में सीता सोरेन और कल्पना सोरेन के बीच एक्स (पहले ट्विटर) पर तल्खियां भी सामने आती रही हैं. चुनावों में भी सीता सोरेन भरसक परिवार और दल से जुड़े इन सवालों को उछालेंगी.
अब तक बीजेपी से मुकाबले की तैयारियों में जुटीं कल्पना सोरेन को अब सीता सोरेन की चुनौतियों से भी पार पाना है.
दरअसल बीजेपी ने दुमका से अपने सांसद सुनील सोरेन का नाम वापस लेते हुए सीता सोरेन को उम्मीदवार बनाया है.
इसके बाद उन्होंने लगातार तीन बार जेएमएम के टिकट पर सुरक्षित जामा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता. हालांकि सीता सोरेन की जीत में शिबू सोरेन का नाम और जेएमएम का सिंबल- तीर-कमान ही मजबूत आधार रहा है.
इधर कल्पना सोरेन के साथ शिबू सोरेन और उनके छोटे पुत्र बसंत सोरेन समेत उनका दल जेएमएम मजबूती से और एक साथ खड़ा दिख रहा है.
सीता सोरेन के खिलाफ जेएमएम ने शिकारीपाड़ा से 7 बार के विधायक नलिन सोरेन को मैदान में उतारा है. बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच दुमका संसदीय सीट पर सीता सोरेन को शिकस्त देना सोरेन परिवार के साथ जेएमएम के लिए सबसे अहम हो गया है.
स्वास्थ्य और उम्र की वजह से अब शिबू सोरेन दौरे, रैलियां नहीं कर पाते. तब सारी और बड़ी जिम्मेदारी कल्पना सोरेन और जेएमएम के नेताओं, कैडरों पर होगी.
संतालपरगना में लोकसभा की दो और विधानसभा की 18 सीटें हैं. इनमें 14 पर जेएमएम-कांग्रेस का कब्जा है.
आदिवासी बहुल इलाके का दुमका केंद्र रहा है. साथ ही माना जाता है कि झारखंड में सत्ता का रास्ता संताल परगना से ही निकलता है.
जाहिर तौर पर दुमका संसदीय चुनाव का परिणाम एक बड़ा संकेत लेकर सामने आएगा
झारखंड में लोकसभा चुनावों में बीजेपी का दबदबा रहा है. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 11 सीटों पर और उसकी सहयोगी AJSU पार्टी ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी. जबकि जेएमएम और कांग्रेस को एक-एक सीट पर जीत मिली थी. अकेले बीजेपी का वोट शेयर 51 फीसदी था.
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और इस्तीफा के बाद कल्पना सोरेन और जेएमएम के सामने इसकी बड़ी चुनौती है कि इस बार एक सीट से ज्यादा पर जीत दर्ज कर बीजेपी को अपनी ताकत और गोलबंदी का अहसास कराएं.
लोकसभा चुनावों की तैयारियों में बहुत पहले से जुटी बीजेपी इन बातों पर जोर देती रही है कि जेएमएम-कांग्रेस की सरकार ने साढ़े चार साल के कार्यकाल में सिर्फ अपना हित साधा है. जेएमम कुनबा भी बीजेपी के साथ लड़ाई को धारधार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता.
बीजेपी को सबसे ज्यादा भरोसा अपने सबसे बड़े ब्रांड नरेंद्र मोदी पर है. जब नरेंद्र मोदी की रैलियां झारखंड में शुरू होंगी, तो उन हवाओं को रोकने के लिए इंडी गठबंधन को मशक्कत करनी पड़ेगी. उस वक्त भी कल्पना सोरेन की अहमियत परखी जाएगी.
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