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झारखंड से दिल्ली लाई गई एक घरेलू नौकरानी वेतन मांगने के जुर्म में टुकड़े-टुकड़े कर दी गई. राज्य के आदिवासी इलाके से लाई गई इस लड़की की हत्या का आरोप उस प्लेसमेंट एजेंसी के मालिक पर है , जो उसे अच्छी नौकरी और अच्छी जिंदगी के लालच में दिल्ली ले आया था. प्लेसमेंट एजेंसी चलाने वाले एक और शख्स और इसी तरह अच्छी जिंदगी का ख्वाब दिखा कर पहले लाई गई दो लड़कियों पर भी इस हत्या में मदद करने का आरोप है.
देश के आदिवासी बहुल राज्यों से दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में मेड के तौर पर लाई जाने वाली लड़कियों की यह त्रासदी नई नहीं है. लेकिन जब उनके शारीरिक शोषण, यातनाओं और ऐसी वीभत्स हत्याओं की खबर आती है तो यह मुद्दा थोड़े दिन के लिए मीडिया में गर्म होता है और फिर ठंडा हो जाता है.
दिल्ली में झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के पिछड़े-आदिवासी इलाकों से नाबालिग लड़कियों की तस्करी फर्जी प्लेसमेंट एजेंसियों के लोकल एजेंटों के जरिये दशकों से जारी है. इन लड़कियों में अधिकतर को यहां गंदे और गैर सेहतमंद माहौल में रहना पड़ता है. 12 से 16 घंटे काम लिया जाता है. आधा-अधूरा वेतन मिलता है और अक्सर ये मानसिक और शारीरिक शोषण और प्रताड़नाओं की शिकार होती हैं. इनमें से कई बिन ब्याही मां बन जाती हैं.मानव तस्करों का गैंग इनके बच्चों को भी बेच देता है. लेकिन अचंभा तब होता है जब बंधुआ मजदूरों जैसी स्थिति होने के बावजूद घरेलू नौकरानियों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के मामले में बंधुआ मजदूर के खात्मे से जुड़े एक्ट के तहत कोई मुकदमा दर्ज नहीं होता है.
आदिवासी इलाकों से इन लड़कियों को घरेलू नौकरानी के तौर पर दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों में लाए जाने का सबब क्या है? दरअसल देश के आदिवासी बहुल राज्यों में ही आदिवासियों की स्थिति सबसे खराब है. आदिवासी इलाके सामाजिक और आर्थिक विकास में सबसे पिछड़े हैं. बड़ी उद्योग परियोजनाओं से उनका लगातार विस्थापन हुआ और उनके संसाधन छिने हैं. जीविका के साधनों में कमी आदिवासी लड़कियों को दिल्ली-मुंबई में घरेलू नौकरानियों की बाजार में झोंक रही है.
घरेलू नौकरों के काम से जुड़े नियमों और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े बिल में काम के घंटे, मिनिमम वेज, नोटिस पीरियड और नौकरों को काम से हटाने के साथ ही इनके साथ अपराध के मामले में भी प्रावधान हैं. लेकिन देश के गरीब आदिवासी इलाकों से लाई जाने वाली नाबालिग लड़कियों के साथ दिल्ली या मुंबई के लेबर मार्केट में होने वाले हादसों को रोकने में नाकामी से ऐसे कानूनों की क्षमता पर सवाल उठने लाजिमी हैं.
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