मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019लॉकडाउन और घर में लॉक पार्टनर, महिलाओं के सामने है बड़ी चुनौती

लॉकडाउन और घर में लॉक पार्टनर, महिलाओं के सामने है बड़ी चुनौती

औरतों के लिए प्रजनन स्वास्थ्य पहले ही प्रिविलेज है. सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के बहुत से देशों में.

माशा
नजरिया
Updated:
प्रतीकात्मक तस्वीर
i
प्रतीकात्मक तस्वीर
(फोटो: istock)

advertisement

जब डब्ल्यूएचओ जैसे संगठन ने कोविड-19 के प्रकोप के बीच गर्भपात को अनिवार्य स्वास्थ्य सेवा कहा, तो बहुत से लोगों को एहसास हुआ कि महामारी के दौर में औरतों के प्रजनन स्वास्थ्य पर क्या असर होने वाला है. बेशक, महामारियों का औरतों पर अलग ही किस्म का असर होता है. वायरस का असर सिर्फ वही नहीं जो दिख रहा है- इसके दूसरे शारीरिक प्रभाव भी होने वाले हैं. औरतों के लिए अपनी सेहत को बचाना मुश्किल हो रहा है.

प्रजनन स्वास्थ्य पहले ही औरतों के लिए प्रिविलेज है

औरतों के लिए प्रजनन स्वास्थ्य पहले ही प्रिविलेज है. सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के बहुत से देशों में. खास तौर से गरीब देशों में. उनकी सामाजिक सच्चाई यही है कि दांपत्य संबंधों में औरतों के पास फैसले लेने की शक्ति नहीं. परिवार नियोजन के फैसले भी वे खुद नहीं ले सकतीं- कितने बच्चे होने चाहिए. बच्चों के बीच कितने साल का फर्क होना चाहिए. औरत को किस उम्र में मां बनना चाहिए.

यूनिसेफ के आंकड़े कहते हैं कि विकासशील क्षेत्रों में 15 साल से कम उम्र की लगभग आठ लाख लड़कियां और 15 से 19 साल की सवा करोड़ लड़कियां हर साल मां बनती हैं. औरतों के पास संभोग के दौरान ना कहने का मौका भी कम होता है. इसीलिए गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल की जिम्मेदारी उन्हीं पर आती है.

यूएन के 2017 के वर्ल्ड फैमिली प्लानिंग नामक अध्ययन में कहा गया है कि 58% शादीशुदा या इन-यूनियन महिलाएं फैमिली प्लानिंग के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं जोकि गर्भनिरोधकों के सभी यूजर्स का 92% है. खुद भारत की स्थिति भी काफी बुरी है. एनएफएचएस 2015-16 के आंकड़े कहते हैं कि सिर्फ 5% पुरुष नसबंदियां कराते हैं- बाकी अधिकतर नसबंदियां औरतें कराती हैं जोकि 86% है.

फैसले लेने का अधिकार न हो तो इसका क्या असर होता है. असर यह होता है कि औरतों की सेहत प्रभावित होती है. यूनिसेफ का कहना है कि दुनिया भर में 15 से 19 साल की लड़कियों की मौत का सबसे बड़ा कारण गर्भावस्था और प्रसव से जुड़ी समस्याएं होती हैं. लान्सेट ग्लोबल हेल्थ जैसे संगठन का कहना है कि मातृत्व मृत्यु के 4.7% से 13.2% मामलों का कारण असुरक्षित गर्भपात है. विश्व में प्रति एक लाख जीवित जन्म पर मातृत्व मृत्यु दर 211 है.

गर्भनिरोधकों का बाजार धराशायी होने की कगार पर

इन आंकड़ों के बीच यह समझना जरूरी है कि कोविड-19 के हाहाकार का औरतों की कमजोर सेहत पर क्या असर होगा. चूंकि गर्भनिरोधकों का विश्वव्यापी बाजार ही धराशायी होने की स्थिति में है. आंकड़े कहते हैं कि इसका असर सीधा-सीधा औरतों की सेहत पर पड़ने वाला है. सबसे पहली बात तो यह है कि कंडोम और दूसरे गर्भनिरोधक अधिकतर एशिया में मैन्यूफैक्चर होते हैं. बहुत सी चीनी कारखाने बंद हैं और बहुत से कारखाना मजदूरों को घर पर रहकर काम करने को या कम घंटे काम करने को कहा गया है.

बहुत से कॉन्ट्रासेप्टिव सप्लायर्स अपनी पूरी क्षमता भर काम नहीं कर पा रहे. डीकेटी जैसे फैमिली प्लानिंग प्रॉडक्ट्स और सेवा प्रदाता ने म्यांमार में स्टॉक आउट की खबर दी है. कई भारतीय दवा कंपनियों को स्लोडाउन की आशंका है क्योंकि चीनी सप्लायर्स से एपीआई यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडियंट्स नहीं मिल रहे.

भारत में सरकार ने प्रोजेस्टेरोन वाले उत्पादों को निर्यात करने से प्रतिबंधित किया है. इस हारमोन से बहुत से गर्भनिरोधक बनते हैं. चूंकि यहां से बहुत सारा माल अफ्रीकी देशों में जाता है, इसलिए वहां औरतों को गर्भनिरोधक नहीं मिल रहे. विश्व में गर्भनिरोधक उत्पादों के सबसे बड़े निर्माता कारेक्स ने चिंता जताई है कि सप्लाई चेन टूटने से कंडोम के उत्पादन पर बुरा असर पड़ने वाला है. विश्व में रबर का सबसे बड़ा उत्पादक मलयेशिया है. रबर कंडोम निर्माण का मुख्य कच्चा माल है. लॉकडाउन के कारण मलयेशिया से कच्चे माल की आपूर्ति प्रभावित है. नतीजतन कोरेक्स का कामकाज भी प्रभावित हुआ है. कंपनी का अनुमान है कि मार्च के मध्य से अप्रैल के मध्य तक की रोक के कारण वह पिछले साल के सामान्य उत्पादन के मुकाबले 20 करोड़ कंडोम कम बना पाएगी.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

औरतों की कमजोर सेहत और कमजोर होगी

जाहिर सी बात है, इसका असर महिलाओं की सेहत पर सबसे ज्यादा पड़ने वाला है. विश्वव्यापी बाजार में जब सारा काम सप्लाई चेन पर निर्भर करता है तो उसका असर भी विश्वव्यापी होता है. गर्भनिरोधकों की सप्लाई कम है, और मांग बड़ी है. यह खबरें भी आ रही हैं कि लॉकडाउन में लोग बंद हैं और सोशल डिस्टेंसिंग की जगह इंटिमेसी ने ले ली है. एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि दिसंबर 2020 कोरोन वायरस बूम होने वाला है और 2033 में क्वारंटीन्स यानी किशोर बच्चों की पूरी जनरेशन तैयार होने वाली है. यूं कहीं ये संबंध परस्पर प्रेम से बन रहे हैं, कहीं जबरन. दोनों स्थितियों में औरतों के पास गर्भनिरोध के साधनों की कमी है. इसका असर बहुत जबरदस्त होने वाला है.

एक सच्चाई यह भी है कि विकासशील देशों में कोरोना वायरस के कारण क्लिनिक्स बंद हो रहे हैं और असुरक्षित गर्भपात लाखों की संख्या में होने की आशंका है. इंटरनेशनल प्लान्ड पेरेंटहुड फेडरेशन जैसे अंतरराष्ट्रीय एनजीओ के 23 सदस्य संगठनों ने 64 देशों में अपने 5,600 क्लिनिक बंद कर दिए गए हैं.

गर्भनिरोध के साधन और एचआईवी की दवाओं की भी कमी है. अमेरिका के गटमाकर इंस्टीट्यूट जैसेरीप्रोडक्टिव हेल्थ थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के कारण डेढ़ करोड़ अवांछित गर्भावस्थाओं, 28,000 महिलाओं की मृत्यु और 30 लाख असुरक्षित गर्भपात की आशंका है.  

भारत की हकीकत

अमेरिकी सोशल साइंटिस्ट्स आर. स्टीफेंसन और एम ए कोईनिग ने एक पेपर लिखा है- ग्रामीण भारत में घरेलू हिंसा, गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल और अवांछित गर्भावस्था. उनका कहना है कि कई बार मर्दों की तरफ से की जाने वाली हिंसा औरतों के गर्भनिरोध के फैसले को प्रभावित करती है. दूसरी तरफ गर्भनिरोध के फैसले की वजह से भी औरतें मर्दो की हिंसा की शिकार होती हैं. इस पेपर में इन दोनों के बीच को-रिलेशन साबित हुआ है. कोरोना की मार के बीच इसका विद्रूप रूप दिखाई देने वाला है.

हैदराबाद के एक नॉन प्रॉफिट ने 2016 में एक सर्वेक्षण किया था- उसमें 83% औरतों ने कहा था कि उनके साथ होने वाली घरेलू हिंसा में दूसरी सबसे बड़ी वजह यह है कि वे दो से ज्यादा बच्चे नहीं चाहतीं. 62% के पति गर्भनिरोध के साधन इस्तेमाल करने पर उन्हें पीट डालते थे. 87% चुपचाप किसी न किसी साधन का इस्तेमाल करती थीं.

कनाडा की मशहूर फेमिनिस्ट स्कॉलर मिशेल मर्फी कहती हैं, आदमजात के लिए दुनिया का सबसे अच्छा कॉन्ट्रासेप्टिव है, औरतों की पढ़ाई-लिखाई. कोविड-19 के बीच यह एहसास करने की जरूरत है कि सेहत का फैसला जब पढ़-लिखकर औरत लेगी, तो उसके जीवन की दिशा कुछ और ही होगी. महामारियां कभी-कभी आती हैं, लेकिन समाज की दूसरी सच्चाइयों को सुधारने का मौका हमेशा रहता है.

(ऊपर लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 18 Apr 2020,01:17 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT