मेंबर्स के लिए
lock close icon

मोदी की खाड़ी देशों से संबंध सुधारने की पहल रंग लाई

भारत अपनी जरूरत का 65 फीसदी गैस और कच्चा तेल खाड़ी से ही प्राप्त करता है.

मनोज जोशी
नजरिया
Published:
प्रधानमंत्री मोदी 2015 में संयुक्त राज्य अमीरात (यूएई) गए थे.
i
प्रधानमंत्री मोदी 2015 में संयुक्त राज्य अमीरात (यूएई) गए थे.
(फोटो: Reuters)

advertisement

पश्चिम एशिया के साथ अपनी कूटनीति के लिए प्रधानमंत्री को पूरे नंबर दिए जाने चाहिए. पिछले छह माह में भारतीय और इजराइली प्रधानमंत्री की आपसी यात्राओं समेत मोदी की ताजा फिलिस्तीन, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात की यात्राएं और ईरानी राष्ट्रपति की प्रस्तावित यात्रा से साबित हो गया है कि इस क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों में मिठास आई है.

पश्चिम एशिया में संतुलन

भारत अपनी जरूरत का 65 फीसदी गैस और कच्चा तेल खाड़ी से ही प्राप्त करता है. इसके अलावा खाड़ी देशों में भारत का बीस फीसदी कारोबार होता है. इस इलाके में 90 लाख प्रवासी भारतीय 35 अरब रुपए की रकम भी भारत को भेजते हैं.

जाहिर है किसी भी अन्य विदेशी क्षेत्र से यह क्षेत्र अहम भूमिका रखता है. यह केवल संयोग नहीं कि इन देशों से संबंध अच्छे होने का असर ही है कि खाड़ी देशों में भारत से साप्ताहिक रूप से 700 उड़ानें होती है. इसलिए व्यवहारिक तौर पर खाड़ी देशों को भारत का पड़ौसी मानने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए.

हालांकि भारत में मोदी की फिलिस्तीन की यात्रा को सांकेतिक बता आलोचना हो रही है, पर लोग ये भूल रहे कि इस यात्रा ने चौतरफा मुसीबतों में घिरे फिलिस्तीनी लोगों के दिलों में सुकून व नई उम्मीद जगाई होगी. उस क्षेत्र के अन्य देशों ने भी इस बात को भी जरूर महसूस किया होगा कि भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान सरकार ने अपनी तमाम वैचारिक जरूरतों के तहत इजराइल को अपनाया है पर उसने देश की दीर्घकालीन जरूरतों को देखते हुए फिलिस्तीन के साथ अपने बरसों पुराने संबंधों को भी तिलांजलि नहीं दी है.

विदेशी निवेश में खाड़ी देशों की भूमिका

प्रधानमंत्री मोदी 2015 में संयुक्त राज्य अमीरात (यूएई) गए थे. उस वक्त उन्होंने भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में निवेश के लिए आमंत्रित किया था. 2017 में अबू धाबी विनिवेश अथॉरिटी ने एचडीएफसी के खास अफोर्डेबल होम प्रोजेक्ट और एनआईआईएफ में एक-एक अरब डॉलर और रिन्युएबल एनर्जी प्रोजेक्ट में 30 करोड़ डॉलर निवेश किया है. उस वक्त भी भारत को पहली बार तेल रियायत भी मिली थी.

निचले जकुम क्षेत्र में उपलब्ध 40 फीसदी शेयर में से ओएनजीसी विदेश की अगुआई वाले ज्वाइंट वेंचर 10 फीसदी हिस्सेदारी मिली. इस तरह हम पेट्रोलियम रिजर्व क्षेत्र में भी एक अहम समझौता करने में सफल हुए जिसके तहत मंगलोर के निकट पुद्दुर में संयुक्त अरब अमीरात से 60 लाख बैरल कच्चा तेल हासिल होगा. इस पैक्ट में सबसे अहम था, डीपी वर्ल्ड द्वारा जम्मू व कश्मीर जैसे गड़बड़ी वाले क्षेत्र में इनलैंड कंटेनर टर्मिनल स्थापित करने का वायदा.

दुनिया का एक तिहाई कच्चा तेल OPEC से मिलता है(फोटो: Reuters)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

भारत- खाड़ी देशों में ऐतिहासिक संबंध

भारत के लिए यूएई की भूमिका केवल तेल आपूर्ति और प्रवासी भारतीयों की आबादी तक ही सीमित नहीं है. वो हमारे यहां के संगठित क्राइम, तस्करी और खास तौर पर आतंकवाद विरोधी मुहिम में भी अहम पार्टनर है. इसी तरह 2011 के एक पैक्ट के तहत दोनों देश आपसी सुरक्षा सहयोग के लिए काम कर रहे हैं.

भारत और ओमान ऐतिहासिक रूप से भी आपस में मजबूती से जुड़े हैं. अरब सागर के एक किनारे बसा ओमान भारत से हिन्द महासागर के माध्यम से जुड़ा है. इसके एक किनारे पर ईरान का चाबहार बंदरगाह है तो दूसरी ओर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में चीन द्वारा संचालित ग्वादर बंदरगाह है. दिलचस्प बात यह है कि 1783 और 1958 के बीच यह द्वीप ग्वादर ओमान का ही हिस्सा था.

खाड़ी देशों के साथ भारत का आर्थिक संबंध

समुद्री आवाजाही और व्यापार के क्षेत्र में भारत और ओमान ने 1953 में ही एक समझौता किया था. लेकिन हमारे संबंधों की खास बात डिफेन्स कोऑपरेशन से संबंधित है, जिसे हमने 2005 में अंजाम दिया था. 2016 में एक बार फिर से इस पर मुहर लगाई गई. इस पैक्ट के तहत एक कमेटी बनाई गई थी जिसने 2006 से अब तक नौ बार की बैठकों से इस कोऑपरेशन को और आगे बढ़ाया है.

ओमान के साथ हमारे आर्थिक संबंध भी कम अहम नहीं हैं. किसी देश के साथ सबसे बड़ा ज्वाइंट वेंचर ओमान-भारत फर्टिलाइजर कंपनी ओमान में ही स्थापित की गई थी. करीब 100 करोड़ डॉलर की लागत से इसे 2006 में शुरू किया गया था. इसकी खास बात ये है कि यहां बना यूरिया और अमोनिया की पूरी खपत भारत में ही होती है.

ऐसे ही दुक्म बंदरगाह पर भारतीय नौसेना के लिए खास व्यवस्था हमारे संबंधों में एक अहम मोड़ लेकर आया है. हालांकि दुर्भाग्य की बात यह है कि भारतीय मीडिया के कुछ जानकार इसे चीन के खिलाफ एक रणनीति के तौर पर देख रहे हैं. वे यह भूल रहे हैं कि चीन की एक कंपनी इसी बंदरगाह के पास 10.7 अरब डॉलर के खर्चे पर एक प्रोजेक्ट लगाने जा रही है. पिछले साल ओमान ने कुछ चीनी बैंकों से 3.6 अरब डॉलर का उधार लिया था.

भारत की अपनी नीति है 'एक्ट वेस्ट'

दुक्म ओमान का एक छोटा सा बंदरगाह है और सबसे बड़ा बंदरगाह सल्लाह पश्चिमी किनारे पर बसा है. यह सामरिक रूप से एशिया और यूरोप के बीच व्यापार का अहम् दरवाजा है. इसके अलावा गहरे समुद्र व मुक्त क्षेत्र में बसा सोहर बंदरगाह सबसे तेजी से विकसित हो रहा है.

एक्ट ईस्ट पॉलिसी भारत की कोशिश जापान और अमेरिका के साथ हर मुद्दे में सहयोग कर रहा है. लेकिन एक्ट वेस्ट पॉलिसी भारत की अपनी नीति है. यह अमेरिका की भारत-पैसिफिक नीति से अलग है, इसमें भारत का दबदबा है.

अमेरिका से कई मामलों में भारत की खाड़ी की नीति पूरी तरह अलग है. अमेरिका की तरह हम यरूशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता नहीं देते, न ही उनकी तरह हम ईरान के खिलाफ हैं. ईरानी राष्टपति की यात्रा से भी यह और स्पष्ट होगा.

भारत-प्रशांत क्षेत्र में हमारी सीमित संभावनाओं की अपेक्षा पश्चिम एशियाई क्षेत्र हमारी विकास की अहम जरूरतों जैसे एनर्जी रिसोर्सेज, कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए निवेश के मौके और लाखों लोगों को नौकरी के भरपूर अवसर देता है. जहां ईरान हमें अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप तक पहुंचने के रास्ते उपलब्ध कराता है, तो ओमान हमें पश्चिम हिन्द महासागर तक पहुंचने के राह खोलता है.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के जाने माने फेलो हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT