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देश में राजनीतिक हवा बदली है. 5 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के रिवाइवल और बीजेपी के ग्राफ में गिरावट का ट्रेंड पक्का हो चला है. लेकिन आगे इस राजनीतिक हवा का रुख कैसा होगा और रफ्तार किस तरफ होगी, इस पर बहस चलती रहेगी.
एक तर्क है कि बीजेपी-एनडीए के सामने कई पार्टियां चुनाव लड़ रही होंगी और विपक्षी एकता की तस्वीर साफ नहीं है. ये तर्क थोड़ा सतही और अति सरल है. सच ये है कि देश की ज्यादातर लोकसभा सीटों पर दो पार्टियों/गठबंधनों के बीच सीधी टक्कर होने वाली है.
कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों में अभी मोल-तोल चलेगा और तस्वीर में बदलाव भी आएगा, लेकिन मोटा हिसाब ये है कि करीब 450+ सीटों पर सीधा मुकाबला होगा. बाकी 93 सीटों पर तिकोना मुकाबला हो सकता है. इनमें अभी 70 सीटें बंगाल, ओडिशा और दिल्ली की हैं, जहां अभी तिकोना मुकाबला दिखता है. इस पर विस्तार से आगे चर्चा करेंगे, लेकिन अभी ये देखते हैं कि इन सीटों/राज्यों को कैसे कैटेगरी किया जाए.
इस लिस्ट में कहा जा सकता है कि हरियाणा में चौटाला परिवार की पार्टियां भी हैं और वो तीसरा फैक्टर होंगी. लेकिन यहां लोकसभा चुनाव में वोटर ध्रुवीकरण ऐसा तेज होगा कि तीसरे फैक्टर का निर्णायक असर पड़े, इसकी सम्भावना कम है. विधानसभा चुनावों में ये पार्टियां शायद थोड़ा बड़ा फैक्टर हो सकती हैं.
इस कैटेगरी में महाराष्ट्र पर बहस है. बहुत लोग ये मानते हैं कि शिवसेना जिस तरह बीजेपी पर हमले कर रही है, शायद ये गठबंधन टूट जाए. ऐसा हुआ, तो यहां तिकोना मुकाबला हो सकता है और बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है. हमारा अनुमान है कि आखिरकार दोनों में सुलह हो जाएगी, यानी सीधा मुकाबला.
तमिलनाडु पर भी बहस है. ये मान भी लिया जाए कि डीएमके-कांग्रेस एक तरफ और AIADMK-बीजेपी एक तरफ होंगे, तो रजनीकांत और कमल हसन को कहां रखें. ये दोनों फिल्मी सितारे सीधे किसी गठजोड़ में नहीं भी जाते हैं, तब भी ये कहना सेफ होगा कि ये दोनों किसी न किसी गठजोड़ से अनौपचारिक रूप से जुड़ेंगे.
आंध्रा में कांग्रेस-टीडीपी गठजोड़ के सामने वाईएसआर कांग्रेस है और तेलंगाना में टीआरएस से सीधा मुकाबला होगा. यहां बीजेपी लड़ेगी और वोट कटर AIMIM भी. बीजेपी यहां फैक्टर नहीं होगी. और वोट कटिंग का ऐसे जंगी मुकाबलों में अहम रोल नहीं होता.
उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है, जहां एसपी-बीएसपी का गठजोड़ पक्का है. यहां भी कांग्रेस के साथ खूब मोल-तोल चलेगा. अंत में शायद कोई सुलह-समझौता हो जाए. न भी हुआ, तो कांग्रेस यहां सब सीटों पर चुनाव लड़ कर बीजेपी को हराने का अपना सबसे बड़ा लक्ष्य खुद ही कमजोर नहीं करेगी. किसी तरह की अनौपचारिक जुगलबंदी यह भी हो सकती है.
बंगाल दिलचस्प है. यहां चार खिलाड़ी हैं- सत्तारूढ़ टीएमसी, बीजेपी, लेफ्ट और कांग्रेस. टीएमसी अगर कांग्रेस को कुछ सीटें दे दे, तो उसका रिस्क फैक्टर कम होगा. लेफ्ट फ्रंट की मौजूदगी ममता को फायदा पहुंचाएगी या नुकसान- अभी पता नहीं. कांग्रेस सीधे या अनौपचारिक तौर पर ममता से एक ताल-मेल करेगी, इसकी पूरी संभावना है. इसीलिए बंगाल को आप तिकोने मुकाबले वाले राज्य में रख सकते हैं.
बाकी बचे उत्तर-पूर्व के राज्य और केंद्र शासित क्षेत्र, जहां 17 सीटें हैं और ज्यादातर में सीधा मुकाबला होगा.
यानी जमीन पर दोनों पक्षों के गठजोड़ साफ हैं. बीजेपी 'मोदी के सामने कौन' का नारा इसीलिए उछलती है, क्योंकि उसको पता है कि राज्यों के स्तर पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों में ओवरलैप बहुत कम हैं. इसीलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि 2019 चुनाव में करीब 85% सीटों पर हम सीधा मुकाबला देखेंगे.
बीजेपी हर चुनाव में विरोधी वोटों को बंटवाने के लिए हरसंभव फॉर्मूले का इस्तेमाल करती है, वो अब भी होगा. बागी, निर्दलीय, छोटे लोकल दल, शिवपाल सिंह यादव से लेकर AIAMIM जैसे खिलाड़ी- सभी होंगे मैदान में. लेकिन बागी तो बीजेपी को भी झेलने पड़ेंगे.
विपक्ष की असली चुनौती दूसरी है. वो ये है कि क्या वो इस सीधे मुकाबले को पक्का करने के लिए हर राज्य में नहीं, तो कम से कम हर लोकसभा सीट में एक चुनाव चिह्न उतार सकता है? और आपसी तालमेल को कितनी जल्दी अंजाम देता है? उसके पास दरअसल 12 हफ्तों से कम का वक्त है.
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Published: 20 Dec 2018,07:18 AM IST