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‘मोदी है तो मुमकिन है’...ऐसा हर जगह-हर बार नामुमकिन है

बेरोजगारी, मंदी, किसान...इन पर नहीं दिया ध्यान तो अच्छा नहीं होगा अंजाम

संतोष कुमार
नजरिया
Updated:
महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना को बमुश्किल बहुमत मिला है, हरियाणा में वो भी नहीं
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महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना को बमुश्किल बहुमत मिला है, हरियाणा में वो भी नहीं
(फोटोः PTI)

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अगर फिल्म 'दीवार' स्टाइल में भारतीय लोकतंत्र के दो भाइयों के बीच बातचीत होगी तो शायद डायलॉग ये होंगे...

विपक्ष-मेरे पास बेरोजगारी, गरीब, किसान, मंदी का मुद्दा है...तुम्हारे पास क्या है?
बीजेपी-मेरे पास मोदी है

लेकिन जैसे गाड़ी, बंगला और पैसे के बरक्श शशि कपूर के लिए मां ही काफी थी, क्या वैसे ही बाकी तमाम मुद्दों के बनाम बीजेपी के लिए मोदी ही काफी हैं? हर बार नहीं-हर जगह नहीं. महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के नतीजे यही बता रहे हैं.

न 220 पार, न 75 पार

महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद मोदी से लेकर शाह तक ने जनता का शुक्रिया अदा किया कि जनता ने उन्हें जिताया है. सच्चाई ये है कि बीजेपी-शिवसेना ने महाराष्ट्र में '220 पार' और बीजेपी ने हरियाणा में '75 पार' का टारगेट लिया था. दोनों टारगेट फेल हो गए हैं

महाराष्ट्र में बमुश्किल बहुमत

महाराष्ट्र में पार्टी पिछली बार की 122 वाली टैली से काफी पीछे रह गई.शिवसेना के भी पहले से कम नंबर हैं. सरकार बनाने के लिए चाहिए 146 सीटें. पिछली बार सरकार 185 सीटों के साथ बनी थी . इस बार जादुई आंकड़े से आंकड़ा चंद सीट ही आगे बढ़ा है.

हरियाणा में हार जैसी जीत

हरियाणा में पिछली बार बीजेपी 47 पर थी, इस बार बहुमत भी नहीं मिला. कह सकते हैं कि सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन जिस सरकार के लगभग सारे मंत्री हार गए, वो जीत भी क्या जीत है?
दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को बढ़त मिली है. एनसीपी भी आगे बढ़ी है.

उपचुनाव में भी नफा नहीं, नुकसान ही

देश भर की जिन 51 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें पहले बीजेपी 20 सीटों पर काबिज थी. नतीजे बता रहे हैं कि अब महज 17 पर जीत मिली है.. यानी तीन सीटों का नुकसान....चूंकि ये सीटें पूरे देश में फैली हुई हैं.... इसलिए सिर्फ महाराष्ट्र और हरियाणा नहीं... पूरा देश बीजेपी को इशारा कर रहा है कि वो निराश है.

(कार्ड: Aroop Mishra)  
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2019 के लोकसभा चुनाव में ब्रह्मवाक्य था- मोदी नहीं तो कौन? इस लाइन पर बीजेपी को बंपर जीत मिली. नतीजा ये कि महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी मोदी ही छाए रहे. महाराष्ट्र में मोदी ने 9 और हरियाणा में 7 रैलियां कीं. लेकिन ये काम न आया.

भूखे पेट भजन होत न गोपाला

370, पाकिस्तान बैशिंग, और NCR के ख्याली खटोले पर सवार बीजेपी ने सोचा था कि सारे जमीनी मुद्दों को जमीन पर छोड़कर ऊपर-ऊपर ही निकल जाएंगे. लेकिन ऐसा हो न सका. देहात में एक कहावत है- पेट में खुद्दी-दिमाग में बुद्धि..मतलब ये कि जब पेट भरा हो तो इंसान एक से एक बातें करता है.

  • आप कहिए पाकिस्तान को पटक दिया, लेकिन इससे किसी को नौकरी कैसे मिलेगी? उसके लिए तो मंदी भगानी होगी. इकनॉमी की ग्रोथ बढ़ानी होगी.
  • आप कहिए कश्मीर से 370 हटा दिया, लेकिन इससे हरियाणा के मानेसर (जहां ऑटो कंपनियों ने खूब छंटनियां की हैं) में जिसकी नौकरी गई है, उस इंसान की मुसीबत कैसे हटेगी?
  • आप कहिए NRC ले आए. लेकिन कथित अवैध विदेशियों के चले जाने से महाराष्ट्र के सूखे खेतों में पानी तो नहीं आएगा?

वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी पर 'राष्ट्रवाद' पर रस ले-लेकर बातें करना एक बात है, लेकिन जब लोकल चुनाव में लोकल मुद्दों की बात आएगी तो वही वोटर हिसाब मांगेगा. हरियाणा-महाराष्ट्र में वही हुआ है.

दिल्ली, झारखंड में क्या होगा?

2014 लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद आप 2018 में तीन राज्य (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ हारे)..लेकिन इशारा नहीं समझे.


2019 लोकसभा चुनाव में महाप्रचंड जीत के बाद आप हरियाणा हारे हैं, महाराष्ट्र में मिट्टी गिली हुई है...अब भी समझ जाइए

बेरोजगारी, मंदी, किसान पर ध्यान दीजिए. दिल्ली से राष्ट्रवाद का गीत गाइए लेकिन राज्यों में जाकर सुनाइए कि क्या किया. याद दिलाने लायक कुछ हो तो याद दिलाइए कि वो कौन से काम किए, जिनसे जिंदगी आसान हुई है.

दिल्ली और झारखंड चुनाव आ रहे हैं. दिल्ली में आखिरी वक्त में अवैध कॉलोनियों को मरहम आपको सुकून दे सकता है लेकिन झारखंड में क्या करेंगे? संभल जाइए. काम हो तो काम गिनाइए, नहीं हो तो भरोसा दिलाइए की सही दिशा में काम करेंगे.

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Published: 24 Oct 2019,08:30 PM IST

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