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मुकेश अंबानी, मार्क जकरबर्ग और मनु जी- मेरे किराना दुकानदार – में क्या समानता है? तीनों व्हॉट्सऐप की ताकत में यकीन रखते हैं. मेरे किराना दुकानदार को यह पसंद है, क्योंकि इससे वह घर भेजने वाले सामानों की लिस्ट लिखने से बच जाता है – ‘आप व्हॉट्सऐप कर दिया करो,’ पिछले साल उसने मुझे कहा, ‘नहीं तो मैं भूल जाता हूं.’
वह अकेला ऐसा नहीं है. मेरा केमिस्ट भी व्हॉट्सऐप पर ही ऑर्डर लेता है और बिल की फोटो भेज देता है, ताकि जब दवा लेकर उसका डिलीवरी ब्वॉय पहुंचे तो मेरे पास उसे देने के लिए कैश तैयार हो. मेरा सब्जीवाला, जो कि हमेशा मेरा ऋणी रहता है – आध्यात्मिक तौर पर नहीं, बल्कि मुझसे लिए गए कर्ज की वजह से – मुझे हमेशा व्हॉट्सऐप मैसेज भेज कर बताता रहता है कि अब उसके पास मेरे कितने पैसे बचे हैं. इस लॉकडाउन ने मेरी जान-पहचान के सभी दुकानदारों को और ज्यादा व्हॉट्सऐप-फ्रेंडली बना दिया है.
मुकेश अंबानी और मार्क जकरबर्ग ने दुनिया की सबसे बड़ी टेक-डील करने की जो वजह बताई वो कुछ ऐसी थी. रिलायंस ने कहा, इस समझौते के बाद 3 करोड़ किराना दुकानदारों के लिए, जियोमार्ट ऐप और व्हॉट्सऐप के जरिए, अपने ग्राहकों से ‘डिजिटली लेनदेन’ करना मुमकिन हो जाएगा. मुकेश अंबानी के मुताबिक, ‘इसका मतलब यह हुआ कि अब आप अपने पास की दुकानों से रोजाना की जरूरी चीजें जल्द ऑर्डर कर सकते हैं और जल्द डिलीवरी पा सकते हैं.’
असल में, यह हमारे और आपके लिए नहीं है, जो कि अभी भी व्हॉट्सऐप के जरिए सामान ऑर्डर करते हैं. यह दरअसल बाजार की प्रतियोगिता खत्म करने के लिए है. अंबानी पहले ही टेलीकॉम में, सिर्फ मुफ्त डाटा बांटकर, प्रतिद्वंदिता खत्म कर यह दिखा चुके हैं. यह एक साहसिक फैसला था, जिसकी वजह से वो काफी कर्ज में डूब गए, लेकिन यह भी सुनिश्चित कर दिया कि भारत में टेलीकॉम सेवा देने वाली सबसे नई कंपनी के बहुत तेजी से सबसे ज्यादा 38.8 करोड़ ग्राहक बन गए.
मुकेश अंबानी बार-बार यह कहते रहे हैं कि डाटा नया ईंधन है, मतलब भविष्य के आर्थिक जीवन को यही संचालित करने वाला है. खुदरा बाजार इसमें बड़ा किरदार निभाएगा, लेकिन डाटा की तरह, इससे भी पैसा बनाना आसान नहीं होगा. जहां तक ई-खुदरा बाजार का सवाल है, अंबानी को अमेजन की अकूट संपत्ति से टक्कर लेनी होगी. यही वजह है वो जियोमार्ट में नए मॉडल के साथ आए हैं, जो कि किराना दुकानदारों के पूरे ढांचे को डिजटल मार्केट से जोड़ देगा.
मुश्किल यह है कि किराना दुकानदार – जैसे कि मेरा – अभी भी व्हॉट्सऐप के जरिए यह सुविधा दे रहे हैं. यही वजह है कि 6 साल पहले मार्क जकरबर्ग ने व्हॉट्सऐप पर दांव लगाते हुए इसे 19 बिलयन डॉलर में खरीदा था. उस समय पूरी दुनिया में सिर्फ 45 करोड़ लोग व्हॉट्सऐप का इस्तेमाल कर रहे थे और बदले में कमाई के नाम पर कुछ खास नहीं था. जकरबर्ग जानते थे कि लोग व्हॉट्सऐप का इस्तेमाल इसलिए करते हैं क्योंकि इसके लिए उन्हें पैसे नहीं देने पड़ते, और जल्द ही जिन देशों में सालाना इसके इस्तेमाल के लिए लोगों को 1 डॉलर खर्च करने होते थे उसे भी हटा दिया गया. इसके बदले जकरबर्ग ने पूरा ध्यान इस पर लगाया कि कैसे ज्यादा से ज्यादा कारोबारी अपने ग्राहकों से व्हॉट्सऐप के जरिए जुड़ें और इसके लिए पैसे दें.
यह मॉडल कितना सफल हुआ यह तो किसी को नहीं पता, लेकिन ज्यादातार अनुमानों के मुताबिक व्हॉट्सऐप ने बड़ा नुकसान झेला है. इसके खाते में कुछ है तो वो हैं 200 करोड़ यूजर्स, जिनमें 20 फीसदी भारतीय हैं. जकरबर्ग लगातार व्हॉट्सऐप का अपना अलग पेमेंट गेटवे पाने की कोशिशों में लगे थे, लेकिन उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली थी. दो साल के ट्रायल के बाद आखिरकर इस साल फरवरी में व्हॉट्सऐप को सरकार से चरणबद्ध तरीके से अपनी सेवाएं लाने की मंजूरी मिल गई.
लेकिन जकरबर्ग को पता है कि व्हॉट्सऐप सियासी तौर पर एक संवेदनशील प्लेटफॉर्म है, जिस पर फेक न्यूज और दूसरे अशांति फैलाने वाले तत्वों को रोकने के लिए सरकार कार्रवाई करती रही है. ऐसे में लोग जोक और मीम फॉरवर्ड किए बिना तो रह सकते हैं, लेकिन कारोबारियों को यह रास नहीं आएगा कि मैसेज के साथ पेमेंट गेटवे भी ब्लॉक हो जाए. जकरबर्ग भावना में बहने वाले कोराबारी नहीं हैं, वो अपने अहंकार को व्यापार पर हावी नहीं होने देते. बड़े नेताओं से उनकी गर्मजोशी से साफ है कि वो सरकार की अहमियत को समझते हैं.
अब, मुकेश अंबानी से बेहतर और प्रभावशाली दोस्त कौन हो सकता है? उनके पिता धीरूभाई अंबानी ने एक बार कहा था, ‘आपको सरकार को अपने विचारों को बेचना होगा.’ और, रिलायंस ने हमेशा ऐसा ही किया है, चाहे सत्ता में जो भी हो. जहां तक मददगार नीतियों वाले माहौल की बात है, जियो के लिए तो यह ड्रीम-रन जैसा था. और, कारोबार में अंबानी में इतना पैसा लगा दिया कि प्रतिद्वंदी बहुत पीछे छूट गए.
लेकिन, जकरबर्ग की तरह, मुकेश अंबानी भी ऐसे मोड़ पर पहुंच गए हैं जहां उनके लिए कमाई करना जरूरी हो गया है. जियोमार्ट और जियोमनी सिर्फ कमाई के लिए बनाई गई है, लेकिन इसे भारत में व्हॉट्सऐप की विशाल पहुंच से टक्कर लेनी होगी. जकरबर्ग और अंबानी दोनों जानते हैं कि अभी उन्हें कई प्रतिद्वंदियों को मात देनी है.
रिलायंस-फेसबुक समझौता ऐसी ही एक प्रतियोगिता की मिसाल है, जहां दो बड़े कारोबारियों ने मिलकर बाजार पर कब्जा करने के लिए हाथ मिलाया है.
जियोमार्ट और व्हॉट्सऐप के जरिए खुदरा किराना दुकानों का नेटवर्क तैयार करना संभवत इसी दिशा में पहला कदम है. डिजिटल हाईवे भविष्य कुछ ऐसा होगा जैसे इंटरनेट पर हर चीज के लिए अपना अलग आईपी ऐड्रेस होता है. कारें ट्रैफिक लाइट्स से संचार स्थापित करेंगीं, फ्रिज सब्जी बेचने वालों से और गैस सिलेंडर एलपीजी मुहैया कराने वाली कंपनियों से. मुमकिन है इन चीजों के इंटरनेट के लिए खर्चा कारोबारी, नगरपालिका और सरकारी विभाग उठाएंगे. आगे जो भी होने वाला है वो पहले कभी नहीं हुआ. एक बात तो तय है कि मुकेश अंबानी और मार्क जकरबर्ग जैसे लोग - जिन्होंने इस सिस्टम का पूरा ढांचा बनाया और इसे नियंत्रिण करते हैं – हमारे भविष्य पर राज करने वाले हैं.
(लेखक ऑनिंद्यो चक्रवर्ती एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रोफिट के वरिष्ठ प्रबंध संपादक थे. वह अब स्वतंत्र YouTube चैनल 'देसी डेमोक्रेसी' चलाते हैं. उन्होंने ये लेख @AunindyoC पर ट्वीट किया. ये लेखक के अपने विचार है. द क्विंट का इससे न कोई सरोकार है और न इसके लिए जिम्मेदार है.)
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Published: 23 Apr 2020,01:38 PM IST