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कुलभूषण जाधव केस: ICJ में पहला राउंड भारत ने जीता, अब आगे क्‍या?

भारत ने आईसीजे में कहा है कि जाधव को पाकिस्तान में जो सजा दी गई है, वह विएना कन्वेंशन के मुताबिक नहीं है.

रॉबिन आर डेविड
नजरिया
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(फोटो: The Quint)
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(फोटो: The Quint)
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इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने पाकिस्तान से कहा है कि भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को वह तब तक फांसी नहीं दे सकता, जब तक कि इस मामले में आईसीजे का अंतिम फैसला नहीं आ जाता. पाकिस्तान के मिलिट्री कोर्ट ने जाधव को जासूसी और आतंकवाद के आरोप में फांसी की सजा सुनाई है.  आईसीजे के इस आदेश में भारत के लिए कई पॉजिटिव बातें हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इससे जाधव की जान बचने की उम्मीद बंधी है. आईसीजे ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया. अब हर कोई जानना चाहता है कि इस मामले में आगे क्या होगा?

आधी जंग जीत चुके हैं हम...

पाकिस्तान को आईसीजे का निर्देश मानना और उसे लागू करना होगा. उसके बाद उसे आईसीजे को बताना होगा कि उसने निर्देशों को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं. इसमें कोई शक नहीं कि यह भारत के लिए बड़ी जीत है, लेकिन जब तक अंतिम फैसला हमारे हक में नहीं आ जाता, जश्न मनाना ठीक नहीं होगा. अंतिम सुनवाई से पहले भारत को काफी मेहनत करनी पड़ेगी. अंतिम सुनवाई में आईसीजे भारत से साथ पाकिस्तान का पक्ष सुनेगा.

वह दोनों देशों के दस्तावेजों और सबूतों पर गौर करेगा. भारत और पाकिस्तान लिखित में भी अपने पक्ष रखेंगे. पाकिस्तान को अपना विरोध दर्ज कराने का भी अधिकार होगा. वह आईसीजे में मामले की सुनवाई को भी चुनौती दे सकता है. अभी आईसीजे ने जो निर्देश दिया है, वह 'पहली नजर में' पाए गए तथ्‍यों पर आधारित है. कोर्ट ने कई बातों पर फैसला अंतिम स्टेज के लिए छोड़ दिया है.

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अंतरिम राहत

भारत ने आईसीजे में कहा है कि जाधव को पाकिस्तान में जो सजा दी गई है, वह विएना कन्वेंशन के मुताबिक नहीं है. भारत ने कहा कि यह कन्वेंशन के आर्टिकल 36 पैरा 1 (बी) का उल्लंघन है. 1996 के इंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स में आरोपी को जो बुनियादी मानवाधिकार दिए गए हैं, जाधव को दी गई सजा में उसका भी खयाल नहीं रखा गया है.

(फोटो: Lijumol Joseph/ The Quint)

भारत ने आईसीजे से कई राहत की मांग की थी, जिनकी जानकारी हम यहां दे रहे हैं:

  • जाधव को सुनाई गई मौत की सजा रोकी जाए.
  • मिलिट्री कोर्ट का फैसला अंतरराष्ट्रीय कानून और विएना कन्वेंशन के खिलाफ है.
  • मिलिट्री कोर्ट की तरफ से दी गई सजा पर पाकिस्तान में अमल पर रोक लगाई जाए. पाकिस्तान के कानून के तहत मिलिट्री कोर्ट के फैसले को रद्द करने के लिए जो उपाय किए जा सकते हैं, उसका निर्देश दिया जाए.
  • अगर पाकिस्तान सजा को रद्द नहीं करता, तब आईसीजे इसे गैरकानूनी घोषित करे, क्योंकि सजा अंतरराष्ट्रीय कानून और समझौतों का उल्लंघन करता है.
  • पाकिस्तान को विएना कन्वेंशन और अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन से रोकते हुए जाधव को रिहा करने का आदेश दिया जाए.

2008 का द्विपक्षीय समझौता

आईसीजे के मुताबिक, भारत-पाकिस्तान के बीच कॉन्सुलर रिलेशंस पर 2008 का समझौता विएना कन्वेंशन से ऊपर नहीं है. आईसीजे के जजों में शामिल भारतीय सदस्य जस्टिस दलवीर भंडारी ने अलग से कॉन्सुलर एक्सेस पर 2008 के भारत-पाकिस्तान एग्रीमेंट की पड़ताल की. उन्होंने कहा था कि पहली नजर में ऐसा नहीं लगता कि 2008 के एग्रीमेंट के चलते विएना कन्वेंशन के तहत दोनों देशों की जवाबदेही कम हुई है.

(फोटो: Lijumol Joseph/ The Quint)

इसके लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 102 को आधार माना गया है. पाकिस्तान ने आईसीजे में यह तर्क दिया था कि कॉन्सुलर एक्सेस दोनों देशों के बीच 2008 समझौते से निर्देशित होता है. पाकिस्तान ने इसके एक शर्त का हवाला देकर जाधव का कॉन्सुलर एक्सेस भारत को नहीं देने को सही ठहराया था. इस शर्त में कहा गया है कि पॉलिटिकल या सुरक्षा कारणों से अगर किसी को हिरासत में लिया जाता है या उसके खिलाफ सजा सुनाई जाती है, तो दोनों ही पक्ष मेरिट के आधार पर उस मामले की पड़ताल कर सकते हैं. जाधव पर जासूसी का आरोप है और उन्हें सुरक्षा कारणों का हवाला देकर गिरफ्तार किया गया था.

द्विपक्षीय समझौता विएना कन्वेंशन से ऊपर नहीं

विएना कन्वेंशन में जिस देश का नागरिक गिरफ्तार हुआ है, उसे या उसके प्रतिनिधि को कॉन्सुलर एक्सेस के मामले में खास अधिकार दिए गए हैं. वहीं, दूसरे देश पर उसे पूरा करने की जवाबदेही भी डाली गई है. अगर दो देशों के बीच कोई आपसी समझौता है, तो वह विएना कन्वेंशन से ऊपर नहीं होगा. हालांकि, उस समझौते की शर्तें विएना कन्वेंशन को सपोर्ट करने वाली हो सकती हैं.

भारत ने आईसीजे से कहा था कि विएना कन्वेंशन के आर्टिकल 36 के तहत पाकिस्तान की भारत के प्रति कॉन्सुलर एक्सेस की जवाबदेही बनती है. जाधव की मौत की सजा पर फिलहाल रोक लग गई है. अब भारतीय लीगल टीम को अंतिम सुनवाई की तैयारी करनी चाहिए, जिसके लिए काफी काम करने की जरूरत है.

(रॉबिन आर डेविड सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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Published: 22 May 2017,08:51 PM IST

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