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Meta में छंटनी: टेक कर्मचारियों के लिए संदेश- कभी फूल मिलेंगे, तो कभी कांटे

Meta, Twitter, Byju's जैसे बड़ी टेक कंपनियों में क्यों हो रही है छंटनी?

माधवन नारायणन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Meta में छंटनी: टेक कर्मचारियों के लिए संदेश- कभी फूल मिलेंगे, तो कभी कांटे</p></div>
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Meta में छंटनी: टेक कर्मचारियों के लिए संदेश- कभी फूल मिलेंगे, तो कभी कांटे

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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मशहूर अमेरिकी बैंड गन्स एन रोजेज का मशहूर गाना है, नवंबर रेन. उसकी लाइन है- Nothin' lasts Forever/And we both know hearts can change/And it's hard to hold a candle/In the cold November rain यानी कुछ भी हमेशा के लिए नहीं रहता/और हम दोनों जानते हैं कि मन बदल सकते हैं/और जलती लौ को पकड़ना मुश्किल है/सर्द नवंबर की बारिश में.

अगर आपको किसी को नौकरी से निकालना है तो आप डोनाल्ड ट्रंप से नहीं, मार्क जकरबर्ग से सलाह मशविरा करें.

You are fired” (आपको नौकरी से निकाला जाता है), यह वह मशहूर वाक्य है जो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने इंटरप्रेन्योर बनने का सपना देखने वाले लोगों से कहा था. उन दिनों वह रियल ऐस्टेट टाइकून थे और टीवी शो शार्क टैंक को होस्ट करते थे. लेकिन धीरे-धीरे अमेरिकी पूंजीवादी मधुरभाषी हो रहे हैं. अब एचआर एग्जेकेटिव्स कहते हैं, “I am afraid we have to let you go” (हमें अफसोस है कि हमें आपको जाने देना होगा). इसका मतलब सीधा-सीधा यह कि “We can't really afford you" (हम अब आपकी तनख्वाह नहीं दे सकते).”

अभी मैंने एक इंटाग्राम पोस्ट से जाना कि किसी को नौकरी से निकालने पर अब यह भी कहा जाता है कि, “You are no longer in a go-forward role” (अब आप आगे बढ़ने की भूमिका में नहीं हैं, यानी अब आपको आगे नहीं बढ़ाया जा सकता).

खैर!

आप शब्दों पर मत जाइए- अगर आप शेक्सपीयर की उस बात को मानते हैं कि “नाम में क्या रखा है” लेकिन मेटा प्लेटफॉर्म के सीईओ मार्क जकरबर्ग के बयान को पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि संवेदनशीलता और सहानुभूति मायने रखती है, और जवाबदेही भी. जकरबर्ग ने फेसबुक कंपनी की 13% वर्कफोर्स या 11,000 नौकरियों में कटौती करने के बाद छंटनी का शिकार कर्मचारियों से जो कहा, वह बहुत अहम है.

जकरबर्ग ने जिसे बुरा कमर्शियल कॉल कहा, उसकी पूरी जिम्मेदारी भी ली है. उन्होंने छंटनी के कारणों का खुलासा किया और कहा कि जिन लोगों की नौकरियां गई हैं, उनके लिए आगे सब अच्छा होगा. बेशक, अलविदा कहने का यह बुरा तरीका नहीं है. उनकी भाषा और विवरण भावुकता से भरे थे, और लगता था कि उन्हें लोगों की परवाह है.

"छंटनी करने का कोई भी तरीका अच्छा नहीं होता लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि जितनी जल्दी हो सके, हम आप लोगों को सभी जरूरी जानकारी उपलब्ध कराएं और इन हालात में आपको पूरा सहयोग देने के लिए जो कर सकते हैं, हम करें." यह टिप्पणी उस शख्स की है, जिसने सोशल मीडिया को हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में इतना अहम बना दिया है. यह वह शख्स है जिसके कॉलेज के दिनों के इस इंटरप्राइज से प्रेरणा लेकर किसी ने ऑस्कर विजेता फिल्म तक बना दी.  

क्या मार्क, मस्क के नक्शेकदम पर चल रहे हैं?

जकरबर्ग ने एलन मस्क से यह सीखा है कि क्या नहीं किया जाना चाहिए. मस्क ने बहुत बेदर्दी से, एक ही झटके में ट्विटर के लगभग 7,500 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला था. बेशक, यह तकनीक की कारोबारी दुनिया में छंटनियों का ही मौसम है. भारत के एडटेक स्टार्टअप बायजूज से लेकर माइक्रोसॉफ्ट, स्नैप और इंटेल जैसे ग्बोबल दिग्गज भी लगातार लोगों को नौकरियों से निकाल रहे हैं.

यहां तक कि अमेजन और गूगल में भी नई भर्तियां नहीं की जा रहीं, या उन्होंने इस प्रक्रिया की रफ्तार धीमी कर दी है. हां, महंगाई की मार से बेहाल पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी छाई हुई है. कोविड -19 महामारी के बाद हालात मुश्किल हैं. मौद्रिक नीतियां बदल रही हैं जिसके कारण वृद्धि और रोजगार का हिसाब-किताब बिगड़ गया है.

छंटनी का यह सिलसिला कर्मचारियों के लिए संदेश है. आपको कभी फूल मिलेंगे, तो कभी कांटे (या बंदूक की गोलियां, अगर आप गन्स एन रोज़ेज़ से वाकिफ हैं). इस बार यह झटका जकरबर्ग की कंपनी ने दिया है. चूंकि भविष्य की तकनीक और वृद्धि का उनका गणित उलट गया है.

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नौकरी में कटौती के बाद मेटा के शेयरों में उछाल

आपको इस हुडी वाले लड़के से प्यार हो जाएगा, जोकि बड़े सपने देखता है, लेकिन उसके पैर जमीन पर ही हैं. हां, वह कोई गलती नहीं करता. यह पूंजीवादी रवैया है. बाजार आपको सिर्फ इसलिए माफ नहीं करता क्योंकि आप अपने दिल की सुनते हैं.

बाजार में शेयरों की मांग, वस्तुओं और सेवाओं की मांग और काम की मांग शामिल है - और मांग में कमी का मतलब है कम माल, सेवाओं की कम मांग, धीमी राजस्व वृद्धि, शेयरों पर कम रिटर्न, कम वेतन वृद्धि और कम नौकरियां.

लेकिन यह भी सही है कि कठोर कदम शेयर बाजार में अच्छे रिटर्न देते हैं, और अर्थशास्त्र में जिसे वर्जुअस साइकिल कहा जाता है, उसकी शुरुआत होती है. यानी ज्यादा वेतन, ज्यादा खपत, उच्च कीमतें और कॉरपोरेट्स का जबरदस्त मुनाफा.

मेटा प्लेटफॉर्म के शेयरों में पिछले साल के 1000 बिलियन USD के वैल्यूएशन के मुकाबले 70% की गिरावट हुई थी. लेकिन छंटनी की खबरों के बाद 5% तक उछल आया है. एक प्रतिष्ठित इनवेस्टमेंट साइट में परंपरागत मानदंडों का इस्तेमाल करते हुए एक स्मार्ट एनालिस्ट ने अंदाजा लगाया है कि मेटा का मौजूदा वैल्यूएशन 270 बिलियन USD है लेकिन उसके बाजार पूंजीकरण में 30 बिलियन USD का इजाफा हो सकता है.

कल्पना कीजिए कि मेटा प्लेटफॉर्म्स ने पिछले एक साल में जितनी मार्केट वैल्यू गंवाई है, उसमें जकरबर्ग आसानी से उस कीमत पर दर्जन भर ट्विटर खरीद सकते थे, जिस पर एलन मस्क ने कराहते, विलापते और फिर गुर्राते हुए यह विवादास्पद सौदा किया है.

बड़े टेक प्लेटफॉर्म्स के लिए रोलर कोस्टर राइड

बहुतों ने इस साल को मिनी डॉटकॉम धमाका कहा है (2000 में बड़ा धमाका हुआ था). यह इंटरप्रेन्योर्स के लिए सीख है कि नई तकनीक हैरत पैदा कर रही हैं, सिर्फ इसी वजह से इस स्थिर वृद्धि को जायज नहीं ठहराया जा सकता.  

बाजार में मेटा के उछाल और गिरावट के कई जटिल कारण हैं: महामारी के दौरान सरल ब्याज दरों से लेकर वृद्धि के आसान हिसाब-किताब, और भविष्य की तकनीकों पर बहुत अधिक खर्च करने तक. जैसा कि बाजार के विश्लेषक करते हैं, हम यहां बाल की खाल निकालने नहीं बैठे हैं. यह कहना ही काफी होगा कि वॉल स्ट्रीट एक रोलर-कोस्टर है और शांत-संयमी लोगों को यहां तलवार की धार पर चलना पड़ता है, बजाय उनके ख्याली पुलावों में मस्त रहते हैं.

गूगल ने खुद को एल्फाबेट में बदला लेकिन अपने सर्च इंजन को जस का तस रखा, इस बीच वह रीन्यूएबल एनर्जी और सेटेलाइट इमेजिंग जैसी नई तकनीक पर दांव लगाता रहा.

मेटा प्लेटफॉर्म्स ने नए मेटवर्स पर बाजी लगाई है, जोकि वर्चुअल रिएलिटी पर केंद्रित है, लेकिन वह राजस्व के लिए अपनी सोशल नेटवर्किंग/लाइफस्टाइल ब्लॉगिंग साइट्स जैसे फेसबुक और इंटाग्राम का ही दोहन कर रहा है. यह दुखद है कि सितारों पर निशाना साधते हुए जकरबर्ग के पैर थोड़े लड़खड़ा गए हैं.  

फेसबुक और दूसरी हाई-टेक कंपनियों में अभी भी चिंगारी धधक रही है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी कर्मचारियों की उसकी गरमाइश मिलेगी. वे कभी-कभी समस्या का हल हैं, और कभी-कभी समस्या भी. वैसे भी जब अमीरजादों की इज्जत नीलाम होती है तो गरीब गुरबा को सिर्फ एक ही फिक्र सताती है- अपनी रोजी-रोटी बचाने की.

(लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और कमेंटेटर हैं जो रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम कर चुके हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @madversity है.)

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