मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 भगवान कृष्ण ने ‘संपादक अर्जुन’ से कहा: उनके झूठ का जवाब दो 

भगवान कृष्ण ने ‘संपादक अर्जुन’ से कहा: उनके झूठ का जवाब दो 

अमेरिकी न्यूज चैनल नाम लेकर अपने पथभ्रष्ट प्रतिस्पर्धियों की पोल खोल रहे हैं!

राघव बहल
नजरिया
Updated:
आज भी भारत और अमेरिका के राजनीतिक माहौल की सरगर्मियां हैरान करने की हद तक एक जैसी हैं.
i
आज भी भारत और अमेरिका के राजनीतिक माहौल की सरगर्मियां हैरान करने की हद तक एक जैसी हैं.
(फोटो: अर्णिका काला/क्विंट हिंदी)

advertisement

पिछले हफ्ते मैंने ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार अमेरिका के दोनों किनारों की यात्रा की. न्यूयॉर्क से लॉस एंजेल्स और वहां से वापसी. ये यात्रा हमेशा ही आंखें खोलने वाली होती है, क्योंकि मीडिया, बिजनेस और राजनीति के मामले में भारत हमेशा अमेरिका के रास्ते पर चलता रहा है, भले ही उससे एक या दो दशक पीछे. दरअसल, मैं दोनों देशों को "ब्रिटिश उपनिवेशवाद की कोख से जन्मे दो ऐसे भाई मानता हूं, जिनके जन्म में 150 साल का फासला है". दोनों इतने ज्यादा एक जैसे हैं.

आज भी भारत और अमेरिका के राजनीतिक माहौल की सरगर्मियां हैरान करने की हद तक एक जैसी हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व बाहरी बर्ताव में बिलकुल अलग हैं- एक भद्दे ट्वीट लिखता रहता है, जबकि दूसरा सोची-समझी रणनीति के तहत खामोशी से काम लेता है, लेकिन दोनों नेताओं ने दस हजार मील की दूरी पर मौजूद दो बड़े लोकतांत्रिक देशों में एक जैसा ध्रुवीकरण पैदा कर दिया है. दोनों के पास कट्टरपंथी समर्थकों की फौज है, जो लगातार जहर उगलने और विरोधियों को धमकाने का काम करते हैं. बेहद विनम्र आलोचकों को भी गद्दार घोषित कर दिया जाता है. आप या तो उनके प्यादे हो सकते हैं या फिर दुश्मन.

दूसरे देशों से आकर बसे लोग और अल्पसंख्यक डरे-सहमे रहते हैं. दोनों ही नेता अपना सीना ठोककर बड़े-बड़े दावे करते हैं और हर बात का श्रेय खुद को देते हैं, फिर चाहे वो ऊंची आर्थिक विकास दर और शेयर बाजार में उछाल हो या फिर पिछली सरकार का कचरा साफ करने और सत्ता के गलियारों में पसरी गंदगी को बाहर निकालने जैसे दावे और स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार संस्थानों के बारे में उनका क्या मानना है? ओह...झूठी और फर्जी खबरें फैलाने वाली इन तमाम राष्ट्र-विरोधी दुकानों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए !

लेकिन भारत में नजर आ रहे कायरता भरे सरेंडर की जगह अमेरिका के समाचार संस्थान ट्रंप को डटकर जवाब देने का दमखम और साहस दिखा रहे हैं. वो अब खुलकर, बिना किसी हिचक के पलटवार कर रहे हैं और पुराने जमाने की संकोच भरी परंपराओं को छोड़ कर “जंग में सबकुछ जायज है” वाले तेवर अपना रहे हैं.

गुजरे जमाने के नजाकत भरे दौर में संपादक एक अलिखित नैतिक नियम का पालन करते थे - वो कभी दूसरे समाचार संस्थान की खबर पर न तो सवाल खड़े करते थे और न ही उसे गलत साबित करने या नीचा दिखाने की कोशिश करते थे. हां, आपस में होने वाली अनौपचारिक बातचीत के दौरान दूसरे रिपोर्टर को 'सेट' कर लिए जाने, उसके फर्जी जानकारी में फंस जाने या 'स्कूप' गढ़ने के बारे में कानाफूसी जरूर होती थी, लेकिन वो सारी खुसर-पुसर 'ऑफ द रिकॉर्ड' रहती थी. मगर अब ऐसा नहीं है.

जीनी फेरिस पिरो, किंग ट्रंप की खुद उनसे भी बड़ी पैरोकार

मैं ये देखकर दंग रह गया कि अमेरिकी न्यूज चैनलों ने एक नया कोड ऑफ कंडक्ट अपना लिया है, जिसमें वो अपने प्रतिस्पर्धी चैनलों का नाम लेकर उनकी खिंचाई करते हैं, दूसरों के शो की वीडियो क्लिप्स निकालकर अपने शो में चलाते हैं और फिर उस पर बेहद तीखे पलटवार करते हैं.

जीनी फेरिस पिरो फॉक्स न्यूज पर आने वाले वीकेंड शो "जस्टिस विद जज जीनी" की दिलचस्प शख्सियत वाली होस्ट हैं. 1990 के दशक की शुरुआत में वो वाकई वेस्टचेस्टर काउंटी कोर्ट की जज रह चुकी हैं और रिपब्लिकन पार्टी की राजनीति में भी सक्रिय रही हैं. उनके पति को (जिनसे बाद में उनका तलाक हो गया) टैक्स फ्रॉड का दोषी पाए जाने पर 29 महीने की जेल हो चुकी है. पिरो 2005 में न्यूयॉर्क सीनेटर के चुनाव के दौरान हिलरी क्लिंटन के खिलाफ उम्मीदवार घोषित होने के बेहद करीब तक पहुंच गई थीं. उस वक्त रियल एस्टेट कारोबारी डॉनल्ड ट्रंप (और टॉमी हिलफिगर) ने उनके कैंपेन के लिए फंड भी दिया था.

बाद में उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्टसेलर लिस्ट में नंबर वन रही अपनी किताब “लायर्स, लीकर्स एंड लिबरल्स : द केस अगेंस्ट द एंटी-ट्रंप कॉन्सपिरेसी” में अमेरिकी राष्ट्रपति का पूरी ताकत से बचाव किया. वो एक बेशर्म पोस्ट-ट्रुथ एक्टिविस्ट हैं, जो ये दावा कर चुकी हैं कि अबु बकर अल बगदादी को “ओबामा ने 2009 में कैद से रिहा कर दिया था”.

जब रूस के राष्ट्रपति के साथ उस "शर्मनाक" प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए ट्रंप की चौतरफा आलोचना हुई, तो पिरो ने उनके बचाव में कूदते हुए उलटा सवाल दाग दिया, "तो उन्हें क्या करना चाहिए था? क्या वो बंदूक लेकर पुतिन को गोली मार देते?" कुछ लोगों का तो यहां तक अनुमान है कि ट्रंप जेफ सेशन्स को हटाकर पिरो को अटॉर्नी जनरल भी बना सकते हैं. ये कोई हैरानी की बात नहीं है कि पिरो सेशन्स को "अमेरिका का सबसे खतरनाक आदमी" कह चुकी हैं. वो एक कैंसर सर्वाइवर भी हैं.

मैंने पिछले शनिवार को न्यूयॉर्क में रॉबर्ट म्यूलर पर पिरो का बेहद एकतरफा और पक्षपातपूर्ण शो देखा (म्यूलर किसी तरह के दबाव में झुके बिना राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ जांच कर रहे हैं). अपने इस शो में पिरो ने कहा, "जब बात बुरी तरह बिगड़ जाती है और क्राइम सीन से सारे सबूत मिटाने होते हैं तो माफिया डॉन क्लीनर को बुलाता है, जो मारे गए व्यक्ति के शव को ठिकाने लगाता है या अपराध के बाद सबूतों को छिपाने का काम करता है.....और जब डेमोक्रेट्स के लिए हालात पूरी तरह बिगड़ जाते हैं, तो वो सीरियल क्लीनर (यानी म्यूलर) को बुलाते हैं."

आरोपों से भरे अपने इस बयान का अंत उन्होंने ये कहते हुए किया कि "म्यूलर बौखला गए हैं" क्योंकि उनके पास ट्रंप के खिलाफ "कुछ नहीं" है. उन्होंने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया जो एक पत्रकार को करना चाहिए. कोई तथ्य नहीं दिए. सिर्फ एक बड़ा और निराधार दावा कि "म्यूलर बौखला गए हैं" - और फिर इस दावे को अनगिनत बार दोहराया गया, ताकि उसे किसी भी तरह "सच" मान लिया जाए.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

अमेरिकी न्यूज चैनल नाम लेकर अपने पथभ्रष्ट प्रतिस्पर्धियों की पोल खोल रहे हैं!

अगली सुबह मैंने CNN लगाया. ब्रायन का शो "रिलायबल सोर्सेस" ऑन एयर था. मैं तब बिलकुल हैरान रह गया, जब उन्होंने जीनी पिरो की वो क्लिप दिखाई जिसमें म्यूलर पर "बौखलाने" का आरोप लगाया गया था - CNN के एक शो में फॉक्स न्यूज की क्लिप खुलेआम दिखाई जा रही थी, पूरी ब्रैंडिंग और सौजन्य के साथ ! कोई सावधानी भरे शब्द नहीं, कोई खेद नहीं, कोई हिचकिचाहट नहीं. और फिर स्टेल्टर ने "म्यूलर के बौखला जाने" की मनगढ़ंत खबर दिखाने पर पिरो की जमकर धुलाई कर दी. ये आमने-सामने की सीधी टक्कर थी. अपने उसी शो में स्टेल्टर ने NBC के कार्यक्रम "मीट द प्रेस विद रुडी गुलियानी" की क्लिप भी दिखाई, जिसमें ट्रंप के करीबी ने ये अविश्वसनीय दावा किया कि "सत्य नहीं है सत्य".

ये हमारी खबरों की दुनिया की नयी जमीन है. अपने प्रतिस्पर्धी की खबर पर टिप्पणी नहीं करने की प्रोफेशनल मर्यादा अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है. अमेरिकी न्यूज चैनल भगवान कृष्ण के उस उपदेश पर अमल कर रहे हैं, जो उन्होंने भगवद्गीता में बॉस्टन के युद्धक्षेत्र में हथियार उठाने से हिचकिचाते अर्जुन के लिए दिया है :

अर्जुन: हे गोविंद, मैं अपने बड़ों और गुरुजनों पर हाथ उठाने की कल्पना मात्र से दुखी और निराश हो रहा हूं....

कृष्ण: हे अर्जुन, अगर तुम सत्य के इस युद्ध को लड़ने से इनकार कर दोगे, तो तुम्हें योद्धा कौन कहेगा? अगर तुम इस चुनौती को स्वीकार नहीं करोगे, जो तुम्हारा कर्तव्य है, तो तुम एक आम पापी की तरह धिक्कारे जाओगे. अपनी पुरानी नैतिकता को छोड़ो. तुम्हें इस बुराई का जवाब उसी अंदाज में देना होगा, असत्य का मुकाबला सत्य से करना होगा.

अब भारत के "संपादक अर्जुनों" को लड़नी है दिल्ली की लड़ाई

न्यूयॉर्क से नई दिल्ली की फ्लाइट के दौरान पूरे समय मैं एक दुविधा से जूझता रहा- क्या अमेरिका के न्यूज चैनल जो कर रहे हैं वो सही है? अपने प्रतिस्पर्धी चैनल के शो की क्लिप उठाकर अपने शो में दिखाना और फिर अपने अखाड़े में उसकी धज्जियां उड़ाना क्या ठीक है? क्या हालात इतने खराब हो चुके हैं कि बरसों के आजमाए हुए नैतिक नियमों को ध्वस्त कर देना चाहिए? एक पुरानी दलील का इस्तेमाल करें, तो क्या "सही मकसद के लिए किसी भी तरीके का इस्तेमाल करना जायज है"? मेरे अंदर का अर्जुन बेचैन और परेशान था.

मैं दिल्ली पहुंचा, तो यहां खबरों की दुनिया में दो "बड़े" (मैं मजाक कर रहा हूं! ) विवाद छिड़े हुए थे. पूर्व क्रिकेटर और अब कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू अपने खिलाड़ी जीवन के दोस्त और पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण में हिस्सा लेने पाकिस्तान गए थे. वहां वो पाकिस्तान के आर्मी चीफ से पंजाबी झप्पी वाले अंदाज में गले मिल लिये, वो भी दो बार!

क्यों? क्योंकि पाकिस्तान ने अचानक ही संकेत दिए कि वो अगले साल गुरु नानक देव की 550वें जयंती के मौके पर भारतीय तीर्थयात्रियों की करतारपुर साहिब यात्रा के लिए फ्री कॉरिडोर मुहैया कराने को तैयार है. लेकिन हमारे देसी जीनी पिरो को इससे कोई मतलब नहीं. उन्होंने न सिर्फ सिद्धू को गद्दार बताते हुए हंगामा खड़ा कर दिया, बल्कि उनके राजनीतिक बॉस राहुल गांधी को भी ऐसे ही जहालत भरे शब्दों से नवाजा गया. दोनों को "भारत-विरोधी, पाकिस्तान-समर्थक" कहा जाने लगा. कोई सावधानी भरे शब्द नहीं, कोई खेद नहीं, कोई हिचकिचाहट नहीं.

और फिर राहुल गांधी ने लंदन में कह दिया कि “21वीं सदी में लोगों को दरकिनार कर देना बेहद खतरनाक है”. उन्होंने साफ-साफ दिखने वाले कार्य-कारण संबंध को समझाते हुए कहा कि बेरोजगारी, गरीबी और राजनीतिक तौर पर अलग-थलग किए जाने से अतिवाद और हिंसा को अपनी जड़ें जमाने का मौका मिल जाता है.

राहुल ने एक और संदर्भ में ये भी कहा कि भारतीय मर्दों की सोच पुरुष-प्रधान है और वो महिलाओं के साथ बराबरी का बर्ताव नहीं करते. इस स्वयंसिद्ध सच्चाई से कौन इनकार कर सकता है? लेकिन हमारे देसी जीनी पिरो इन बातों को गलत मोड़ देकर टूट पड़े और राहुल पर "भारतीय मुसलमानों और भारतीय संस्कृति का अपमान" करने के आरोप लगाने शुरू कर दिए. शब्दों की ये गोलाबारी उम्मीद के मुताबिक "पाकिस्तान-परस्त" होने के तंज के साथ पूरी हुई. एक बार फिर, एक बड़ा और मनगढ़ंत आरोप, बिना किसी सबूत के अनगित बार दोहराया गया, ताकि लोग इसे किसी तरह "सच" मान लें.

लेकिन क्या भारत के किसी भी भरोसेमंद न्यूज एंकर ने पत्रकारिता की सही राह से पथभ्रष्ट हो चुके इन लोगों पर नाम लेकर पलटवार करने की हिम्मत दिखाई? सीधा और आमने-सामने का वैसा मुकाबला किया, जिसमें CNN के ब्रायन स्टेल्टर ने फॉक्स न्यूज की जीनी पिरो के झूठ को बेनकाब कर दिया था? नहीं. हमारे बचे-खुचे न्यूज एंकर्स (अब ऐसे गिने-चुने ही रह गए हैं) में किसी ने भी ऐसी हिम्मत नहीं दिखाई. या शायद वो अब तक अपनी उसी पुरानी नैतिकता के प्रेत से जूझ रहे हैं, जो लंबे अरसे पहले ही मतलब खो चुकी है.

अब शायद वो वक्त आ चुका है जब भारत में खबरों की दुनिया के बचे-खुचे दिग्गजों को नई दिल्ली के इस युद्ध के लिए कृष्ण के साथ एक नया संवाद करना चाहिए :

भारत के संपादक अर्जुन: हे मधुसूदन, मेरे चारों ओर ऐसे बुरे और बेईमान प्रोफेशनल भरे हैं, जो लगातार झूठ और फर्जी खबरें फैलाते रहते हैं. लेकिन मैं उनका मुकाबला कैसे करूं? धनुष उठाते समय मेरे हाथ कांपने लगते हैं ... आखिरकार, पत्रकारिता के ये कौरव मेरे प्रोफेशनल भाई-बंधु हैं ?

कृष्ण: हे अर्जुन, अपनी अंतरात्मा में सोये पांडव को जगाओ. ये सच्चाई के लिए लड़ा जाने वाला एक पवित्र युद्ध है, और इसमें सच के लिए लड़ने वाले हर पत्रकार-सैनिक को संपादकीय स्वर्ग की सीढ़ी मिलेगी. उठो और अपनी अंतरात्मा में कोई दुविधा रखे बिना लड़ो.

चलते-चलते : प्रिय पाठक, कृपया इस लेख को कोट-ट्वीट करते हुए भारत के भक्त टीवी एंकर्स (#India’sBhaktTVAnchors) को टैग करें. शायद इससे मरी हुई अंतरात्मा फिर से जाग उठे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 26 Aug 2018,07:37 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT