मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मोदी ने एयरपोर्ट पर गले मिलकर क्यों नहीं किया पुतिन का स्वागत?

मोदी ने एयरपोर्ट पर गले मिलकर क्यों नहीं किया पुतिन का स्वागत?

भारत ने रूस से S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने के लिए 5 अरब डॉलर का समझौता किया,लेकिन ज्यादा प्रचार नहीं हुआ

राघव बहल
नजरिया
Published:
(फोटो: The Quint)
i
null
(फोटो: The Quint)

advertisement

बराक ओबामा, शी जिनपिंग, शेख मोहम्मद बिन जायेद, शेख हसीना, शिंजो आबे, बेंजामिन नेतान्याहू और इमानुएल मैक्रों में क्या समानता है? जवाब है - प्रधानमंत्री मोदी प्रोटोकॉल की परवाह न करते हुए इन सभी का स्वागत करने खुद इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंचे थे.

अब जरा ये बताइए कि जस्टिन ट्रूडो और व्लादिमीर पुतिन में कौन सी बात एक जैसी है? तो जवाब ये है कि इन दोनों के भारत आने पर मोदी ने प्रोटोकॉल का पालन किया और स्वागत करने एयरपोर्ट नहीं गए.

पुतिन की भारत यात्रा के दौरान ऐसे असमंजस में डालने वाले हालात तब भी दिखाई दिए, जब भारत ने रूस से एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने के लिए 5 अरब डॉलर का समझौता तो किया, लेकिन इसका ज्यादा प्रचार नहीं हुआ.

हद तो तब हो गई जब अपने कट्टर/सैन्यवादी राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीटने का कोई मौका नहीं चूकने वाले मोदी ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में एस-400 का जिक्र तक नहीं किया. हमारे विदेश मंत्रालय ने भी उन दस्तावेजों की सूची में इस महत्वपूर्ण हथियार खरीद समझौते का उल्लेख ही नहीं किया, जिन पर पुतिन की यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए गए. साझा बयान में भी इसे सिर्फ एक लाइन की जगह मिली. (दिल्ली की सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल अमेरिका को खुश रखने के लिए इस सौदे को लटकाना चाहते थे, लेकिन पुतिन ने मोदी पर भारी दबाव डालकर इसे मंजूर करवा लिया!)

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

जाहिर है, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की दबंगई (और पाबंदी की धमकी) की छाया पूरे कार्यक्रम पर दिख रही थी. चीन की अदृश्य धमकी भी अनिश्चय के इस माहौल को और अस्थिर बना रही थी, क्योंकि चीन अपने पश्चिम-विरोधी मोर्चे में रूस को भी घसीटता जा रहा है.

मेरे जैसे लोगों के लिए, जो 1960/70 के उस दौर में पले-बढ़े हैं, जब शीतयुद्ध अपने चरम पर था, तब और अब के हालात का ये फर्क वाकई काबिले-गौर है. ब्रेजनेव-इंदिरा की मुलाकात तब एक ऐसा मौका होता था, जब हम बड़े धूम-धड़ाके और अकड़ के साथ अपनी “खुद-मुख्तारी का जश्न” मनाते हुए अमेरिका को चिढ़ाते थे. लेकिन शुक्रवार को पुतिन-मोदी मुलाकात के दौरान हम किसी भी तरह अमेरिकी गुस्से की चपेट में आने से बचने की कोशिश करते नजर आए. इन हालात में भारत-रूस संबंधों का भविष्य क्या है?

गुजरे जमाने के इस करीबी रिश्ते की कोई खास अहमियत क्या अब भी बची है (आपको याद है, भारत-सोवियत फ्रेंडशिप समझौते से अमेरिका कितना चिढ़ गया था)?

एक नजर हाल के इतिहास पर

1991 में सोवियत यूनियन के बिखरने के साथ ही हमारे रिश्तों में भी बिखराव आ गया. रूस ने सुपर-पावर का दर्जा छिनने के बाद दुनिया के पैमाने पर अपनी घटती भूमिका के साथ बड़ी मुश्किल से तालमेल बिठाया. इस दौरान उसने कई नए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय रिश्ते बनाए - जिनमें मिखाइल गोर्बाचेव की "चाइना फर्स्ट" पॉलिसी के तहत चीन के साथ रिश्तों में सुधार शामिल है.

कैश की भारी किल्लत को दूर करने के लिए रूस ने अपने हथियार सिर्फ भारत और चीन को ही नहीं, हर उस देश को बेचने शुरू किए, जो उन्हें खरीदने को तैयार था.यहां तक कि लीबिया, सीरिया, ईरान....और पाकिस्तान को भी. 2000 में पुतिन की भारत यात्रा के दौरान हमारे रिश्तों में फिर से कुछ जान आई और एक रणनीतिक पार्टनरशिप बनी. तब से अब तक दोनो देशों के रिश्ते मुख्यतौर पर हथियारों और फौजी साजो-सामान के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं.

अब ये संबंध, हर हाल में मजबूती से टिकी रहने वाली दोस्ती से ज्यादा एक उपयोगितावादी रिश्ते में तब्दील हो चुका है. इसी दौरान, भारत लगातार अमेरिका के और करीब आता गया. 9/11 के आतंकवादी हमले ने इस दोस्ती को और मजबूत किया, क्योंकि इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने और चीन के आक्रामक उभार को रोकने के मामले में दोनों देशों के हित आपस में जुड़े हुए थे. 2008 के परमाणु समझौते ने इस रिश्ते को और ताकत दी. भारत-अमेरिका की तेजी से बढ़ती दोस्ती ने रूस को सतर्क कर दिया और उसने सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के साथ भी आर्थिक और रणनीतिक सहयोग और बढ़ाना शुरू कर दिया, जिसमें भारत को नाराज करने का इरादा भी साफ नजर आ रहा था. रूस ने पाकिस्तान को लड़ाकू हेलिकॉप्टर समेत तमाम सैन्य उपकरणों की बिक्री में इजाफा किया और पाकिस्तानी थलसेना, नेवी और एयरफोर्स के प्रमुखों ने रूस के दौरे भी किए, जिनमें कई और संभावित सौदों पर बात हुई.

रूस-पाकिस्तान के बीच 2014 से साझा नौसैनिक अभ्यास होते आ रहे हैं, जिनका मुख्य मकसद नशीली दवाओं की तस्करी रोकना रहा है. लेकिन 2016 में उन्होंने इस सहयोग को और आगे बढ़ाते हुए पहली बार ज्यादा पारंपरिक साझा सैनिक अभ्यास किए, जिनमें युद्ध की ट्रेनिंग शामिल है. 'उरी' पर हमले के फौरन बाद दोनों देशों ने "द्रुजमा" यानी "दोस्ती" के नाम से एक और साझा अभ्यास किया, जिसने घाव पर नमक छिड़कने का काम किया. इससे भी बुरी बात ये है कि उन्होंने साझा अभ्यास का एक हिस्सा कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान प्रांत में करने का कार्यक्रम बनाया था, जिसे भारत के कड़े विरोध के बाद पाकिस्तान के खैबर-पख्तूवख्वा प्रांत में अंजाम दिया गया. पुराने दौर में हमेशा भारत का साथ देने वाले रूस ने 2016 में गोवा के ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणापत्र में 'सरकार प्रायोजित आतंकवाद' का जिक्र करने की भारत की मांग का समर्थन नहीं किया, क्योंकि इशारा पाकिस्तान की तरफ था.

भारत-रूस के साथ का दूसरा पहलू

लेकिन रूस को ये भी मालूम है कि भारत को अलग-थलग करने से उसे कुछ हासिल नहीं होने वाला. चीन के साथ बढ़ते रिश्तों के बावजूद रूस ये अच्छी तरह जानता है कि ड्रैगन के बढ़ते वर्चस्व को काबू में रखने के लिए भारत का साथ जरूरी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता हासिल करने के भारत के दावे का रूस ने मजबूती से समर्थन किया. हाल ही में उसने न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भी भारत की सदस्यता का समर्थन किया. इससे पता चलता है कि वो अपने क्षेत्रीय सहयोगियों का दायरा बढ़ाना चाहता है. अमेरिकी डिफेंस एनेलिस्ट डेरेक ग्रॉसमैन का मानना है कि रूस ने शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन में भारत को शामिल करने का समर्थन इसीलिए किया, ताकि संगठन के भीतर चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाया जा सके. दरअसल, ऐसी कोई ठोस वजह नहीं है, जिसके चलते भारत और रूस के बरसों पुराने और लाभदायक रिश्तों को बिखरने दिया जाए.

भारतीय सेनाओं के साजो-सामान का बड़ा हिस्सा सोवियत संघ या रूस से आता रहा है और अब भी हमारे हथियारों का अधिकांश हिस्सा मॉस्को ही सप्लाई करता है. SIPRI के मुताबिक 2013 से 2017 के दौरान ये हिस्सा 62 फीसदी था. भारत को जिस आधुनिक डिफेंस टेक्नोलॉजी की जरूरत है, वो कम ही देशों के पास है और रूस न सिर्फ ऐसी टेक्नोलॉजी मुहैया कराने को तैयार है, बल्कि वो उनके इस्तेमाल के लिए शर्तें भी नहीं लादता. हथियारों की खरीद के बाद भारत उन्हें कहां तैनात करेगा, इससे रूस को कोई मतलब नहीं होता. ऐसे कई और क्षेत्र भी हैं, जिनमें दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग हो सकता है. इनमें अंतरिक्ष अनुसंधान, वैज्ञानिक रिसर्च, टेक्नोलॉजी का लेन-देन, न्यूक्लियर एनर्जी, आतंकवाद विरोधी प्रयास और साझा मैन्युफैक्चरिंग जैसे अहम क्षेत्र शामिल हैं.

भौगोलिक-राजनीतिक अस्थिरता के इस दौर में रूस हमारे देश के उत्तर में मौजूद एक विशाल और ताकतवर देश है, जिसे कुछ हद तक अप्रत्याशित भले ही मान लिया जाए, लेकिन वो चीन की तरह अबूझ पहेली भी नहीं है. भारत-रूस संबंध उस पुराने कंबल की तरह है, जो घिस भले ही चुका हो, फिर भी मुश्किल वक्त में काम आता है.

भारत है अमेरिका और रूस के बीच की कड़ी

अमेरिका इसे भले ही पसंद न करे, लेकिन उसे ये बर्दाश्त करना पड़ेगा. कुछ भी हो, हमारा आखिरी लक्ष्य तो एक ही है. रूस को चीन के बिल्कुल करीब जाने से रोकना. कोल्ड वॉर के जमाने से ही पश्चिमी देशों को रूस-चीन गठजोड़ का खतरा डराता रहा है, जिसे रोकने के लिए वो समय-समय पर दोनों के बीच दरार को बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं. लेकिन, अमेरिका की स्थिति पहले से कमजोर होने और यूरोप की हैसियत में गिरावट के चलते उनके लिए अब ऐसा करना आसान नहीं रह गया है.

इस बीच, NATO के प्रति पुतिन के बढ़ते गुस्से ने उन्हें चीन के और करीब लाने का काम ही किया है. यूरेशिया के दोनों सबसे ताकतवर मुल्क पश्चिम पर भरोसा नहीं करते और तानाशाही शासन को पसंद करते हैं. लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर दूसरे देशों के उपदेश देने से भी दोनों ही चिढ़ते हैं. आर्थिक रूप से भी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. रूस के पास प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है तो चीन मैन्युफैक्चरिंग का सबसे बड़ा ठिकाना. दोनों के आपसी व्यापार और रक्षा सहयोग में भी लगातार इजाफा हो रहा है. चीन ने रूसी हथियारों की खरीद बढ़ाई है, जिनमें लड़ाकू विमान और एस-400 शामिल हैं. रूस और चीन के बीच साझा युद्ध अभ्यास भी बढ़ा है. दोनों की मजबूत होती पार्टनरशिप सारी दुनिया का शक्ति-संतुलन बिगाड़ने का दम रखती है, जो हम सबके लिए खतरनाक है. इस रिश्ते को काबू में रखने के मामले में भारत सबसे अच्छी स्थिति में है. हम अपने पुराने घनिष्ठ संबंधों में फिर से गर्मजोशी लाकर और मल्टीपोलर भविष्य का विजन पेश करके रूस का रुख मोड़ सकते हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT