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जो आपके सबसे करीब है. जिसे आप शिद्दत से चाहते हैं. जो आपकी पूरी जिंदगी है. जो आपकी जिंदगी का हासिल है. वो कोई भी हो सकता है. कोई भी. मां, पिता, भाई, बहन, बेटा, पति. वो आपके सामने है और आप उसे छू नहीं सकते. उसे गले नहीं लगा सकते. उसके हिलते होठों से सीधे निकलते शब्द, उसी तरह सुन नहीं सकते.
कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान ने ठीक यही किया है. जज्बात का कोरा दिखावा. इस दिखावे को हर हाल में धिक्कारना चाहिए.
कहने को जाधव और उनकी मां और पत्नी के बीच सिर्फ शीशे की दीवार थी. लेकिन आप बस उस लम्हे को जरा सोच कर देखिए. सिहर उठेंगे. दुनिया के सामने मुलाकात की तस्वीर जारी की गई, जिसमें सब ठीक-ठाक दिखता है. लेकिन तस्वीरें सब कुछ बयां कर देतीं तो बात और होती. उन चंद तस्वीरों के इधर या उधर कुछ आंसू भी तो बहे होंगे, कुछ सिसकियां भी तो सुनाई दी होंगी, कुछ दिल भी तो दरके होंगे. माना कि हुक्मरानों के पैरों में जज्बात बेड़ियों का काम करते हैं. फिर ये सारा दिखावा क्यों?
क्या सुरक्षा के नाम पर? यही तो दलील दी थी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने. दुनिया को बताया गया कि कुलभूषण जाधव की सुरक्षा को खतरा है. इसलिए ये मुलाकात शीशे की दीवार के आरपार कराई गई. लेकिन, जाधव को किससे खतरा है. अपनी मां से? या अपनी पत्नी से? दो औरतें जिनको शायद पाकिस्तान पहुंचते तक इल्म भी न रहा हो कि उनकी मुलाकात इस तरह कराई जाने वाली है. जिन्होंने न जाने कितनी बार इस एक लम्हे को अपने जेहन में जिया होगा. और आपने क्या किया? एक दीवार खींच दी.
जिन ‘कायदे आजम’ जिन्ना के जन्मदिन पर इंसानियत के नाम पर ये मुलाकात करवाई गई, क्या वहां थोड़ी और इंसानियत नहीं बरती जा सकती थी.
पाकिस्तान को ये सोचना होगा. पाकिस्तान को सोचना होगा कि महज दिखावे की दरियादिली से रिश्तों में गरमाहट नहीं आ सकती. सोचना होगा कि दुनिया में अपनी छवि बदलनी है तो शुरूआत छोटे कदमों से करनी होती है. और ये भी सोचना होगा कि महज फोटो-वीडियो के साथ एक इवेंट खड़ी करने से दुनिया की आंखों में धूल नहीं झोंकी जा सकती.
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