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(इस आर्टिकल में छपे विचार, लेखक के निजी हैं. क्विंट का इन विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)
मैं कश्मीर में पिछले 4 से 5 सालों से काम कर रही हूं. कश्मीरियों की जिंदगी को फोटो और डॉक्यूमेंट्री में कैद करती हूं. उनकी कहानियों को सुनती हूं. भारत सरकार ने हमेशा ये दिखाने की कोशिश की है कि कश्मीर में सब 'नॉर्मल' है. कश्मीर पर जो खबरें आती हैं उनमें हम देखते हैं कि टूरिस्ट्स की भीड़ है, कश्मीरी सिविल सर्विसेज के एग्जाम में टॉप कर रहे हैं, कश्मीरी बच्चे नेशनल कॉम्पिटिशन और स्पोर्ट्स में अव्वल आ रहे हैं. लेकिन, कश्मीर में कुछ भी 'नॉर्मल' नहीं है. 5 अगस्त को लगे बैन से पहले भी कश्मीर में कुछ नॉर्मल नहीं था. अपनों को खोना और दुख-दर्द, घाटी की रोजमर्रा की कहानी है.
मैं 25 सितंबर से 27 सितंबर के बीच श्रीनगर के पास अंचार में रही. वहां लोग हताश लेकिन डटे हुए हैं. हताश इसलिए क्योंकि उन्हें पूरी दुनिया से काट दिया गया है. वो छापेमारी, कर्फ्यू की शक्ल में हिंसा से गुजर रहे हैं; डटे इसलिए हैं क्योंकि उन्हें डर है कि उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिलेगी, तो वो अपनी किस्मत को अपने हाथों में ले रहे हैं.
सेना से खुद को बचाने के लिए आसपास के लोग नाका बना रहे हैं. लोग गहरे गड्ढे खोद रहे हैं ताकि सरकारी गाड़ियों को अपने घरों में घुसने से रोक सकें. और जब कर्फ्यू हट रहा है, जैसा कि तब हटा था जब मैं वहां गई थी, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र महासभा की मीटिंग होनी थी, तब कश्मीरी सड़कों पर उतरकर आजादी की मांग कर रहे हैं.
5 अगस्त से पहले भी कश्मीरी इज्जत की जिंदगी और समान्य हालात के लिए तरस रहे थे, लेकिन आज उनमें ये भावना और जोर पकड़ रही है
देखिए इन 11 तस्वीरों में छिपी कश्मीर की कहानियां-
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Published: 07 Oct 2019,05:21 PM IST