मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गांवों में गुस्सा BJP को 342 लोकसभा सीटों पर भारी पड़ सकता है?

गांवों में गुस्सा BJP को 342 लोकसभा सीटों पर भारी पड़ सकता है?

चुनावों में जीत के लिए क्या चाहिए- कम महंगाई और खाने-पीने के सामान उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हों?

मयंक मिश्रा
नजरिया
Published:
2014 के बाद से गांव में रहने वाले ज्यादातर लोगों की आमदनी पिछले चार साल में जस की तस है
i
2014 के बाद से गांव में रहने वाले ज्यादातर लोगों की आमदनी पिछले चार साल में जस की तस है
(फोटो: द क्विंट)

advertisement

चुनावों में जीत के लिए क्या चाहिए- कम महंगाई या फिर ऐसा माहौल, जहां महंगाई की दर 8 परसेंट के पार हो और खाने-पीने के सामान उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हों? चूंकि महंगाई हर चुनाव में मुद्दा रहती है, स्थिर कीमत का मतलब हुआ जीत पक्की. लेकिन 11 दिसंबर को हमने पाया है कि ‘सस्ती कीमत का मतलब चुनाव में जीत’ वाला फॉर्मूला हमेशा सही नहीं होता.

मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल में महंगाई दर ज्यादा थी

इतनी कम सालाना महंगाई दर तो मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में कभी नहीं रही(फोटोः PTI)

इतनी कम सालाना महंगाई दर तो मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में कभी नहीं रही. उनके पहले कार्यकाल के आखिरी साल में खाने-पीने की चीजों की महंगाई की दर 10 परसेंट के पास थी. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव की राह में यह बाधा नहीं बनी और 2008 में कांग्रेस को पहले से भी बड़ा जनादेश हासिल हुआ. तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हमने जो देखा, वो हमारे महंगाई के पुराने फॉर्मूले के उलट है.

खाने-पीने की कुछ चीजों में कभी-कभार आए अचानक उछाल को छोड़ दें, तो बीते चार साल में स्थिर कीमत का दौर रहा है. महंगाई की दर फिलहाल लगभग नगण्य है और कुछ साल पहले दालों की जो कीमतें थीं, उस मुकाबले अभी ये काफी कम हैं. तब ग्रामीण भारत वर्तमान शासन-व्यवस्था से क्यों नाराज है?

जवाब बहुत आसान है. जब तक आपकी आमदनी तेजी से बढ़ती रहती है, कीमतों का बढ़ना आपको नहीं चुभता. वहीं अगर आपकी आमदनी गिर जाती है, तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि महंगाई की दर घटी है या बढ़ रही है.

हम यह देख रहे हैं कि ग्रामीण आमदनी स्थिर हो गयी है, इसलिए कीमत में स्थिरता के बावजूद किसान हताश दिख रहे हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कृषि आय स्थिर होने से ग्रामीणों में हताशा बढ़ी

'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, ''खाने-पीने की चीजों के थोक मूल्य इंडेक्स में औसत सालाना बढ़ोतरी 2.75 परसेंट रही, जबकि दूसरे कृषि उत्पादों में ये 0.76 परसेंट रही. इसकी तुलना में यूपीए सरकार के पिछले पांच साल के दौर में यही 12.26 परसेंट और 11.04 परसेंट पहुंच गयी थी.''

इसी रिपोर्ट के मुताबिक, “2014-15 के बाद से कृषि और गैर कृषि व्यवसायों से ग्रामीण वेतन वृद्धि में कमी आयी है. सामान्य तौर पर करीब 5.2 परसेंट की बढ़ोतरी हुआ करती थी. यह ग्रामीण उपभोक्ता कीमत इंडेक्स में 4.9 परसेंट बढ़ोतरी से थोड़ा अधिक है, जो इशारा करता है कि ग्रामीण वेतन में स्थिरता सी आ गई है.”
मध्य प्रदेश में बीजेपी केवल 43 परसेंट ग्रामीण सीटें जीत सकी (फोटो: iStock)

कुल मिलाकर, इसका मतलब ये निकला कि 2014 के बाद से गांव में रहने वाले ज्यादातर लोगों की आमदनी पिछले चार साल में जस की तस है. यही वजह है कि इन तीन राज्यों में ग्रामीण सीटों पर बीजेपी का बुरा हाल रहा.

मध्य प्रदेश में बीजेपी केवल 43 परसेंट ग्रामीण सीटें जीत सकी. राजस्थान में ये सिर्फ 34 परसेंट और छत्तीसगढ़ में तो महज 15 परसेंट ही रह गया. इन्हीं राज्यों में पिछले चुनाव के मुकाबले यह गिरावट बहुत बढ़ी है.

अगर 2014 के लोकसभा चुनावों से तुलना करें, तो यह गिरावट और भी बड़ी हो जाती है. गुजरात विधानसभा चुनावों में जो प्रवृत्ति हमने देखी थी, यह उसी का विस्तार है, जहां बीजेपी ग्रामीण और अर्धशहरी इलाकों में महज 43 फीसदी सीटें ही जीत सकी थी.

बीजेपी से ग्रामीण भारत नाराज, क्या और प्रमाणों की जरूरत है?

अगर ग्रामीण हताशा जारी रहती है, तो आने वाले लोकसभा चुनावों में इसके और क्या प्रभाव होंगे? आइए याद करें, जब भारतीय चुनावी इतिहास में पहली बार 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने ग्रामीण इलाकों की सीटों का बड़ा हिस्सा झटक लिया था. पार्टी ने 342 ग्रामीण सीटों में से 178 पर जीत हासिल की थी, जो 2009 के लोकसभा चुनाव में जीती गयी 66 सीटों के मुकाबले काफी ज्यादा था. दूसरी ओर कांग्रेस को ग्रामीण इलाकों में जबरदस्त गिरावट झेलनी पड़ी थी, जो 2009 में 116 से गिरकर 2014 में 27 सीटों पर पहुंच गयी.

5 राज्यों में विधानसभा चुनाव नतीजों का लोकसभा पर असर

चार राज्यों-गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों के हिसाब से अगर ट्रेंड बदलता है, तो बीजेपी को 342 ग्रामीण सीटों में सेंचुरी तक पहुंचने के लाले पड़ सकते हैं. सीटों का यह नुकसान बहुत बड़ा है.

कांग्रेस का उत्थान बीजेपी के लिए बहुत बुरी खबर

(फोटो: PTI)

मैंने इसे पहले भी उठाया है और इस बात पर जोर देना जरूरी है कि कांग्रेस का आधार हासिल करना बीजेपी के लिए बुरी खबर है. तीन राज्यों में, जहां दो मुख्य पार्टियां सीधे लड़ाई में हैं, कांग्रेस ने अपनी जीत की दर को 2013 में 23 फीसदी से बढ़ाकर अब 54 फीसदी पहुंचा दिया है.

कांग्रेस के पिच पर खेलना बीजेपी के लिए नुकसानदेह

अगर बीजेपी और कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनावों में बराबरी पर आ जाएं, तो खेल का परिणाम काफी अलग हो सकता है. हमने ऐसा होते हुए हाल के चुनावों में गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देखा है.

कांग्रेस और बीजेपी का बराबरी का मुकाबला हुआ, तो बीजेपी को करीब 70 लोकसभा सीटों का नुकसान हो सकता है. 2014 में कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले में बीजेपी की स्ट्राइक रेट यानी चुनाव जीतने की क्षमता 88 फीसदी थी. ऐसा लगता है कि अब यह बदलने वाला है.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हर चुनाव अलग होता है और लोकसभा चुनाव को कभी भी विधानसभा चुनावों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव जिस ट्रेंड की ओर इशारा करते हैं, वह सत्ताधारी पार्टी के लिए बहुत सकारात्मक नहीं है, बशर्ते अभी और अगले साल अप्रैल-मई के दरम्यान कोई नाटकीय बदलाव न हो जाए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT