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मिन्नल मुरली : क्या भारतीय सिनेमा दलित-बहुजन सुपरहीरो को कभी स्वीकार करेगा?

हॉलीवुड ने यह साबित कर दिया कि सुपरहीरो की श्रेणी केवल गोरे लोगों की लिए नहीं है...

हरीश एस वानखेड़े
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>मिन्नल मुरली ग्रामीण परिवेश के निचले तबके के लोगों को आगे लाती है और एक सुपर हीरो की कहानी बताती है.</p></div>
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मिन्नल मुरली ग्रामीण परिवेश के निचले तबके के लोगों को आगे लाती है और एक सुपर हीरो की कहानी बताती है.

फोटो : अल्टर्ड बाय क्विंट

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कॉमिक बुक्स, फिल्में, साहित्यिक कथाएं और राष्ट्रवादी इतिहास सभी हमारी धारणाओं और कल्पनाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं. वहीं नायकों और दंत कथाओं की शानदार कहानियां हर किशोर के मन मस्तिक का अहम हिस्सा होती हैं, क्योंकि इन्हीं के प्रभाव से उनका वैश्विक नजरिया आकार लेता है. लेकिन विडंबना यह है कि हमारे बीच बहुत कम 'भारतीय' सुपरहीरो (Indian Superhero) मौजूद हैं और उनके बारे में हमारी धारणा अक्सर अमेरिकी पात्रों द्वारा आकार लेती है.

महत्वपूर्ण रूप से, भारत में सुपरहीरो की कहानियों का देश की सामाजिक और वर्गीय परिस्थितियों से कोई मजबूत संबंध नहीं है. उदाहरण के लिए, हमारे सुपरहीरो को अक्सर उच्च-जाति के महानगरीय लोगों के रूप में चित्रित किया जाता है, जो जाति असमानता और सामंती शासन जैसे अन्य सामाजिक मुद्दों से बेखबर रहते हुए सुपरविलेन्स से लड़ते हैं और उन्हें हराते हैं. कोई भी भारतीय सुपरहीरो दलित-बहुजन जनता को ब्राह्मणवादी शासन या अधिपत्य और वर्ग शोषण से मुक्त करने के लिए नहीं लड़ता है.

हाल ही में नेटफ्लिक्स (netflix) पर रिलीज हुई मलयालम सुपरहीरो फिल्म 'मिन्नल मुरली' सुपरहीरो वाली लीक से हटकर है. इसमें ग्रामीण परिवेश के जमीनी निम्न दर्जे के (सबाल्टर्न) लोगों को दिखाया गया है और एक सुपर हीरो की कहानी है. यह कहानी अस्थिर सामाजिक और वर्गीय वास्तविकताओं को अपने आप में शामिल किए हुए है.

हिंदू पौराणिक कथाएं और ब्राह्मण हीरो

भारत में हम रामायण से भगवान राम और हनुमान की लोकप्रिय पौराणिक कथाओं या महाभारत की अर्जुन और भीम की दंत कथाओं के साथ बड़े होते हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं में अक्सर अपने क्षेत्र, सामाजिक गौरव और पितृसत्तात्मक मानदंडों के लिए लड़ने वाले शक्तिशाली महापुरुषों की कहानियां होती हैं. वे या तो अपने ही वंश से लड़ते हैं (जैसा कि पांडव कौरवों के खिलाफ युद्ध करते हुए दिखाए गए) या वे किसी अन्य ताकतवर वर्ग को हरा देते हैं (जैसे रामायण में रावण को एक शक्तिशाली राक्षसों के रूप में दर्शाया गया है.)

दंत कथाएं आम तौर पर क्षत्रिय या ब्राह्मण परिवारों के अविश्वसनीय व असाधारण जीवन की घटनाओं के आस-पास घूमती हैं. जो अद्भुत करतब करते हैं, भयानक बुराइयों से लड़ते हैं और अपने परिवार व परिजनों को संकट से बचाते हैं.

भारतीय दंत कथाओं और सुपरहीरो अधिकांशत: ब्राह्मण या क्षत्रिय सामाजिक वर्गों के युवा, गोरे और लंबे पुरुष हैं. पौराणिक नायकों में दलित-बहुजन कैरेक्टर लगभग न के बराबर हैं. यहां तक की भारतीय सुपरहीरो और राष्ट्रवादी नेताओं का समकालीन परिदृश्य भी उसी पैटर्न का अनुसरण करते हैं. हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर हावी होने वाले आधुनिक आदर्शों की बात करें तो उसमें भी ज्यादातर उच्च जाति के पुरुष ही हैं.

जवाहरलाल नेहरू से लेकर सचिन तेंदुलकर, रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर पंडित रविशंकर, राज कपूर से लेकर प्रणय रॉय तक, अधिकांश प्रमुख दिग्गज हस्तियां विशिष्ट सामाजिक स्थानों से जुड़ी हुई हैं. इनमें से ज्यादातर के साथ "नेशनल हीरो" का टैग जुड़ा हुआ है, जबकि अन्य हिंदू संगठन पूरी तरह से शिष्यों, अनुयायियों या इन सुपर-अचीवर्स के बंदी दर्शकों के रूप में मौजूद हैं.

इस तरह का दबदबा सुपरहीरो जॉनर में भी देखने को मिलता है. राज कॉमिक्स ने 1980 के दशक की शुरुआत में सुपरहीरो के इंडियन वर्जन (नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, डोगा और अन्य को याद कीजिए) बनाए. ये सुपरहीरो घातक राक्षसों और सुपरविलेन्स से लड़ने के साथ-साथ शहर को सुरक्षित रखने का काम करते थे. उन्हें आम तौर पर शहरी मध्यम वर्ग या उच्च जाति पृष्ठभूमि के शक्तिशाली लोगों के रूप में चित्रित किया गया था.

इसी तरह से भारतीय सिनेमा के सुपरहीरो (शहंशाह, बाहुबली, कृष, रोबोट, रा-वन आदि) को शक्तिशाली उच्च जाति के लोगों के रूप में दिखाया गया है जो अपराधियों और भ्रष्ट राजनेताओं से लड़ते हैं, दुनिया को बर्बाद होने से बचाते हैं और अतीत के गलत कामों का बदला लेते हैं.

हैरानी की बात यह है कि कोई भी सुपरहीरो जातिगत अत्याचारों से लड़ने, दलित बलात्कार पीड़ितों की गरिमा की रक्षा करने या हाशिए पर पड़े समूहों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए आगे बढ़ता हुआ नहीं दिखाया देता है.

दलित-बहुजन दर्शक एक ऐसे जमीनी सुपरहीरो की तलाश में हैं, जो गरीबों को ब्राह्मणवादी दासता, सामाजिक शोषण और रोजमर्रा की क्रूरता से बचा सके.

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एक सबाल्टर्न सुपरहीरो है मिन्नल मुरली

मिन्नल मुरली की कहानी केरल के एक छोटे से गाँव-कस्बा कुरुक्कनमूला में बुनी गई है. इसमें दो बेसहारा पुरुषों, जेसन (टोविनो थॉमस) और शिबू (गुरु सोमसुंदरम) की कहानी दर्शायी गई है.

जेसन एक युवा दर्जी है जो बेहतर भविष्य के लिए अमेरिका जाना चाहता है, लेकिन एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी उसकी योजनाओं पर रोक लगाने की कोशिश करता है.

वहीं दूसरी ओर, शिबू एक गरीब साधारण व्यक्ति है जो एक छोटी सी चाय की दुकान में काम करता है और ग्राहकों की सेवा करता है. वह स्थानीय लोगों द्वारा तिरस्कृत है और एक बहिष्कृत के रूप में रहता है.

दोनों (जेसन और शिबू) पर क्रिसमस के दिन आकाशीय बिजली गिरती है और इसके अगले दिन उन्हें पता चलता है कि उनके पास अलौकिक शक्तियां हैं. जब उन्हें पता चलता है कि उनमें शक्तियां आ गई हैं, तब वे अपनी अनिश्चित परिस्थितियों को बदलने के लिए उन शक्तियों का उपयोग करने का प्रयास करते हैं. अपने प्यार को पाने के प्रयास में शिबू एक बैंक लूटता है और जो लोग उसके प्यार के बीच में आते हैं उन्हें वे मार डालता है. हालांकि अपराध शिबू करता है लेकिन गलत कामों के लिए पुलिस जेसन को गिरफ्तार कर लेती है.

यह नाटक या कहानी तब क्लामेक्स पर पहुंचती है जब शिबू गुस्से में आ जाता है और पूरे गाँव को जलाने का फैसला करता है. यहां पर एंट्री होती है अच्छे कैरेक्टर वाले परोपकारी 'मिन्नल मुरली' की, वह आता है और गांव वालों को सुपरविलेन (शिबू) के विध्वंसकारी प्लान से बचाता है.

भारतीय सिनेमा में पहले के सुपरहीरो की बात करें तो उन्हें आम तौर पर उच्च जाति के शहरी पुरुषों के रूप में चित्रित किया जाता था और वे अमेरिकी सुपरहीरो की नकल करते हुए दिखाई देते थे. मिन्नल मुरली ने पहले से चली आ रही इस परंपरा व पैटर्न को तोड़ा है और एक अद्वितीय भारतीय सुपरहीरो बनाने के लिए पर्याप्त स्थानीय पहलुओं को अपने आप में शामिल किया है. यह फिल्म 1990 के दशक की शुरुआत पर आधारित है और दर्शाती है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था कैसे बदल रही है. दिलचस्प बात यह है कि यह वास्तविक रूप से अपमानित ग्रामीण जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है, जिन्हें मुख्यधारा के सिनेमा में शायद ही कभी चित्रित किया जाता है. इससे पता चलता है कि आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गरीब है, सामाजिक पूर्वाग्रहों व भेदभाव को सहन करता है और जबरदस्ती सामाजिक प्रथाओं के बोझ तले दब गया है.

दोनों मुख्य पात्र समाज के निचले वर्गों से हैं और उनके पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए कोई सामाजिक पूंजी या आर्थिक संपत्ति नहीं थी (जैसे कि सामान्यता ग्रामीण परिवेश में दलितों की स्थिति होती है.). ऐसे भयानक हालात से कोई चमत्कार ही उन्हें बचा सकता था. ऐसे निम्न दर्जे के व्यक्तियों (subaltern) को सुपरहीरो के रूप में कल्पना करना एक एक महत्वाकांक्षी और रचनात्मक प्रयास है.

दूसरी ओर, फिल्म कुछ रचनात्मक छलांग लगाने में झिझक रही है जो इसे भारतीय सामाजिक आर्थिक वास्तविकता के लिए और अधिक प्रमाणिक व प्रासंगिक बना देगा. उदाहरण के लिए फिल्म में यह तो बताया गया है कि किरदार निम्न गरीब तबके हैं लेकिन फिल्म उन्हें दलित-बहुजन की पहचान देने से कतराते हुए दिखाई देती है और इसमें जाति के मुद्दों के बारे में निष्पक्ष रूप से बोलते हुए भी नहीं दिखाया गया है. सामाजिक मुद्दों के साथ इस तरह का चित्रण और जुड़ाव यथार्थवादी ग्रामीण पृष्ठभूमि को और आगे बढ़ा सकता था. महत्वपूर्ण बात यह है कि इस फिल्म में सुपरहीरो की भूमिका में सामाजिक अभिजात वर्ग के पात्रों के वर्चस्व को बिगाड़ने की क्षमता थी.

दलित-बहुजन आइकॉन का इंतजार

हमारे देश में समृद्ध सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता है, लेकिन हमारे पास दलित-बहुजन आइकॉन बहुत कम हैं. ज्योतिबा फुले या बाबासाहेब अम्बेडकर को अक्सर राष्ट्रीय प्रतीक या नेशनल आइकॉन माना जाता है. हालांकि एक विशिष्ट जाति या समुदाय के नेताओं के रूप में उन्हें कम माना जाता है. लंबे समय तक भारतीय साहित्य और सिनेमा होनहार दलित-बहुजन कहानियों और पौराणिक पात्रों को आकर्षक और प्रस्तुत करने से कतराते रहे.

इस मामले में तुलना के लिए हॉलीवुड सिनेमा एक आदर्श समकक्ष नहीं है, लेकिन जब सुपरहीरो शैली में विविधता लाने की बात आती है तो इसमें थोड़ा सुधार होता है. हॉलीवुड सिनेमा ने ब्लैक सुपरहीरो (हैनकॉक, ब्लेड, कैटवूमन, और हाल ही में ब्लैक पैंथर) को प्रस्तुत करने की संभावनाओं का पता लगाया और उनकी कहानियों को पौराणिक काल्पनिक पात्रों (Django Unchained) के रूप में भी दिखाया है. हालांकि वहां अश्वेत कैरेक्टर केवल नस्लवाद और सामाजिक बुराइयों से नहीं लड़ते हैं या श्वेत वर्चस्व के खिलाफ झंडा विरोध करते हैं, लेकिन इस तरह के प्रयास यह सुझाव देते हैं कि सुपरहीरो की श्रेणी केवल गोरों के लिए नहीं है.

हॉलीवुड में सुपरहीरो का एक विविध परिवार (महिलाओं और अन्य अल्पसंख्यकों सहित) हाशिए के सामाजिक समूहों को प्रेरित और उन्हें बताता है कि उनमें भी सुपरहीरो बनने की क्षमता है. इस संबंध में हॉलीवुड भारतीय फिल्मों की तुलना में अधिक प्रगतिशील और समावेशी दिखता है.

अब सिनेमा में दलित-बहुजन पात्रों के प्रतिनिधित्व में बढ़ते बदलाव को देखा जा सकता है. तमिल सिनेमा में दलित नायकों को विशेष रूप से प्रस्तुत किया गया है, जो सामाजिक समस्याओं और वर्ग उत्पीड़न से साहस और शक्ति से लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं. पा रंजीत की काला, कबाली और सरपट्टा परंबराई, वेत्रिमारन की असुरन और मारी सेल्वराज की कर्णन ने दिखाया कि दलित-बहुजन पात्रों को वीर भूमिकाओं में चित्रित किया जा सकता है और ये फिल्में दर्शकों द्वारा सराही की जा सकती हैं.

हालांकि, एक दलित कैरेक्टर को सुपरहीरो के रूप में देखने की संभावना अभी भी दूर का सपना है. मिन्नाल मुरली इस दिशा में एक साहसिक प्रयास है.

(हरीश एस वानखेड़े सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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