मेंबर्स के लिए
lock close icon

नितिन गडकरी मोदी के विकल्प हैं या संघ की चाल?

बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व गडकरी को रोकने के लिए उनके विरुद्ध इन कारणों से कार्रवाई नहीं कर सकता.

नीलांजन मुखोपाध्याय
नजरिया
Published:
बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व गडकरी को रोकता क्यों नहीं?
i
बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व गडकरी को रोकता क्यों नहीं?
(फोटो: द क्विंट)

advertisement

केंद्रीय मंत्री के लगातार ऐसे बयानों के क्या मायने हैं, जो बीजेपी नेतृत्व को परेशानी में डालते हैं, जिसके बाद बीजेपी के प्रवक्ता यह माथापच्ची करने लग जाते हैं कि मीडिया के सवालों और बहस जैसे मौकों पर क्या कहना है, कैसे कहना है?

इस सवाल का कोई बना-बनाया जवाब नहीं है, जिससे लंबे समय से राजनीतिक पर्यवेक्षक भी परेशान हैं.

दिल्ली से लेकर नागपुर तक संघ परिवार सर्किल में भी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं हैं. यहां तक कि उत्तर प्रदेश में भी, जहां इस लेखक ने हाल में लगातार यात्राएं की हैं. यह वो क्षेत्र है, जो बीजेपी के लिए 2014 की टैली हासिल करने के नजरिए से सबसे अहम है.

बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व गडकरी को रोकता क्यों नहीं?

एक स्तर पर सोच यह है कि महाराष्ट्र का यह नेता मोदी-भागवत-जोशी (भैय्याजी) समूह के लिए सरदर्द हो चुका है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व उन्हें रोकने के लिए उनके विरुद्ध दो कारणों से कार्रवाई नहीं कर सकता.

पहला, यह चुनावी वर्ष है और एक वरिष्ठ सदस्य के खिलाफ अनुशासन की कार्रवाई उल्टी पड़ सकती है. इससे विपक्ष को पका-पकाया भोजन मिल जाएगा और फिर संगठन के भीतर असंतोष भी बढ़ेगा. यह संदेश जाएगा मानो मोदी-शाह का युग खत्म हो चला हो. इस तरह की सोच से विपक्ष भी सहमत है, क्योंकि उसे आने वाले समय में बीजेपी के अभियानों को देखते हुए एक सम्भावना दिखती है, उनमें उम्मीद जगती है.

आरएसएस का ‘प्लान बी’?

दूसरा नजरिया ये है कि गडकरी के लगातार हमले आरएसएस के ‘प्लान बी’ का हिस्सा है. इस सोच से बड़ी तादाद में लोग सहमत हैं और इसमें आश्चर्यजनक रूप से आरएसएस नेटवर्क की कई अहम हस्तियां भी शामिल हैं.

जब बीजेपी के पास संख्या कम पड़ जाए और आरएसएस को किसी विश्वासपात्र की जरूरत हो, तो वैसी स्थिति में वे आरएसएस के भरोसेमंद हैं. वे गठबंधन में नए सहयोगियों को भी आकर्षित कर सकते हैं.

इस समूह का तर्क है कि गडकरी में मोदी का मुकाबला करने की क्षमता है, जैसी क्षमता नकचढ़े एलके आडवाणी के समक्ष अटल बिहारी वाजपेयी में थी. ऐसी सोच को इस वजह से भी तवज्जो मिलती है, क्योंकि हिन्दुत्व का ठप्पा नहीं होने के बावजूद दिल से उनकी वफादारी अडिग है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

धोखे का खेल?

तीसरा नजरिया ये है कि नरेंद्र मोदी के मुकाबले गडकरी को एक विनम्र और जिम्मेदार विकल्प के रूप में पेश करना वास्तव में आरएसएस की चाल है, ताकि उदारवादी सोच रखने वालों को पार्टी से जोड़े रखा जाए और उनके भी वोट हासिल किए जाएं.

(Photo: Erum Gour/The Quint)

इस वर्ग का मानना है कि ऐसे लोगों ने 2014 में बीजेपी का पूरी तरह साथ दिया था, वो इस बार या तो नोटा मतदाताओं की संख्या बढ़ाएंगे या फिर विपक्षी उम्मीदवार को वोट देना चाहेंगे, क्योंकि प्रधानमंत्री की दबंग शैली ने उन्हें अपने से दूर कर दिया है. वे मानते हैं कि एक बार लक्ष्य हासिल हो जाने और छोटा ही सही, दूसरा जनादेश मिल जाने के बाद गडकरी ‘सक्षम मंत्री जो वे हैं’ की भूमिका में दोबारा जा सकते हैं, क्योंकि मोदी को जनसमर्थन है.

फिलहाल गडकरी उतना खुलकर मोदी को आड़े हाथों नहीं ले रहे हैं. तर्क-वितर्क आगे बढ़ेंगे और इससे लोगों के मन में विकल्प का भाव जगेगा और इस वजह से रेगिस्तान जैसे हालात में वे क्षमता दिखलाएंगे.

संघ परिवार में चेहरा देखकर कोई काम नहीं होता, क्योंकि यहां सबकुछ कई स्तरों पर होता है. उदाहरण के लिए संघ में कई लोग हैं, जो गडकरी को ‘संघ का बेटा’ के रूप में पेश करते हैं, उन्हें नागपुर में जन्मा बताते हुए बहुत छोटी उम्र से उनके संघ के साथ जुड़े रहने की बात कहते हैं. वहीं दूसरी ओर ऐसे कई लोग और समूह हैं, जो यह स्थापित करने के लिए तड़प रहे हैं कि गडकरी अब नागपुर के चहेते नहीं रह गए हैं.

यह समूह अपने दावे के समर्थन में यह तथ्य रखता है कि सरसंघ चालक मोहन भागवत ने बीते दो वर्षों के दौरान राजनीतिक मामलों पर चर्चा के लिए गडकरी को कभी व्यक्तिगत रूप से मौका नहीं दिया. इसके बजाए उन्होंने मंत्री को अपने कार्यकारी प्रमुख या सरकार्यवाह यानी भैयाजी जोशी से चर्चा करने की सलाह दी.

इसके उलट अमित शाह की पहुंच बिना रुकावट के भागवत तक है. इस तरह यह तर्क प्रभावशाली हो जाता है कि इस दौरान गडकरी विश्वस्त व्यक्ति तो बने हुए हैं, लेकिन वह किसी योजना का हिस्सा नहीं हैं.

गलती कर रहे हैं या सच्चाई बयां कर रहे हैं गडकरी?

नितिन गडकरी उन नेताओं से अलग हैं जो दूसरों को को नीचा दिखाते हैं.(फोटो: क्विंट हिंदी)

संघ नेटवर्क में कई ऐसे लोग हैं, जिनका दावा है कि बीजेपी की टैली में गिरावट आएगी, क्योंकि यह बहुत अधिक ‘दोस्ताना’ सरकार नहीं है. ऐसे आरएसएस कार्यकर्ता ध्यान दिलाते हैं कि बीजेपी नेतृत्व का रवैया रूखा रहा है. मोदी और उनके सहयोगी अपनी ही दुनिया में जी रहे हैं और वे भ्रम में हैं कि सबकुछ ठीक चल रहा है.

अपने स्तर से गडकरी अपने हमलों का मतलब इतनी आसानी से निकलने नहीं देते. एक बीजेपी नेता ने उनके बयानों के प्रभाव को कम करने की कोशिश करते हुए जोर देकर कहा, “वे हमेशा से गैर परम्परागत राजनीतिज्ञ रहे हैं. वे कुछ ऐसे हैं जो हमेशा धारा के विपरीत चलते हैं.” यहां तक कि सच्चाई बयां करते हुए भी वे ऐसा ही करते हैं.

यह कहते हुए वे नेता ठहठहाकर हंस पड़ते हैं कि गडकरी ने हमेशा ही “अपने आरोपों पर सफाई दी है और उन संदर्भों को बताया है जिसमें उन्होंने बयान दिए.” लेकिन तब गडकरी की सफाई से अक्सर अधिक नुकसान हुआ है.

उदाहरण के लिए 2018 में जब उन्होंने दावा किया कि बीजेपी ने बडे-बड़े वादे किए, क्योंकि उसे चुनाव जीतने का विश्वास नहीं था. बाद में उन्होंने कहा कि यह संसदीय चुनाव के संदर्भ में नहीं था, बल्कि महाराष्ट्र चुनाव के संदर्भ में था. यह अब भी बीजेपी के लिए परेशानी का सबब है, क्योंकि इससे बीजेपी गलत प्रतिबद्धता वाली पार्टी के रूप मे स्थापित होती है.

गडकरी उन नेताओं से अलग हैं, जो दूसरों को को नीचा दिखाते हैं. वे विनम्र और नपा-तुला बोलने वाले हैं. उनके लिए संपर्क और संबंध ही सबसे महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे मास लीडर नहीं हैं. जोड़-तोड़ की राजनीति के मास्टर गडकरी अलग-अलग लोगों और विभिन्न समूहों के बीच मान्य धारणाओं से अलग हैं.

जैसा कि किसी समय में आरएसएस में रहे व्यक्ति कहते हैं कि गडकरी “एक साथ अजित (हिन्दी सिनेमा के एक्टर जिन्हें खलनायक की भूमिका के लिए जाना जाता है) के तरल ऑक्सीजन की तरह संघ समेत हर किसी के लिए तरल भी हैं ऑक्सीजन भी.”

वे बताते हैं कि कई बार गडकरी किसी संस्था या व्यक्ति के लिए बहुत अधिक चुनौतीपूर्ण या डरावने हो जाते हैं. वहीं, वह जीवन रक्षक बनकर भी सामने आ जाते हैं.

गडकरी में यह दोहरी क्षमता है, जो आने वाले समय में राजनीतिक अस्थिरता के वक्त उन्हें ताकतवर बनाती है.

उनकी सफलता बिना कुछ कहे दावा कर सकने की क्षमता में है. वास्तव में यह आश्चर्यजनक होगा, अगर हम चुनावों के इस मौसम में गडकरी से और भी मसालेदार शब्द बाण नहीं सुनें.

(लेखक दिल्ली के पत्रकार हैं. उनकी लिखी पुस्तकें हैं : ‘The Demolition: India at the Crossroads’ और ‘Narendra Modi: The Man, The Times’. उनका ट्विटर हैंडल है @NilanjanUdwin. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT