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कश्मीर में पहली बार ‘वादा’ कर नेता की हत्या, BJP नेताओं में डर  

बांदीपोरा शहर के शेख वसीम बारी 2014 से ही सपरिवार बीजेपी के साथ जुड़े हुए थे

अहमद अली फय्याज
नजरिया
Published:
बांदीपोरा शहर के शेख वसीम बारी 2014 से ही सपरिवार बीजेपी के साथ जुड़े हुए थे
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बांदीपोरा शहर के शेख वसीम बारी 2014 से ही सपरिवार बीजेपी के साथ जुड़े हुए थे
(फोटो: क्विंट)

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बांदीपोरा शहर के शेख वसीम बारी 2014 से ही सपरिवार बीजेपी के साथ जुड़े हुए थे जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाला था और हिंसाग्रस्त कश्मीर में ‘राष्ट्रवादी ताकतों’ को मजबूत बनाने का भरोसा दिलाया था.

बीजेपी में बांदीपोरा जिला अध्यक्ष के रूप में काम करते हुए बारी को मार्च 2020 में पार्टी की राज्य कार्यकारिणी समिति में मनोनीत किया गया था. 4 जून 2020 को उन्हें पार्टी के प्रशिक्षण विभाग का कश्मीर प्रभारी भी नियुक्त किया गया था. उनके पिता बशीर अहमद शेख (60) और भाई उमर शेख भी बीजेपी में छोटे स्तर पर अलग-अलग जिम्मेदारियों से बंधे थे. इन लोगों ने अपनी दो मंजिली इमारत में बीजेपी का जिला कार्यालय भी बना रखा था, जो स्थानीय पुलिस थाना के बिल्कुल सामने है. पड़ोस के मुस्लिमाबाद में द शेख हाऊस शहर का लैंडमार्क है जहां बहुत ऊंचाई पर टेरेस में भारतीय तिरंगा और बीजेपी का पार्टी झंडा लहराता है.

बुधवार 8 जुलाई की रात पौने नौ बजे- अभी कुछ मिनट पहले बारी ससुराल से लौटे थे. अपने पिता और भाई के साथ घर के ग्राउंड फ्लोर स्थित दुकान में मौजूद थे, जब एक अज्ञात आतंकवादियों ने उन पर घात लगाकर हमला कर दिया और उन सबकी जान ले ली.

सिर में गोली लगने की वजह से तीनों की मौत हो गयी. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ बीजेपी नेता और पीएमओ में राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह और सरकार के कई लोगों ने परिवार को अपनी संवेदना भेजी. परिवार में दो महिलाएं और दो बच्चे हैं.

क्या ‘सुरक्षा खामी’ की वजह से हुआ ट्रिपल मर्डर?


कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने गुरुवार 9 जुलाई को घटनास्थल का दौरा किया जब तीनों ताबूतों को हरे कपड़े में लपेटा जा रहा था और अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी. उन्होंने ट्रिपल मर्डर को ‘सुरक्षा खामी’ का नतीजा बताया और खुलासा किया कि 10 सुरक्षाकर्मियों को बारी और उनके परिवार की रक्षा की जिम्मेदारी दी गयी थी. , इनमें दो सिक्योरिटी विंग से थे और 8 जिला पुलिस से थे.

इऩमें से 8 ड्यूटी पर थे और घटना के वक्त किसी अन्य कमरे में थे. बीजेपी नेताओं का कोई भी पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर (पीएसओ) उनके आसपास नहीं था जब साजिशन ये आतंकी हमला हुआ.

उन्होंने कहा कि सभी 10 पीएसओ को ड्यूटी के दौरान आपराधिक लापरवाही के लिए गिरफ्तार कर लिया गया है और उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया जा रहा है. आईजीपी ने यह भी दावा किया कि थाने में मौजूद सीसीटीवी कैमरे की मदद से हत्यारों की पहचान कर ली गयी है. एक लश्कर-ए-तैय्यबा ग्रुप का स्थानीय आतंकवादी है और दूसरा विदेशी है.

तय नियमों के मुताबिक बारी के घर के सामने मौजूद पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गयी है. हालांकि पुलिस अभी अंधेरे में तीर ही मार रही है.

मुख्य धारा की सभी राजनीतिक पार्टियों में बीजेपी की पैठ बांदीपोरा में ज्यादा है. इलाके में वर्षों से रही शांति की वजह से सुरक्षा का एक भ्रम था और बीजेपी सदस्यों के साथ-साथ पुलिस भी बेपरवाह थी. पिछले 6 सालों में घाटी में आतंकियों ने सिर्फ 2 बीजेपी नेताओं पर हमला किया, जिसमें ये नेता मारे गए. ये दोनों घटनाएं दक्षिण कश्मीर इलाके के पुलवामा-शोपियां में हुईं थीं. बारी के घर से आईटीबीपी की तैनात सुरक्षा को हटे एक महीने से अधिक समय हो चुका था. वे न केवल आसपास के इलाकों में जाया करते थे और लोगों से मिलते थे, बल्कि वे अपने दफ्तर में बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यक्रमों का भी आयोजन किया करते थे.

क्विंट ने पता किया कि बारी की हत्या कश्मीर में पहली ऐसी हत्या है जिस बारे में सोशल मीडिया पर ‘भविष्यवाणी’ और ‘वादा’ किया गया था और जिसे सटीक तरीके से अंजाम दिया गया. शूटआउट की घटना के कुछ घंटों के भीतर फेसबुक पर इसका जश्न भी मनाया गया.

पिता और भाई समेत बुधवार को बारी की हत्या से पूरी घाटी में हड़कंप मच गयाहै . सभी बीजेपी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की जा रही है.

शूटआउट के तुरंत बाद पुलिस तुरंत बीजेपी की एक महिला नेता के घर पहुंची और उनके लिए बांदीपोरा के सुरक्षित एनएचपीसी कॉलोनी में पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ रहने की व्यवस्था कर दी गयी.

बांदीपोरा के लोगों को याद नहीं आता कि बीते 15 साल में किसी राजनीतिक नेता की हत्या हुई हो. तब एश्तेंगो के जमात-ए-इस्लामी कार्यकर्ता अब्दुल गफ्फार की हत्या कर दी गयी थी.

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प्लान बनाकर और बताकर की गई बारी की हत्या

सोमवार 6 जुलाई 2020 को बारी और उसके सहयोगियों ने पूरे धूम-धड़ाके के साथ जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनकी 119वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी. उसी रात 8 बजकर 23 मिनट पर उस उत्सव को यादगार बनाने के लिए उन्होंने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर एक वीडियो भी अपलोड किया. स्वायत्तता समर्थक, आजादी समर्थक और पाकिस्तान परस्त लोगों ने उन्हें ट्रोल किया. यही उनका आखिरी फेसबुक वीडियो अपडेट था.

हालांकि जम्मू और कश्मीर पुलिस का साइबर सेल अभी जांच कर रहा है लेकिन क्विंट ने पता लगाया कि बारी की हत्या कश्मीर में पहली ऐसी हत्या है जिस बारे में सोशल मीडिया पर पहले ही ‘भविष्यवाणी’ और ‘वादा’ कर दिया गया था और जिसे सटीक तरीके से अंजाम दिया गया. शूटआउट की घटना के कुछ घंटों के भीतर फेसबुक पर इसका जश्न भी मनाया गया.

28 जून को बारी ने फेसबुक पेज पर एक वीडियो अपलोड किया जिसमें वे बीजेपी ऑफिस में प्रधानमंत्री की ‘मन की बात’ का प्रसारण अपने लैपटॉप पर देख रहे थे. उसी दिन किसी समीर अहमद ने सोशल मीडिया पर लिखा - “इंशाल्लाह तुम जल्द ही एक दिन नरक में जाओगे”

27 जून को बारी ने अपने फेसबुक पेज पर कुछ एनसी, कांग्रेस और पीडीपी कार्यकर्ताओं के बीजेपी में शामिल होने का वीडियो अपलोड किया. उसका कैप्शन था : “आज वरिष्ठ नेता और कश्मीर में प्रशिक्षण विभाग के प्रभारी एवं राज्य कार्यकारिणी सदस्य, जम्मू-कश्मीर शेख वसीम बारी की मौजूदगी में एनसी, पीडीपी जैसी अलग-अलग पार्टियों के कई बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी में शरीक हुए.”

एसपी मुखर्जी को श्रद्धांजलि देने के एक दिन बाद 7 जुलाई को किसी ‘हुजैफ लोन हुजैफलोन’ ने बारी के पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी : “इस शेख वसीम को कोई क्यों नहीं मारता ?”

जैसे ही 8 जुलाई को रात पौनै 9 बजे शेख वसीम की हत्या हुई, किसी ‘आमिर इकबाल’ ने ‘हुजैफ लोन’ के कमेंट पर लिखा (कश्मीरी भाषा में उसके 27 जून को रात 11.30 बजे वाले वीडियो पर) : “हुजैफ लोन हुजैफीलोन क्या तुम भविष्य वक्ता हो?”

बारी की हत्या के 5 घंटे बाद 9 जुलाई को रात 1 बजे ‘हुजैफ लोन’ ने दिवंगत बीजेपी नेता के फेसबुक थ्रेड में विजयी भाव में ‘आमिर इकबाल’ को जवाब दिया : “आमिर इकबाल हाहाहा भविष्यवाणी सच निकली भाई.”

15 वर्षों की शांति के बाद बांदीपोरा में ट्रिपल पॉलिटिकल मर्डर

पिता और भाई समेत बुधवार को बारी की मौत से पूरी घाटी में हड़कंप मंच गया. सभी बीजेपी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की जा रही है. शूटआउट के तुरंत बाद पुलिस तुरंत बीजेपी की एक महिला नेता के घर पहुंची और उनके लिए बांदीपोरा के सुरक्षित एनएचपीसी कॉलोनी में पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ रहने की व्यवस्था कर दी गयी.

उस्मान माजिद को छोड़कर किसी भी मुख्य धारा के नेता के पास पर्याप्त पुलिस सुरक्षा नहीं है. जिले में सुरक्षित रूप से कामकाज करने के लिए यह एक तरह से जरूरी है. अगस्त 2019 में जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया तो सुरक्षा वाहनों को वापस ले लिया गया और पर्सनल सिक्योरिटी अफसरों की संख्या भी सीमित कर दी गयी. बांदीपोरा के लोगों को याद नहीं आता कि बीते 15 साल में किसी राजनीतिक नेता की हत्या हुई हो. तब एश्तेंगो के जमात-ए-इस्लामी कार्यकर्ता अब्दुल गफ्फार की हत्या कर दी गयी थी.

पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक उस्मान माजिद के भाई, गुलाम नबी की हत्या 2003 में हुई थी. उस राजनीतिक हत्या के बाद से 15 साल बड़े आराम से कटे. उस्मान खुद आतंकवादी से आतंकवाद विरोधी बना था. अल्ताफ बुखारी की ‘अपनी पार्टी’ से 2019 में जुड़ने से पहले वह लम्बे समय तक कांग्रेस से जुड़ा रहा था. वरिष्ठ पीडीपी नेता और पूर्व विधायक निजामुद्दीन भट्ट के पोत्शाई परिवार के तीन रिश्तेदार भी मारे गये थे. उनका भतीजा और रिश्ते के भाई अपहरण कर लिए गए. 7 साल बाद उन्हें मरा हुआ घोषित कर दिया गया. भट्ट के भाई भयानक डिप्रेशन में चले गये और उसके बाद उनकी मौत हो गयी.

2005 से पहले बांदीपोरा में हत्याएं

मद्दार में पीडीपी के वार्ड मेम्बर गुलाम हसन को आतंकवाद विरोधी सशस्त्र इख्वानिसों ने कथित रूप से पकड़ लिया जब वे अपने घर लौट रहे थे. स्थानीय निवासियों के मुताबिक उसकी पत्नी उनकी जिन्दगी की भीख मांगती रहीं और अपने बच्चे को बंदूकधारियों के कदमों में रख दिया. लेकिन उन्हें तरस नहीं आयी. विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएट हसन को सड़क पर गोली मार दी गयी. उसकी पत्नी को बख्श दिया गया, लेकिन वो अब भी सदमे में है. पीडीपी नेता मोहम्मद कमाल भट और अब्दुल अहद भी मार डाले गये. नेशनल कॉन्फ्रेन्स के एक प्रखंड अध्यक्ष को भी गोली मार दी गयी जो बारी के ससुराल से रिश्तेदार थे.

बांदीपोरा में जिन अन्य प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई उनमें अरगाम के जेल अमीर गुलाम मोहम्मद भट, कांग्रेस नेता मोहम्मद युसूफ लोन और गुलाम नबी भट्ट शामिल हैं.

राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमले वास्तव में तब शुरू हुए जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता और विधान पार्षद हबीबुल्लाह भट्ट का अल्लाह टाइगर्स ने अपहरण कर लिया. बहरहाल, उन्हें एक महीने के भीतर छोड़ दिया गया. कई वर्षों के बाद डॉ गुलाम कादिर वानी की भी बांदीपोरा में हत्या कर दी गयी, जो मुस्लिम युनाइटेड फ्रंट के पूर्व वरिष्ठ नेता थे और जिन्होंने जेकेएलएफ से गुप्त मुलाकात के बाद आतंकवाद का रास्ता छोड़ दिया था.

पीडीपी के पूर्व विधायक और पूर्व विधान पार्षद निजामुद्दीन भट्ट ने क्विंट को बताया, “बांदीपोरा में मुख्य धारा की गतिविधियां और खुले तौर पर कोई गतिविधि लगभग थम गयी हैं. मुझे सिर्फ तीन पीएसओ के साथ छोड़ दिया गया है और कोई वाहन या सुरक्षा नहीं है. आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि मैं श्रीनगर से बांदीपुरा भी आ-जा सकूं.”

पत्रकार से राजनीतिज्ञ बने भट्ट ने जोर देकर कहा, “तीन बीजेपी नेताओं की नृशंस हत्या के बाद हम भयानक रूप से डरे हुए हैं. उन्हें ऐसे मारा गया जैसे किसी लंगड़े बत्तख को मारा जाता है. दूसरे दलों के ‘नेताओं’ के भविष्य की तो बस कल्पना की जा सकती है.“ यहां तक कि जब कई साल पहले आतंक विरोधी पुलिस अफसर अल्ताफ ‘लैपटॉप’ मारे गये थे, तब भी बांदीपोरा को मोटे तौर पर आतंकवाद मुक्त इलाका माना जाता था. कई सालों तक कोई बड़ी घटना नहीं घटी थी.

(लेखक श्रीनगर में पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @ahmedalifayyaz. यह उनके अपने विचार हैं. क्विंट का इससे कोई सरोकार नहीं है.)

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