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मराठा आरक्षण का राजनीतिकरण, 21वीं सदी के तीसरे दशक की बड़ी कहानी

मराठा आरक्षण का महाराष्ट्र और भारतीय राजनीति पर कितना और क्या प्रभाव पड़ेगा?

प्रकाश पवार
नजरिया
Updated:
Shivrajyabhishek din 2021| मराठा आरक्षण पर लगातार होती आ रही राजनीति
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Shivrajyabhishek din 2021| मराठा आरक्षण पर लगातार होती आ रही राजनीति
(फोटो: Twitter/@neetakolhatkar)

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मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में इसे लेकर हलचल शुरू हो चुकी है. महाराष्ट्र के इस मुद्दे का 21वीं सदी के दूसरे दशक की राजनीति पर काफी ज्यादा असर दिखा. लेकिन अब इस सदी के तीसरे दशक में इसका असर इतना नहीं होगा. हालांकि मराठा आरक्षण का महाराष्ट्र और भारतीय राजनीति पर कितना और क्या प्रभाव पड़ेगा? इसे लेकर हर स्तर पर चर्चा हो रही है.

आरक्षण के सवालों का राजनीतिकरण

इसके लिए यहां तीन कारण हैं. एक, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और डिजिटल मीडिया आरक्षण के सवाल का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रहे हैं.

मराठा आरक्षण के मुद्दे पर मीडिया की राजनीति करने की सीमा लगभग फीकी पड़ गई है. इसके बावजूद यह मुद्दा काफी चर्चित रहा है. इसलिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और डिजिटल मीडिया इस मुद्दे को लोकलुभावन तरीके से उठाते हैं. दो, राजनीतिक दल, जाति संगठन, मराठा आरक्षण विरोधी आंदोलन, मराठा आरक्षणवादी समूह भी वास्तविक राजनीति को आकार देने की क्षमता से परे हो गए हैं. वह यह नहीं समझते थे कि राजनीति गतिशील है.

इसने आरक्षण के मुद्दे का राजनीतिकरण करने की क्षमता को भी कम कर दिया है. तीसरा, विशेष रूप से मराठा समुदाय में मध्यम वर्ग का आरक्षण एक अहम मुद्दा है. लेकिन कुलीन मराठों, राजनीतिक मराठों और किसान मराठा वर्ग के मुद्दे मराठा आरक्षण से अलग हैं. इसका मतलब ये है कि आरक्षण के सवाल से राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाया जा सकता है. यह तीसरे दशक की बड़ी कहानी है.

मराठा आरक्षण का क्या होगा असर?

यह मामला मध्यम वर्ग के मराठों से जुड़ा है. मुझे लगता है कि इस मुद्दे का मध्यम वर्ग के मराठा समुदाय पर बड़ा असर पड़ेगा. क्योंकि मध्यम वर्ग मराठा जाति से निकला है. मराठा जाति के मध्यम वर्ग ने अस्सी के दशक से राजनीतिक मराठा वर्ग के खिलाफ जाना जारी रखा. साथ ही मराठा मध्यम वर्ग समय-समय पर कांग्रेस और एनसीपी के खिलाफ जाता रहा है. मध्यम वर्ग शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में शिवसेना और बीजेपी का समर्थक है.

शुरुआत में, शिवसेना पार्टी को व्यापक रूप से समर्थन दिया गया था. लेकिन दूसरे दशक से ही मराठा समुदाय में एक ऐसा मध्यम वर्ग है जो शिवसेना और बीजेपी को लगभग बराबर समर्थन करता है. लेकिन यह घटना दूसरे दशक में सबसे ज्यादा हुई. तीसरा दशक अभी शुरू हुआ है. यह स्पष्ट होता जा रहा है कि मराठा आरक्षण पर बीजेपी की नीति इस दशक में दोहरी है. इसलिए, सामान्य तौर पर, मराठा समुदाय का मध्यम वर्ग दूसरे दशक की तरह तीसरे दशक में बीजेपी को सर्वोच्च वरीयता नहीं देगा.

साथ ही मराठा समुदाय के मध्यम वर्ग को चार समूहों में बांटा जाएगा. चार पार्टियों बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के अलावा जाति संगठन और निर्दलीय नेता भी मध्यवर्गीय मराठा समुदाय में आरक्षण का मुद्दा उठाएंगे. नतीजतन, मराठा समुदाय में मध्यम वर्ग का पांचवां समूह उभर जाता है. पांचों समूहों का समन्वय और प्रबंधन राजनीति का अहम हिस्सा होगा. यह मुद्दा शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों से संबंधित है. शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में मराठा समुदाय के मध्यम वर्ग में तीन समूह हैं. उच्च धनी मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग, और निम्न मध्यम वर्ग. इन तीनों गुटों के विचार फिलहाल कांग्रेस विरोधी और एनसीपी विरोधी हैं. इनमें से, उच्च संपन्न मध्यम वर्ग बहुत पक्षपातपूर्ण बंधन का पालन नहीं करता है. लेकिन मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग दोनों ही कांग्रेस का विरोध करते हैं.

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इसके दो मुख्य कारण हैं. पहला कि जब दोनों कांग्रेस दल सत्ता में थे, उन्होंने मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं दिया. इससे दोनों कांग्रेस के खिलाफ रोष है. वहीं दूसरा ये कि, दोनों कांग्रेस पार्टियां ओबीसी को बिना धक्का दिए आरक्षण देने का स्टैंड लेती हैं. यह भूमिका मध्यवर्गीय मराठा समुदाय को स्वीकार्य नहीं है. तो इस तरह के दृष्टिकोण का प्रबंधन कैसे करें? यह दोनों कांग्रेस के लिए अगला कदम है.

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया और बीजेपी दोनों कांग्रेस पार्टियों के विरोध के मुद्दे के आधार पर इस वर्ग को बीजेपी की ओर मोड़ने की कोशिश करेंगे. यह काम चंद्रकांत पाटिल, आशीष शेलार, चित्रा वाघ और प्रवीण दरेकर कर रहे हैं.

अर्ध-शहरी मध्यम वर्ग मराठा

शहरी क्षेत्रों के बाहर मध्यवर्गीय मराठा समुदाय अर्ध-शहरी क्षेत्रों में पाया जाता है. उनका आर्थिक जीवन कांग्रेस-एनसीपी में मराठा नेतृत्व द्वारा नियंत्रित किया जाता है. संस्थागत नेटवर्क प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्ध-शहरी क्षेत्रों में मध्यम वर्ग के मराठों के दिमाग को बदल देते हैं. चुनाव यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया कभी-कभी ध्वस्त हो जाती है. यह ऐसे समय में एक चुनावी मशीन के रूप में कार्य करता है. इसलिए, कोई भी पार्टी और नेता उम्मीद के मुताबिक मध्यम वर्ग के मराठों के राजनीतिक व्यवहार का प्रबंधन करता है. यह सच है. इस कारण मराठा आरक्षण का मुद्दा बहुत उपयोगी नहीं है. अर्ध-शहरी क्षेत्रों में मध्यम वर्ग के मराठों की दोहरी निष्ठा है. ऐसे में उनके राजनीतिक व्यवहार में गतिरोध नजर आ रहा है. इसके चलते इस इलाके के मध्यमवर्गीय मराठों की राजनीति एनसीपी और बीजेपी के बीच बंटी हुई है.

मराठा-गैर मराठा सुलह

पिछले दो-तीन दशकों में मराठों और गैर मराठों के बीच विभाजन हुआ. लेकिन मराठों और ओबीसी के बीच की खाई कम हो गई है. इसके विपरीत मराठों और ओबीसी के बीच एक-दूसरे की सीमाओं को समझने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. विशेष रूप से इसके कई अच्छे उदाहरण हैं.

  1. माली और मराठा समुदाय (छगन भुजबल- अजीत पवार) का है.
  2. दूसरे दशक में दोनों के साथ-साथ धनगर और मराठा के बीच की दूरी बढ़ गई थी. दूसरे दशक की तुलना में, धनगर और मराठा के बीच संवाद की प्रक्रिया शुरू हो गई है (अजीत पवार - दत्तात्रेय भरणे).
  3. यह मुद्दा वंजारी समाज और मराठा (अजीत पवार- धनंजय मुंडे) के संदर्भ में भी नए सिरे से हो रहा है.
  4. कुणबी और मराठा (शरद पवार-अनिल देशमुख) के बीच राजनीतिक आदान-प्रदान भी शुरू हो गया है. सामाजिक सुलह के इस तथ्य को देखते हुए तीसरे दशक में मराठा आरक्षण का मुद्दा राजनीति के लिए बहुत उपयोगी नहीं होगा.
  5. महाराष्ट्र में मराठों और अनुसूचित जातियों के बीच राजनीतिक संघर्ष दूसरे दशक में भी बढ़ गया था. तीसरे दशक में संघर्ष की तीव्रता उतनी नहीं है जितनी दूसरे दशक में.
  6. दूसरे दशक तक मराठों और मुसलमानों के बीच मतभेद भी तेज होते गए. तीसरे दशक में, ऐसा लगता है कि मराठा अभिजात वर्ग ने खुद को मुस्लिम समुदाय के साथ जोड़ लिया है.

इसीलिए राजनीतिक समाजशास्त्र की दृष्टि से यह प्रक्रिया कांग्रेस पार्टी के लिए अनुकूल होने की अधिक संभावना है. इस प्रक्रिया से कांग्रेस पार्टी की ताकत बढ़ेगी या स्थिर रहेगी.

सवाल अलग और राजनीति अलग

कुलीन मराठों के तीन वर्गों, राजनीतिक, अभिजात वर्ग और किसान मराठों के लिए मराठा आरक्षण का सवाल बहुत महत्वपूर्ण नहीं है. इसलिए उनका रुख आरक्षण के सवाल को लेकर आक्रामक नहीं है. इन तीनों वर्गों के प्रश्न आरक्षण के अलावा अन्य प्रश्नों में शामिल हैं. उदा. कुलीन मराठा वर्ग को जनता का समर्थन कैसे मिलेगा? यही समस्या है. राजनीतिक मराठा अभिजात वर्ग सहकारी क्षेत्र के लिए पैकेज की उम्मीद कर रहा है. फिर कृषि में लगे मराठा वर्ग के आगे कृषि की समस्याएं हैं. नतीजतन, आरक्षण इन तीनों वर्गों के लिए जीवन और मृत्यु का मामला नहीं है.

राजनीतिक दल, राजनीतिक नेता, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया भले ही मराठा आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति करने का फैसला कर लें, लेकिन राजनीति नहीं होगी. इसके अलावा पूरे मराठा समुदाय की समझ भी बहुत जरूरी है. क्योंकि मराठा समुदाय के राजनीतिक विचार बहुआयामी हैं. उनके बीच हितों का टकराव है. इसलिए मराठा समुदाय की राजनीति एकीकरण पर आधारित नहीं है. नतीजतन, मराठा आरक्षण का मुद्दा राजनीति को ज्यादा ताकत नहीं देता. लेकिन पूरे महाराष्ट्र में माहौल कृत्रिम रूप से बनाया गया है. इसलिए, जनसंख्या शक्ति के संदर्भ में यह खोखली चर्चा जारी है कि मराठा आरक्षण का मुद्दा राष्ट्रीय और राज्य की राजनीति पर भारी प्रभाव डालेगा. विशेष रूप से, मराठा आरक्षण का मुद्दा सामाजिक न्याय के ढांचे के रूप में नहीं पाया गया है. सामाजिक न्याय के सामाजिक आंदोलन के ऐसे रूपों की भी तीसरे दशक में अपनी सीमाएं हैं. इस नए संदर्भ को देखते हुए मराठा आरक्षण का मुद्दा राजनीति में निर्णायक नहीं है.

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Published: 06 Jun 2021,07:09 PM IST

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