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उत्तर प्रदेश सरकार ने मथुरा (Mathura) के 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को तीर्थ क्षेत्र घोषित कर दिया है. इस दायरे में अब मीट-शराब की बिक्री पर रोक रहेगी. सीएम योगी ने कहा है कि जो लोग इनके कारोबार में थे वो दूध बेच सकते हैं.
वैसे एक और खबर है. जुलाई 2021 में सोशल मीडिया पर एक इंफोग्राफिक वायरल हुआ था जिसमें 2020 में राज्यों में सबसे ज्यादा निर्यात होने वाली वस्तुओं का जिक्र था. यह इंफोग्राफिक नीति आयोग के एक्सपोर्ट प्रिपेयर्डनेस इंडेक्स, 2020 पर आधारित था. यूं इस पर हैरान हुआ जा सकता है कि इस इंडेक्स में उत्तर प्रदेश को राज्यों में बोनलेस मीट का सबसे बड़ा निर्यातक बताया गया है. यहां इसके कारोबार की कीमत करीब 2012 मिलियन डॉलर है.
लेकिन उत्तर प्रदेश की एक समस्या इससे भी बड़ी है. वह अपने लोगों को आर्थिक अवसर मुहैय्या कराने में असफल रहा है. राज्य में बेरोजगारों की संख्या 2018 और 2020 के बीच बढ़कर 58 प्रतिशत हो गई है. ऐसे में पशुपालन, खासकर पोल्ट्री और बीफ सिर्फ ‘स्मॉल स्केल’ उद्योग नहीं रह गया. यह मुनाफे का सौदा है.
यह सिर्फ इत्तेफाक नहीं कि जब बोनलेस मीट उत्तर प्रदेश सरकार के लिए राजस्व का इतना बड़ा स्रोत है, तब मांस पर राजनीति की जा रही है. दूसरी तरफ स्थानीय पोल्ट्री उद्योग और छोटा मीट मार्केट लगातार परेशान हो रहा है.
इस तीखे विरोधाभास को बड़े कॉरपोरेट्स और हिंदुत्व शासन के बड़े राजनैतिक एजेंडा के आर्थिक हितों के लिहाज से समझा जा सकता है.
पिछले साल आगरा के दो प्रभावशाली पोल्ट्री किसानों रणजेंद्र राजपूत और देवेन्दर सिंह की मौत सुसाइड से हुई थी. कहा गया था कि उन्हें जबरदस्त घाटा हुआ था.
“अचानक से मार्केट डाउन हो गया था, 70-80 प्रतिशत प्राइज गिर गए. एक तो अफवाह और ऊपर से रिस्ट्रिक्शन. बहुत मुश्किल हुआ था, टेंशन थी, इसलिए पिताजी ने गलत कदम उठा लिया.” देवेन्दर के बड़े बेटे सतेंदर कहते हैं.
उन्होंने सरकार की अनदेखी का आरोप लगाया, और यह भी कहा कि उन्हें चिकन के ट्रांसपोर्टेशन में बहुत दिक्कत होती थी. प्रशासन की तरफ से बहुत परेशान किया जाता था. खास तौर से 2020 में कोविड-19 के पहले लॉकडाउन के दौरान. पश्चिमी उत्तर प्रदेश किसान ब्रॉयलर्स फेडरेशन के नेता कमल अरोड़ा ने मांग की थी कि लॉकडाउन के कारण उन्हें जो नुकसान हुआ है, उत्तर प्रदेश सरकार उसकी भरपाई करे. लेकिन उसी यूनियन के प्रतिनिधि एफएम शेख कहते हैं कि उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला.
3 अप्रैल 2020 को उत्तर प्रदेश के पशुपालन निदेशक ने स्पष्ट किया कि “अंडे, चिकन और मीट अनिवार्य वस्तुएं हैं.” हालांकि लखनऊ के लोगों और बलोचपुरा मीट मार्केट की दुकानों के हिसाब से लखनऊ में मीट पर तीन महीने तक अघोषित प्रतिबंध लगा रहा, इसके बावजूद कि उत्तर प्रदेश प्रशासन ने मीट और पोल्ट्री की बिक्री पर कुछ शर्तों के साथ ढिलाई दे दी थी.
इससे उत्तर प्रदेश में पोल्ट्री और मांस के कारोबार में लगे हजारों लोग प्रभावित हुए. हमने स्थानीय मीट और पोल्ट्री कारोबारियों से बात की. जितने भी लोगों से बात की, सभी ने हमें दुख और तकलीफ की वही आपबीती सुनाई.
लखनऊ के कई कारोबारियों को चिकन सप्लाई करने वाले सैय्यद बाजिल (नाम बदला हुआ) को इसी वजह से एक महीने जेल में काटना पड़ा. वह इस रिपोर्टर से कहते हैं, “मैं इस बारे में अब बात नहीं करना चाहता.” एफएम शेख के अनुसार, इस गिरफ्तारी ने बाजार में डर और घबराहट पैदा की.
शेख कहते हैं,
जगदीशपुर के पोल्ट्री किसान अतीक कहते हैं,
2 जुलाई 2021 को उनके भाई इरफान (नाम बदला हुआ) को कथित तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि वह लखनऊ की फीड कंपनी को कर्ज नहीं चुका पाए. लॉकडाउन की वजह से वे लोग दिवालिया हो गए थे. वह कहते हैं-
पोल्ट्री किसानों की ही तरह लखनऊ का कसाई समुदाय जिनमें ज्यादातर कुरैशी सुन्नी मुसलमान हैं, को लॉकडाउन में बहुत बुरे दिन देखने पड़े. कुरैशी वेल्फेयर फाउंडेशन और लखनऊ में कुरैशी समुदाय के नेता शहाबुद्दीन कुरैशी कहते हैं-
कुरैशी ने कुछ कसाइयों से बात करने की कोशिश की, जिन्हें लॉकडाउन के दौरान भैंसों और मीट को ट्रांसपोर्ट करने के लिए परेशान किया गया. लेकिन उन्होंने इस डर से बात करने से इनकार कर दिया कि उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. जब बार-बार जोर दिया गया तो कुरैशी के दफ्तर के एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,
“मीट और पोल्ट्री उद्योग हर समुदाय के लोगों को रोजगार देता है, खासकर मुसलमानों (मीट) और चमड़ा उद्योग में दलितों को. लेकिन विजिलांटिज्म, पुलिस के कार्रवाई न करने और खास तौर से पक्षपात करने वाली सरकारी नीतियों के चलते बहुत से लोग हाशिए पर और दूर धकेल दिए गए हैं.
इसके अलावा मीट उद्योग से बहुत सारे समुदाय जुड़े हैं, जो सप्लाई चेन के कई छोरों को थामे हुए हैं. जैसा कि जेएनयू में सेंटर फॉर लॉ एंड गवर्नेंस की प्रोफेसर गजाला जमील कहती हैं,
वह कहती हैं, “मवेशियों के कारोबार और मीट उद्योग पर पाबंदी लगाते वक्त आपका निशाना भले मुसलमान हों, चूंकि आप पूर्वाग्रहों के शिकार हैं. लेकिन आपको इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं है कि इस उद्योग के उत्पादन और सप्लाई चेन की बनावट कैसी है. इसलिए इस पाबंदी से दूसरों को भी नुकसान होगा, भले ही आपने उसकी उम्मीद न की हो.”
चमड़ा, टैनिंग और फीड उद्योग की हालत देखिए तो आपको जमील की चेतावनी सुनाई देगी. दलित बड़े पैमाने पर इन उद्योगों से जुड़े हुए हैं. 2019 में कम से कम 12 बड़ी चमड़ा टैनरीज ने यह घोषणा की थी कि वे अपना कारोबार पश्चिम बंगाल में शिफ्ट करना चाहते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने उन पर कई तरह की पाबंदिया लगाई हैं.
एफएम शेख कहते हैं, “कोरोना के समय पोल्ट्री और मीट पर लगी पाबंदी से कसाइयों के अलावा मुर्गा दाना बनाने वालों और मक्का किसानों पर भी सीधा असर हुआ.”
जमील मानती हैं कि ‘हाइजीन’ सिर्फ एक बहाना है- अपने पूर्वाग्रह को आगे बढ़ाने का, आर्थिक हमले करने का.
वह कहती हैं, “दक्षिणपंथी ग्रुप्स जैसे हिंदू जागृति, हिंदू जागरण मंच या कपिल मिश्रा का नया हिंदू इकोसिस्टम हलाल मीट पर जिस तरह हमले कर रहे हैं, इन घटनाओं को इससे अलग करके नहीं देखा जा सकता.”
वह मानती हैं कि इसका मकसद भारत में परंपरागत स्थानीय मीट मार्केट को बड़े कॉरपोरेशंस की फैंसी दुकानों से बदलना है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जब रासुका लगाने की बात आती है तो हाई कोर्ट तक पहुंचने वाले कुल मामलों में से एक तिहाई से ज्यादा, यानी 41 मामले गोहत्या के थे. सभी आरोपी मुसलमान थे जिन्हें जिला मेजिस्ट्रेट ने कथित गोहत्या के आरोप में एफआईआर के आधार पर हिरासत में लिया गया था. उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व आईजी एसआर दारापुरी कहते हैं-
वह कहते हैं, “यह हमें बताता है कि कैसे उत्तर प्रदेश की पुलिस गैर कानूनी तरीके से मौजूदा सरकार के लिए काम कर रही है. जब अदालतों ने कई बार इन मामलों को रद्द किया है, तब भी पुलिस लगातार इसका गलत इस्तेमाल कर रही है. जब तक ये नहीं रुकता, तब तक कुछ नहीं बदलेगा.”
2017 और 2018 के बीच उत्तर प्रदेश में ‘गैरकानूनी’ बूचड़खानों के खिलाफ मुहिम चलाई गई थी और राज्य भर में सैकड़ों दुकानें बंद हो गई थीं.
सत्ता संभालने के बाद आदित्यनाथ सरकार का यह पहला कदम था. इसी के साथ खबरें आ रही थीं कि राज्य में विजिलांटी ग्रुप्स मीट की दुकानों को बंद करा रहे थे, उनमें तोड़ फोड़ कर रहे थे. मुसलमानों की तीन दुकानों को आग लगा दी गई थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश के कसाइयों ने अनिश्चितकाल के लिए हड़ताल कर दी थी.
बलोचपुरा कसाई मार्केट के कसाइयों ने आरोप लगाया कि चार साल हो गए लेकिन सरकार ने नए लाइसेंस जारी नहीं किए. कुरैशी कहते हैं,
इलाहाबाद की लखनऊ बेंच ने कहा था कि “इस राज्य में भोजन, भोजन की आदतें धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के तहत फली-फूली हैं. यह उस संस्कृति के तौर पर जीवन का एक अटूट हिस्सा हैं जो समाज के सभी वर्गों में आम हैं. कानून का पालन किसी को अभाव में रखकर नहीं किया जाना चाहिए. जिसकी वजह राज्य की निष्क्रियता हो सकती है ... हमने उपरोक्त संकेतकों को रिकॉर्ड में रखा है ताकि निर्णय लेने के दौरान राज्य उन परिणामों के आयामों और नतीजों को भी देखे जोकि बड़े पैमाने पर जनता को प्रभावित कर सकते हैं. इससे राज्य को इस सिलसिले में किए गए उपायों के बारे में अदालत को सूचित करने में भी मदद मिलेगी.”
सरकारी नीतियों ने उत्तर प्रदेश के मीट और पोल्ट्री बाजार को बुरी तरह प्रभावित किया है. मथुरा मीट बैन इसी की एक अगली कड़ी है. इसके अलावा मुसलमान कारोबारियों का बहिष्कार करके और खान-पान की मजबूत संस्कृति पर चोट करके राजनीतिकरण की जमीन को उपजाऊ बनाया जा रहा है. लेकिन इस पर निर्भर हजारों लोग रोजाना तलवार की धार पर चलते रहेंगे.
(आलीशान जाफरी लखनऊ के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह भारत में सांप्रदायिक हिंसा पर लिखते हैं. यह स्टोरी स्वतंत्र पत्रकारों के लिए नेशनल फाउंडेशन ऑफ इंडिया फेलोशिप के तहत रिपोर्ट की गई है.
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Published: 11 Sep 2021,09:37 AM IST