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Manoj Misra: यमुना संरक्षण के योद्धा को विनम्र श्रद्धांजलि

Manoj Mishra: नदी संरक्षण के योद्धा, फॉरेस्टर और एक्टिविस्ट मनोज मिश्रा का 4 जून को COVID जटिलताओं से निधन हो गया

डॉ प्रणब जे पातर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Manoj Misra</p></div>
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Manoj Misra

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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यमुना जिंदा रहेगी…. मनोज जी….

यमुना के सबसे वफादार बेटों में से एक मनोज मिश्रा की रविवार 4 जून को मौत हो गई, और वे अपने पीछे नदी संरक्षण की एक ऐसी अनोखी विरासत छोड़ गए हैं जिसका कोई वारिस नहीं है.

उनकी बेवक्त मौत ने यमुना संरक्षण आंदोलन में एक खालीपन छोड़ दिया है. एक युद्ध जिसका नेतृत्व उन्होंने 'यमुना जिये अभियान'  नामक एक ऐतिहासिक पहल के माध्यम से किया था.  इस पवित्र नदी के पुनरुद्धार के लिए उनकी असाधारण लड़ाई और अटूट विश्वास ने संरक्षण की दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी  है. मिश्रा अकेले खड़े होने के सच्चे प्रतीक थे.

सरकार का प्रतिनिधित्व करने और 20 सालों से अधिक भारतीय वन सेवा में नौकरी करने के बावजूद,  मिश्रा अक्सर पर्यावरण के हित और यमुना नदी की चिंता के लिए सरकारी एजेंसियों के साथ संघर्ष करते थे. वह अपने दिल के करीब के मामलों के लिए अपनी राय देने से कभी पीछे नहीं हटे.

जल संरक्षण आंदोलन के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश

उनके काम के बारे में मेरी जागरूकता अपेक्षाकृत हाल ही की है- सिर्फ 15 साल से ज्यादा. मुझे कभी भी उनके साथ करीब से काम करने का मौका नहीं मिला. हालांकि, वह जल संरक्षण की खोज में कई लोगों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश थे. कई एकलव्यों के लिए एक द्रोणाचार्य - मनोज मिश्रा यमुना के प्रति अपने प्रेम और जुनून से बहुत प्रेरित थे.

ऊर्जा और संसाधन संस्था (TERI) में मेरा काम केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक प्रमुख पहल यमुना एक्शन प्लान- II के तहत स्कूली बच्चों को यमुना संरक्षण के मुद्दों से जोड़ने पर केंद्रित है और इस तरह मैं मिश्रा जी के करीब पहुंचा.

पर्यावरण के क्षेत्र में अपने एक सदी के चौथाई लंबे कार्यकाल में,  मिश्रा की तुलना में मैं शायद ही कभी किसी ऐसे व्यक्ति से मिला हूं,  जिसकी रिटायरमेंट के बाद की कोशिशें काबिले तारीफ हों. एक नदी योद्धा के रूप में उनकी छवि बतौर फॉरिस्टर उनके पिछले योगदानों पर हावी हो गई.

वह हमें ऐसे समय में छोड़कर चले गए जब नदी और उनके लिए लड़ने वालों को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी. 5 जून को दुनिया पर्यावरण दिवस मना रही थी, और यमुना घाटों पर 'यमुना संसद' नामक एक प्रमुख अभियान की योजना बनाई जा रही थी, जो 1,00,000 लोगों को एक साथ लाने का वादा करता है ताकि हमें नदी की रक्षा के लिए हमारे कर्तव्य की याद दिलाई जा सके.

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प्रकृति से गहरा जुड़ाव

हालांकि वह 'यमुना संसद'  नाम के इस प्रमुख सभा को देखने के लिए नहीं होंगे,  जो एक मरती हुई नदी को बचाने की भावना को दर्शाएगी. 'यमुना संसद'  की गूंज निश्चित रूप से वे जहां कहीं भी होंगे उनतक पहुंच जाएगी.

जैसा कि हम एक पहेली के खो जाने पर शोक व्यक्त करते हैं, हमें उनके शानदार जीवन का जश्न मनाना चाहिए, जो हमेशा हमारे लिए एक साफ सुथरी बहती यमुना की कोशिश के लिए प्रेरणा बने रहेंगे.

मिश्रा ने हमेशा प्रकृति से गहरा जुड़ाव महसूस किया, जिसने उनके जीवन और कार्य को आकार देने में मदद की. प्रदूषण और उपेक्षा के कारण नदी के सामने आ रहे खतरे को भांपते हुए, उन्होंने अपनी अनोखी कोशिश - 'यमुना जिये अभियान' के माध्यम से नदी को पुनर्जीवित करने की यात्रा शुरू की.

'यमुना जिये अभियान '  कम्यूनिटी के सदस्यों, प्रकृति के प्रति उत्साही लोगों, शिक्षविदों, साइंटिस्ट और पॉलिसी मेकर्स को यमुना बचाने की सामूहिक लड़ाई लड़ने के लिए के सफलतापूर्वक साथ जोड़ने में सक्षम था.

उनका जाना एक ऐसा शून्य छोड़ गया है जिसे भरा नहीं जा सकता

मनोज मिश्रा की कोशिशें सिर्फ सेमिनारों और सम्मेलनों तक ही सीमित नहीं थीं. उन्होंने हाथों-हाथ नजरिये को अपनाने की जरुरत महसूस की और अनगिनत स्वच्छता अभियान, वृक्षारोपण पहल, और जागरूकता अभियान चलाकर यमुना को बचाने का काम शुरू किया, जो दिल्ली-एनसीआर के अंदर पर्यावरण के आसपास की हर चर्चा के केंद्र में यमुना मुद्दे को लाने का प्रयास करेंगे.

न्याय व्यवस्था में उनका पुख्ता यकीन था और इसलिए उन्होंने न्याय की उम्मीद में अदालतों के दरवाजे खटखटाए. वह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ऑन एनवायरमेंट का अक्सर दौरा करते थे.

मिश्रा का जाना अपने पीछे एक खालीपन छोड़ गया है जिसे भरा नहीं जा सकता लेकिन उनकी यादें हमेशा उन लोगों के दिलों में अंकित रहेंगी जो उन्हें जानते थे. उनके ट्विटर अकाउंट ने मौत की खबर को हिंदी में इस लाइन के साथ ब्रेक किया: 'रहें न रहें हम महका करेंगे...'

उनकी विरासत जिंदा रहेगी, जो पर्यावरण के प्रति उनके समर्पण, अखंडता और प्रतिबद्धता के लिए एक मिसाल बनी रहेगी, और यमुना नदी की तरह बहने वाली सुखदायक खुश्बू की तरह फैलती रहेगी.

ब्रिटिश लेखक जॉर्ज एलियट ने एक बार कहा था, "हमारे मृत हमारे लिए तब तक नहीं मरते, जब तक हम उन्हें भूल नहीं जाते". जब हम मिश्रा को श्रद्धांजलि दे रहे हैं, आइए हम अपनी प्रतिज्ञाओं को ताजा करें और यमुना नदी और उससे आगे के संरक्षण की दिशा में काम करना जारी रखें.

(डॉ प्रणब जे पातर एक पुरस्कार विजेता पर्यावरण और स्थिरता प्रोफेशनल हैं. उन्होंने लगभग 25 वर्षों के अनुभव के साथ टेरी, अर्थवॉच इंस्टीट्यूट, GIZ, वाटरएड, CEE, WTI, आदि जैसे प्रमुख राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ काम किया है. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखकों के अपने हैं. क्विंट हिंदी का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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