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IPS ऑफिसर से नेता बने लालदुहोमा पूर्वोत्तर के मिजोरम (Mizoram) राज्य के अगले मुख्यमंत्री बन गए हैं. उनकी पार्टी जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) ने 1987 में राज्य के गठन के बाद से कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट के बीच सत्ता की अदलाबदली की परंपरा को तोड़कर इतिहास रच दिया है. राज्य विधानसभा के 40 विधानसभा क्षेत्रों में से, ZPM ने 37.86 प्रतिशत वोट हासिल कर 27 सीटें जीती है. यह उनके वोट शेयर में 15% की बढ़त है.
दूसरी ओर, मौजूदा MNF के नेतृत्व वाले CM जोरमथांगा 10 सीटों पर सिमट गए, हालांकि, उन्हें 35.10% वोट मिले, जो पहले की तुलना में 2.6% कम थे. सबसे खराब प्रदर्शन कांग्रेस ने किया क्योंकि वो सिर्फ एक सीट पर सिमट गई. वोट शेयर घटकर 20.82 % रह गया मतलब वोटों में कुल 9% की गिरावट. बीजेपी अपनी सीटों की संख्या 2 तक बढ़ाने में कामयाब रही और उसे 5.06 % वोट मिले, लेकिन उसका वोट शेयर 3 % घट गया.
ZPM ने कुछ सीटों पर MNF और बीजेपी के वोट हासिल किए और वो कांग्रेस का भी वोट अपनी ओर खींचने में कामयाब रही.
ZPM जो पहली बार 2017 में छह दलों के गठबंधन के रूप में अस्तित्व में आया और बाद में 2019 में एक राजनीतिक दल में बदल गया. इस शानदार जीत के बाद कई लोग इस नए खिलाड़ी के उदय की तुलना नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (AAP) के उदय से कर रहे हैं.
भले ही ZPM और AAP में कुछ समानताएं देखी जा सकती हैं जो कि 'भ्रष्टाचार-मुक्त' राजनीतिक प्रणाली के अपने अभियान के माध्यम से दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को चुनौती देकर प्रमुखता से उभरी, ZPM का राज्य की राजनीति में उत्थान बिल्कुल वैसा नहीं है.
लालदुहोमा 1980 के दशक से राजनीति में हैं. वह पहले कांग्रेस में थे और 1984 के चुनाव में मिजोरम लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुने गए थे. बाद में, वो मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (MPC) में शामिल हो गए, जिसने 1978 से 1984 तक थोड़े समय के लिए राष्ट्रपति शासन के कारण राज्य पर शासन किया. वह MNF में भी थे लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी मिजो नेशनलिस्ट फ्रंट (नेशनलिस्ट) बना ली.पार्टी ने 24 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9.23 वोट फीसदी हासिल किए लेकिन कोई सीट जीतने में असफल रही.
बाद में, उन्होंने MNF (एन) का नाम बदलकर जोरम नेशनलिस्ट पार्टी (ZNP) कर दिया. उन्होंने MPC के साथ गठबंधन में 2003 के राज्य चुनावों में 27 सीटों पर चुनाव लड़ा.
दो सीट पर जीते. जीत हासिल करने वाले में लालदुहोमा एक थे. 2008 के चुनावों में भी, ZNP ने MPC के साथ गठबंधन में 2 सीटें जीतीं. लालदुहोमा ने आइजोल पश्चिम-I निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की, लेकिन 2013 के राज्य चुनावों में यह कोई भी सीट जीतने में विफल रही.
2017 में, लालदुहोमा के नेतृत्व वाली ZNP और MPC सहित छह पार्टियों ने जोरम पीपुल्स मूवमेंट नामक एक गठबंधन बनाने का फैसला किया, जिसने 2018 के राज्य चुनावों में 8 सीटें जीतीं और मुख्य विपक्षी दल बन गया. विधानसभा में लालदुहोमा विपक्ष के नेता भी बने.
ZPM एक ऐसी पार्टी है, जिसमें अधिकांश ZNP और MPC के नेता शामिल हैं लेकिन यह बदलाव का वादा करके मतदाताओं, विशेषकर युवाओं के बीच अपना आधार बढ़ाकर खुद को एक नई पार्टी के तौर पर अपनी इमेज बनाने में कामयाब रही.
इस बार भी, जो बात ZPM के पक्ष में रही वो थी वादा पूरे करने में MNF की नाकामी. अपने प्रमुख कार्यक्रम 'सामाजिक-आर्थिक विकास नीति (SEDP) के माध्यम से घरेलू परिवारों को मनमाफिक व्यापार करने के लिए 3 लाख रुपये देने का वादा MNF ने किया था लेकिन वो इसे पूरा कर नहीं पाई. यह 60,000 परिवारों को 50,000 रुपये की सहायता प्रदान करने में सक्षम था और अन्य 60,000 परिवारों को 25,000 रुपये प्रदान किए गए. SEDP को लागू करते समय अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं और विपक्ष ने आरोप लगाया है कि वास्तविक लाभार्थियों को पैसा नहीं मिला.
जिन कारणों से ZPM को बड़े पैमाने पर चुनाव जीतने में मदद मिली, उनमें से एक शहरी क्षेत्रों में क्लीन स्वीप थी. कुल 21 शहरी सीटें हैं और पार्टी ने 19 सीटें जीतीं. शहरी सीटों ने ही पार्टी को बड़ी बढ़त दिलाई और वह 21 के जरूरी बहुमत के आंकड़े के करीब पहुंच गई. बेरोजगारी और राज्य के बुनियादी ढांचे में पिछड़ेपन के कारण MNF के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी और इसने शहरी क्षेत्रों में MNF की जगह ZPM को लेने में बड़ी भूमिका निभाई.
पार्टी ने राजधानी आइजोल में बड़ी जीत हासिल की. इसने आइजोल नगर निगम में आने वाले सभी 11 सीटों पर जीत हासिल की. पिछली बार, ZPM ने 6 सीटें हासिल की थीं, जबकि MNF को 5 सीटों से संतुष्ट रहना पड़ा था. आइजोल पूर्व-I निर्वाचन क्षेत्र में, पार्टी के लालथनसांगा - जो पहले MPC में थे. मौजूदा CM जोरमथंगा को हराकर इस चुनाव में महाविजेता की तरह उभरे.
किसानों के मुद्दों पर ZPM के फोकस ने इसे ग्रामीण इलाकों में पैठ बनाने में मदद की. राज्य के दूसरे सबसे बड़े शहर लुंगलेई शहर में भी पार्टी को इसी तरह का समर्थन मिला. परिणामस्वरूप, पार्टी लुंगलेई नगर परिषद में आने वाले सभी 4 निर्वाचन क्षेत्रों को MNF से छीनने में सफल रही.
पिछले चुनावों में, पार्टी ने 19 ग्रामीण सीटों में से केवल एक ग्रामीण सीट - तुइरियल जीती थी. यदि पार्टी को सत्ता में हासिल करने के लिए, उसे पता था कि केवल शहरी सीटें जीतना काफी नहीं होगा; उसे ग्रामीण इलाकों में भी कम से कम कुछ सीटें जीतनी होगी. इसके लिए पार्टी ने किसानों के मुद्दों पर फोकस किया.
इसने वादा किया कि उसकी सरकार किसान-हितैषी होगी और चार स्थानीय फसल- अदरक, हल्दी, मिर्च और ब्रूमस्टिक के लिए MSP भी देगी.
इन प्रयासों के परिणाम 4 दिसंबर को दिखाई दिए जब पार्टी ने 8 नई ग्रामीण सीटें जीतीं लेकिन इस बार तुइरियाल सीट हार गई. ग्रामीण इलाकों में, जहां MNF किसी तरह 9 सीटें जीतकर बढ़त बनाए रखने में सफल रही, वहीं ZPM को ज्यादातर फायदा कांग्रेस से मिला.
पिछले चुनावों में, ZPM ने अपनी अधिकांश सीटें 8 में से 6 सीटें- आइजोल क्षेत्र से जीती थीं. इस बार पार्टी ने 14 में से 13 सीटें जीतकर क्षेत्र में अपना परचम लहराया. यह उसके खाते में 7 सीटों की बढ़ोतरी थी. सिर्फ तुइवावल निर्वाचन क्षेत्र इसका अपवाद था-जिसे MNF ने जीता था.
उत्तरी क्षेत्र में पिछली बार ZPM केवल 2 सीटें ही जीत पाई थी. इस बार इसमें 6 सीटों का इजाफा हुआ. क्षेत्र की 14 सीटों में से उसने 8 सीटों पर कब्जा कर लिया जबकि MNF 6 सीटों पर सिमट गई.हालांकि, इस क्षेत्र का ममित जिला ZPM लहर से अछूता रहा क्योंकि इस जिले की सभी 3 सीटें MNF ने बचा ली थी.
दक्षिणी इलाकों में जहां पार्टी अपना खाता नहीं खोल पाती थी, ZPM 12 में से 6 सीटें जीतने में सफल रही और क्षेत्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
हालांकि, हमार पीपुल्स कन्वेंशन के साथ गठबंधन करने के पार्टी के दांव ने जातीय हमार-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में मिलेजुले नतीजे दिए और पार्टी ने MNF से चैलफिल सीट जीती, लेकिन अन्य दो सीटें-सेरलुई और तुइवावल को MNF ने बचा ले गई.
बौद्ध चकमा और ईसाई मरास जैसे जातीय अल्पसंख्यकों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में यह कमजोर बना हुआ है. चकमा-प्रभुत्व वाली दो सीटें -तुइचावंग और पश्चिम तुईपुई - MNF ने सुरक्षित कर लीं, जबकि मारा-प्रभुत्व वाले सैहा जिले की दो सीटें-सैहा और पलक- भाजपा ने हासिल कर लीं.
इसके अलावा, यह पूर्वोत्तर राज्य पहले से ही म्यांमार- बांग्लादेश से चिन-कुकी लोगों के आने और मणिपुर से कुकी-ज़ोमी लोगों के आने से शरणार्थी संकट का सामना कर रहा है.
ध्यान देने वाली एक और बात यह है कि ZPM ने कहा है कि वह केंद्र के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखेगा - जिससे अटकलें लगाई जा रही हैं कि यह NDA में शामिल होने वाला पूर्वोत्तर का नया घटक हो सकता है.
(सागरनील सिन्हा एक राजनीतिक टिप्पणीकार हैं और @SagarneelSinha पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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