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काउंटर व्यू: जब PMGKAY को खत्म कर दिया,तो क्या अब फ्री सब्सिडी की राजनीति चलेगी?

Modi Government ने पीएमजीकेएवाय को खत्म कर दिया और एनएफएसए को मुफ्त, इससे खाद्य सब्सिडी की बचत होगी

सुभाष चंद्र गर्ग
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>भारत सरकार पीएमजीकेएवाय को खत्म कर चुकी है.</p></div>
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भारत सरकार पीएमजीकेएवाय को खत्म कर चुकी है.

फोटो:PTI

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(ये एक टू पार्ट आर्टिकल है. सरकार की एनएफएसए के तहत मुफ्त राशन योजना के पक्ष में विचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

कैबिनेट बैठक के बाद, 23 दिसंबर को प्रेस ब्यूरो ऑफ इंडिया (पीआईबी) से आधिकारिक प्रेस रिलीज जारी कर दावा किया गया कि केंद्र सरकार 1 जनवरी से एक वर्ष यानि साल 2023 तक के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त अनाज देगी.

मंत्री पीयूष गोयल ने कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया ब्रीफिंग में आगे कहा कि केंद्र अनाज सब्सिडी पर एक वर्ष की इस अवधि में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करेगा. गोयल ने कहा कि सरकार गरीबों का फिक्र करती है और यह खाद्य सब्सिडी "गरीबों के वित्तीय बोझ को दूर करेगी. "

जिस तरह इस सरकार में हर फैसले को ऐतिहासिक बताया जाता है उसी तर्ज पर मंत्री पीयूष गोयल ने इसे भी 'एक ऐतिहासिक फैसला' करार दिया. साथ ही प्रेस को एक तरह से ध्यान दिलाना चाहा कि वो देखें कि प्रधानमंत्री मोदी की संवेदनशीलता गरीबों को लेकर कितनी है और कल्याणकारी योजनाओं पर उनका फोकस है.

सरकार का कोविड का बहाना और अतिरिक्त अनाज खपाना

मंत्री ने स्पष्ट रूप से आधा सच बोला और अन्य खाद्य सुरक्षा योजना- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के संबंध में लिए गए एक बड़े फैसले को चुपके से छिपा दिया. मुझे समझाने दें कि आखिर बताया क्या गया था और क्या नहीं कहा गया.

NFSA को भारत के गरीब और वंचित नागरिकों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए 2013 में कानून बनाया गया था.  इसने खाद्यान्नों (चावल/गेहूं/मोटा अनाज) की सप्लाई प्रति व्यक्ति प्रति माह 3/2/1 रुपये प्रति किलोग्राम के नाममात्र मूल्य पर उनकी मानक कैलोरी संबंधी आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त माना.

एनएफएसए योजना 2014 से चल रही थी और 2020 में जब भारत में महामारी आई थी, तब भारतीय गरीबों की खाद्य सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जा रहा था. सरकार ने अचानक महसूस किया कि गरीब भारतीयों को अपने शरीर की देखभाल के लिए अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता है और 2020 में उनके लिए खाद्यान्न को दोगुना करने के लिए PMGKAY की घोषणा की. 

इस बात का कोई सबूत नहीं था कि कोविड 19 के कारण लोगों की कैलोरी की आवश्यकता बढ़ गई थी. हालांकि, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदाम अनाज से भरे हुए थे. इनको खर्च करने का और रास्ता बचा नहीं था. लेकिन सरकार ने PMGKAY के माध्यम से अतिरिक्त अनाज का निपटान करके स्थिति का अच्छा फायदा उठाने का सोचा. 

NFSA चालू, PMGKAY खत्म 

केंद्र सरकार ने हड़बड़ी में, गरीब और लोककल्याणकारी दिखने के लिए, सभी एनएफएसए लाभार्थियों को प्रति माह अतिरिक्त 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति फ्री अनाज देने के लिए पीएमजीकेएवाई की शुरुआत की. इस फैसले से FCI के अतिरिक्त अनाज का इस्तेमाल तो हो ही गया. साथ ही  महामारी के वक्त इसे बड़ा फिस्कल बूस्टर के तौर पर दिखाने का फायदा भी मिला.

इसके साथ, गरीबों को प्रति व्यक्ति 10 किलो, NFSA के तहत आधा अनाज 3/2/1 रुपये प्रति किलोग्राम और आधा पीएमजीकेएवाई के तहत पूरी तरह से मुफ्त मिलना शुरू हो गया.

केंद्र सरकार PMGKAY का विस्तार करती रही. पिछला विस्तार सितंबर 2022 में तीन महीने के लिए किया गया था जो 31 दिसंबर 2022 को समाप्त हो रहा है.

23 दिसंबर को सरकार ने दो फैसले किए:

पहले वाले की बड़ी सुर्खियों और प्रेस बयानों के साथ घोषणा की गई थी. NFSA के तहत 3/2/1 रुपये प्रति किलो की दर से मिल रहा अनाज 1 जनवरी 2023 से एक साल तक मुफ्त दिया जाएगा. 

दूसरे फैसले के बारे में कुछ कहा नहीं गया. सरकार ने एक किस्म की चुप्पी ओढ़ ली. मतलब साफ था कि PMGKAY- यानि वह योजना जो मुफ्त में अनाज देती है, को 31 दिसंबर 2022 से आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. 

इस फैसले का सीधा असर यह हुआ है कि सरकार अब प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलोग्राम अनाज के स्थान पर केवल 5 किलोग्राम अनाज देगी. गरीबों को प्रति व्यक्ति प्रति माह केवल 5 किलो मुफ्त अनाज जो अभी मिल रहा है, वो मिलता रहेगा.  वास्तव में, पीएमजीकेएवाई का जो मुफ्त अनाज वाला हिस्सा था उसे NFSA में शामिल कर लिया गया है और पीएमजीकेएवाई को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है.  

 पैकेज नया,माल वही    

पीयूष गोयल का भारत के 81.35 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज सिक्योरिटी देने के ऐतिहासिक निर्णय का दावा भी पूरी तरह सच नहीं है. केवल जिस योजना के तहत इतना अनाज मुफ्त में दिया जाता था उसका नाम PMGKAY से बदलकर NFSA कर दिया गया है.

पीयूष गोयल चालाकी दिखा रहे थे जब उन्होंने एनएफएसए के तहत अनाज को नाममात्र की लागत 3/2/1 प्रति किलो के स्थान पर मुफ्त में दिए जाने पर प्रकाश डाला. उन्होंने पीएमजीकेएवाई को बंद करने के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा. प्रेस रिलीज में अप्रत्यक्ष रूप से केवल इसका उल्लेख किया गया था जब यह कहा गया था कि सरकार ने 28 महीनों के लिए पीएमजीकेएवाई के तहत अनाज को मुफ्त बांटा है. 

इस खेल को हर कोई समझ सकता है. मेरे विचार से इस तरह के आधे-अधूरे सच को उछालना, सरकार की विश्वसनीयता को कम करता है और कोई वास्तविक उद्देश्य पूरा नहीं करता है.

‘मोदी सरकार की फ्रीबी पॉलिटिक्स ,  फूड सब्सिडी बचाने की कोशिश  

सरकार ने NFSA अनाज को पूरी तरह से फ्रीबी बना दिया है. 

NFSA के तहत वितरित खाद्यान्न (चावल और गेहूं मिलाकर) की औसत आर्थिक लागत लगभग रु. 30 प्रति किग्रा है. 81 करोड़ से अधिक गरीबों को 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति माह के हिसाब से सरकार को लगभग 50 मिलियन टन अनाज की आवश्यकता है.  

अगर सरकार इस अनाज को फ्री में देती है तो इस पर सरकार को सालाना करीब 1.5 लाख करोड़ रुपए सब्सिडी देने होंगे.  जैसा कि पीयूष गोयल ने दावा किया उसके हिसाब से कुछ अन्य श्रेणियों के लोगों के लिए सस्ता अनाज देने पर सब्सिडी का खर्चा लगभग 2 लाख करोड़ रुपए हो जाता है. 

3/2/1 रुपये प्रति किलोग्राम (या 2.5 रुपये प्रति किलोग्राम खाद्यान्न की औसत लागत) के स्थान पर मुफ्त में NFSA चावल/गेहूं/मोटे अनाज के प्रावधान से सरकार को प्रति वर्ष लगभग 12,500 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.

सरकार पीएमजीकेएवाई के तहत प्रति वर्ष लगभग 35 मिलियन टन अनाज मुफ्त में बांट रही थी. दूसरी ओर, पीएमजीकेएवाई के बंद होने से सालाना लगभग 1.05 लाख करोड़ रुपये का फूड सब्सिडी खर्च बचेगा. सरकार फूड सब्सिडी पर 2 लाख करोड़ रुपये खर्च करने के बजाय प्रति वर्ष लगभग 92,500 करोड़ रुपये की बचत कर रही है. 

हालांकि, इस फैसले ने NFSA के तहत अनाज को पहली बार और संभवत: हमेशा के लिए मुफ्त कर दिया है. भविष्य की कोई भी सरकार अब से किसी से इसके लिए नाम मात्र की भी कोई कीमत वसूलने की हिम्मत नहीं कर पाएगी. 

सरकार की एनएफएसए के तहत मुफ्त राशन योजना के पक्ष में विचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

(लेखक सुभांजलि के मुख्य नीतिगत सलाहकार हैं, उन्होंने "The $10 Trillion Dream" नाम की किताब लिखी है. वे भारत सरकार में वित्त और आर्थिक मामलों के सचिव (पूर्व) रह चुके हैं. इस लेख में उनके निजी विचार हैं. द क्विंट ना तो इनका समर्थन करता है और ना ही इनके लिए जिम्मेदार है)

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