मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मुख्तार अंसारी: 'माफिया' तो किसी के लिए 'मसीहा', अतीत में छिपे हैं मौत से जुड़े सवाल

मुख्तार अंसारी: 'माफिया' तो किसी के लिए 'मसीहा', अतीत में छिपे हैं मौत से जुड़े सवाल

Mukhtar Ansari: मुख्तार की कहानी वास्तव में पूर्वी यूपी में आपराधिक-राजनीतिक गठजोड़ की कहानी है

उमर रशीद
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>मुख्तार अंसारी</p></div>
i

मुख्तार अंसारी

(Photo- Altered By Quint Hindi)

advertisement

लंबी कद काठी और मोटी घुमावदार मुछों के साथ जब भी मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) उत्तर प्रदेश विधानसभा के पाक गलियारों से गुजरते थे तो वह दूसरे विधायकों से अलग दिखते थे. विधानसभा एकमात्र ऐसी जगह थी जहां वो 2005 में जेल जाने के बाद सार्वजिक रूप से नजर आए. दंगा और हत्याएं, उसी साल (साल 2005) हुई यह दो घटनाएं मुख्तार के जीवन और राजनीतिक करियर के लिए तबतक काल बनी रहीं, जबतक 28 मार्च 2024 को संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु ना हो गई.

मुख्तार का जीवन वास्तव में पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपराध और राजनीति के सांठगांठ का एक किस्सा है. पूर्वांचल में सामंतवाद, अपनी जाति के लिए वफादारी, व्यावसायिक हित और राजनीतिक महत्वाकांक्षा- ये सबने आपस में मिलकर खून-खराबा, बदले की आग और ध्रुवीकरण का एक घातक कॉकटेल बनाया. लेकिन पिछले सात सालों में जब से राज्य में बीजेपी की सरकार आई है, यह कहानी राज्य में चल रही पुरानी रंजिश और ताकतवर मुस्लिम राजनीतिक परिवार की सजा की कहानी में तब्दील हो गई जिसका मकसद बहुसंख्यक भावनाओं के नापाक इरादों को खुश करना रहा.

पूर्वांचल में चुनावी राजनीति, अपराध और वर्चस्व की लड़ाई के बीच की रेखाएं बहुत पहले धुंधला गई हैं. वहां पिछले तीन दशक में कई बाहुबलियों ने जनता की भावनाओं पर कब्जा कर लिया है. धनंजय सिंह, बृजेश सिंह, हरि शंकर तिवारी, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ 'राजा भैया', बृज भूषण शरण सिंह, विजय मिश्रा, अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी- इन सभी का नाम लगातार कुख्यातों की सूची में शामिल होता रहा है.

कुछ को अपने किए की 'सजा' मिली तो कुछ को सत्तारूढ़ सरकारों द्वारा संरक्षण दिया गया. संभवतः उनकी ऊंची और प्रभावशाली जाति इसके पीछे एक वजह रही.

मुख्तार अंसारी को योगी आदित्यनाथ के शासन के दौरान कथित अपराधियों के खिलाफ शुरू की गई सख्त नीति का सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा. लंबे समय तक आपराधिक इतिहास के साथ जुड़ी रही मुख्तार की राजनीतिक पहचान को राज्य ने धीरे-धीरे खत्म किया और उसे 'माफिया' लेबल के साथ बदल दिया.

न्यायिक हिरासत में मुख्तार की मौत से जुड़ी संदिग्ध परिस्थितियां और परिवार द्वारा राज्य सरकार पर लगाए गए हत्या के आरोप, कानून की कमजोर पकड़ के बीच राज्य के काम करने के तरीके पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं. कई मौकों पर, मुख्तार ने जेल में अपनी जान को खतरा होने का आरोप लगाया था.

इसलिए, हम मुख्तार के आखिरी दिनों को अलग करके नहीं देख सकते, भले ही राज्य का यह कहना है कि मुख्तार की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई. मुख्तार के आखिरी दिन व्यक्तिगत और राजनीतिक, दोनों तरह से उनके अतीत से मजबूती से जुड़े हुए थे.

पिछले चार दशक में 65 FIR दर्ज

2005 में, मुख्तार पर अपने निर्वाचन क्षेत्र मऊ में सांप्रदायिक दंगे भड़काने का आरोप लगाया गया था. हालांकि उसने सफाई दी थी कि वह केवल एक जीप पर सवार होकर माहौल को शांत करने के लिए निकला था. हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों पर भी अपराध का आरोप लगाया गया था. हिंदू युवा वाहिनी योगी आदित्यनाथ द्वारा संचालित एक दक्षिणपंथी संगठन है. आदित्यनाथ उस वक्त गोरखपुर से सांसद थे और आज यूपी के मुख्यमंत्री हैं. दोनों नेताओं के रिश्तों के बीच खटास थी.

मुख्तार को दंगों के बाद गिरफ्तार किया गया और जब वह जेल में था, तब उसपर और उसके भाई अफजाल अंसारी (जो आज एक सांसद हैं) पर बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय और छह अन्य की सनसनीखेज हत्या का आरोप लगाया गया था. कृष्णानंद राय भूमिहार समुदाय से आते थे और उन्हें ठाकुर बाहुबली राजनेता और पूर्वांचल में वर्चस्व की लड़ाई में मुख्तार के विरोधी, बृजेश सिंह ने समर्थन दिया था. कृष्णानंद राय ने 2002 में गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट पर विधानसभा चुनाव जीत कर अफजाल को करियर में पहली मात दी थी. अफजाल ने पांच बार इस सीट पर जीत हासिल की थी, इसमें से चार बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता.

बृजेश सिंह एमएलसी बने और उन्हें बीजेपी से राजनीतिक समर्थन मिला हुआ था. बृजेश सिंह और उनके सहयोगी पर 2001 में, उसरी चट्टी में मुख्तार के काफिले पर घात लगाकर हमला करने का आरोप लगाया गया. मुख्तार घायल हुआ लेकिन बच गया. हालांकि, उसके तीन सहयोगियों की हत्या कर दी गई थी.

उसरी चट्टी मामले में गवाही देने से पहले ही 28 मार्च 2024 को मुख्तार की मृत्यु हो गई. उनके परिवार ने आरोप लगाया है कि बृजेश सिंह को बचाने की साजिश के तहत बांदा जेल में मुख्तार को जहर देकर मार दिया गया था.

कृष्णानंद राय की हत्या ने दक्षिणी पूर्वांचल की राजनीति पर एक लंबा प्रभाव डाला और यह प्रभाव अभी भी है. हालांकि 2019 में दिल्ली की एक विशेष सीबीआई अदालत ने इस मामले में मुख्तार, अफजाल और पांच अन्य को बरी कर दिया.

मुख्तार के व्यक्तित्व, मुस्लिम पहचान, आपराधिक इतिहास और शानदार पारिवारिक पृष्ठभूमि ने उन्हें राज्य में आपराधिक-राजनीतिक कड़ी के सबसे चर्चित नायकों में से एक बना दिया. शायद यह दिखाता है कि मुख्तार की मृत्यु एक राजनीतिक मु्द्दा क्यों बन गई है? सरकारी डॉक्टरों ने कहा कि मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई, लेकिन परिवार ने आरोप लगाया कि खाने में 'स्लो प्वॉइजन' दिया गया. विपक्षी दल चाहते हैं कि मौत की जांच हो. बीजेपी ने विपक्ष पर मुसलमानों को खुश करने के लिए मौत का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है.

मुख्तार अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग व्यक्ति था. मुख्तार को पांच बार का पूर्व विधायक कहें या आजादी से पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष का पोता और सेना में ब्रिगेडियर का नाती. वो अपने विरोधियों के लिए (जिसमें बीजेपी प्रमुख है) एक कुख्यात मुस्लिम 'माफिया' गैंगस्टर था जिसे कथित तौर पर लगभग तीन दशकों तक अन्य राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त था और जेल की सलाखों के पीछे से उसने अपराध किए.

उसकी मृत्यु के वक्त, यूपी पुलिस ने कहा कि पिछले चार दशकों में मुख्तार के खिलाफ 65 FIR दर्ज की गई थी. कई मामलों में मुख्तार पर हत्या और उसके गैंग के जरिए की गई वारदात का आरोप लगाया गया. सितंबर 2022 से, आठ अलग-अलग मामलों में दोषी ठहराया गया था. 1991 में वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और एबीवीपी के निकले भूमिहार नेता अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या के लिए मुख्तार को आजीवन कारावास की सजा भी मिली थी.

हालांकि, लखनऊ और दिल्ली के पावर गैलरी और मीडिया डिबेट के स्टूडियो से बहुत दूर, गाजीपुर की सामंती भूमि, मऊ और आसपास के जिले और गरीबों के बीच मुख्तार की एक अलग छवि थी. यह वो जगह है जहां आपराधिक पृष्ठभूमि होना या अपराधियों के लिए चुनावी राजनीति में प्रवेश करना कोई बड़ी बात नहीं थी.

राजनीति और अपराध की दुनिया में मुख्तार अंसारी

मुख्तार वाराणसी और मऊ के बुनकरों के बीच बेहद लोकप्रिय थे. मऊ एक छोटा सा शहर है जिसे इसकी छोटे पैमाने की टैक्सटाइल यूनीट के लिए जाना जाता है. मुख्तार का जन्म गाजीपुर में हुआ था, यह यूपी के पूर्वी किनारे पर स्थित एक जिला है जिसे अपने गंगा से जुड़े उपजाऊ खेतों, सैनिक पैदा करने वाला गांव, ब्रिटिश युग का अफीम कारखाना और लॉर्ड कॉर्नवालिस के मकबरा से जाना जाता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मुख्तार के समर्थक, जो हर जाति और समुदाय से हैं, उन्हें "मसीहा" मानते हैं. वह मसीहा जो सामंती ताकतों के खिलाफ खड़ा हुआ और गरीब-पिछड़े समुदायों की शिकायतों पर काम किया. उसे 'रॉबिन हुड' का नाम मिला.

मीडिया प्रोपगैंडा के बावजूद, मुख्तार और उनके परिवार ने 'हिंदू-मुस्लिम' की राजनीति को नाकारा. मऊ दंगों में उनके खिलाफ विवादास्पद आरोपों के अलावा उन पर कभी भी सांप्रदायिक जहर बोने का आरोप नहीं लगा.

असल में, मुख्तार के कई सहयोगी 'शूटर्स' और 'गैंग' के सदस्य, कथित ऊंची जाति के हिंदू थे. उनमें से कुछ को चुनावी मैदान में सफलता भी हासिल हुई. मुख्तार के साथी में से एक, समाजवादी पार्टी के विधायक अभय सिंह ने हाल ही में अपनी वफादारी बीजेपी की तरफ शिफ्ट कर दी है.

मुख्तार के परिवार का चुनावी रिकॉर्ड शानदार रहा है. निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद, वह खुद कभी भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे. यहां तक कि 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के गढ़, वाराणसी में पार्टी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ दूसरे स्थान पर रहे.

2014 में, उन्होंने वाराणसी में नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन अंततः 'धर्मनिरपेक्ष' वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए पीछे हट गए और कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय का समर्थन किया. अजय राय के भाई की हत्या का आरोप मुख्तार पर ही था. संयोग से, एसपी और कांग्रेस के 2024 चुनावी गठबंधन के बावजूद, 31 मार्च को अजय राय ने कहा कि वह मुख्तार के भाई अफजाल के लिए प्रचार नहीं करेंगे, जो गाजीपुर में एसपी उम्मीदवार हैं.

अफजाल दो बार के सांसद और पांच बार के पूर्व विधायक हैं जबकि अंसारी भाईयों में सबसे बड़े भाई सिबगतुल्ला दो बार विधायक चुने गए थे. 2022 में, मुख्तार और सिबगतुल्ला ने अपने बेटों- क्रमशः अब्बास और सुहैब को राजनीतिक कमान थमाई. इन्हें विधायक के तौर पर जीत हासिल हुई. ऐसा माना जाता है कि मुख्तार को डर था कि योगी सरकार उन्हें दोषी ठहराकर उनकी उम्मीदवारी को विफल कर देगी.

अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र मऊ सदर से विधायक चुने गए अब्बास को बाद में योगी सरकार ने जेल भेज दिया.

गैर-बीजेपी पार्टियां अक्सर अंसारियों के समर्थन पर निर्भर रहती थीं. उन्हें हमेशा अंसारी परिवार की चुनावी समीकरणों को बदल देने की क्षमता का डर लगा रहता था. मायवती, मुलायम सिंह और उनके बेटे अखिलेश यादव, सभी की अंसारियों के साथ लड़ाई रही है, जो कांग्रेस और कम्युनिस्ट राजनीति की पृष्ठभूमि रखते थे.

2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले,अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव का विरोध किया क्योंकि वे चाहते थे कि अंसारी परिवार को एसपी में शामिल कर लिया जाए. अखिलेश अपनी 'साफ छवि' को लेकर चिंतित थे. मुस्लिम वोट हासिल करने की अंसारी परिवार की क्षमता को स्वीकार करने वाली मायवती ने तुरंत उनका अपने दल में स्वागत किया. मायावती ने उनके खिलाफ आपराधिक मामलों का बचाव भी किया और अन्य पक्षों में 'गुंडों' की ओर इशारा किया. 2017 की हार के बाद ही अखिलेश यादव ने ज्यादा व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए महसूस किया कि अंसारी परिवार कई तरीके से उपयोगी है.

हालांकि मुख्तार की मृत्यु के बाद, दक्षिणपंथी हिंदुओं की नाराजगी की डर से अखिलेश यादव ने सार्वजनिक रूप से नाम लेने में हिचकिचाहट दिखाई. लेकिन उन्होंने योगी सरकार पर गंभीर सवाल उठाए. बीजेपी की जीत ने अंसारी परिवार की स्थिति को काफी बदल दिया है क्योंकि आदित्यनाथ सरकार ने विपक्षी राजनेताओं, खासतौर पर दागी रिकॉर्ड वाले लोगों के बीच आतंक की लहर फैला दी है.

मुख्तार अंसारी और उनकी पत्नी, दोनों को गैंगस्टर के रूप में नामित किया गया था. मुख्तार को गिरोह IS191 का प्रमुख करार दिया गया था. उनपर, उनके भाई, बेटों और सहयोगियों के खिलाफ दर्जन भर आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे. राज्य की पूरी ताकत का इस्तेमाल अंसारी परिवार से जुडे़ सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त करने और जब्त करने के लिए किया गया ताकि उन्हें आर्थिक रूप से पंगु बनाया जा सके.

मुख्तार से जुड़े लोगों को भी कथित मुठभेड़ों में गोली मार दी गई. मरने वालों में अबतक पांच नाम हैं. दिसंबर 2023 तक, उनके 164 सहयोगियों पर सख्त गैंगस्टर एक्ट लागू किया गया, छह पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम और 67 साथियों पर गुंडा एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया. 190 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया और 60 को उनके जिलों से निष्कासित कर दिया गया.

कानपुर में बिकरू की घटना और ब्राह्मण समुदाय से आने वाले हिस्ट्री शीटर विकास दुबे के 2020 में एनकाउंटर के बाद राज्य की कार्रवाई ने और भी कड़ा रुख अपना लिया. लेकिन आदित्यनाथ सरकार ने जेल में बंद एक मुस्लिम राजनेता की ओर ध्यान केंद्रित करके इसके राजनीतिक परिणाम को कम करने की कोशिश की.

अतीक की हत्या के बाद मुख्तार के सर पर लटकी तलवार

मुख्तार की मौत से प्रभावशाली जातियों के राजनेताओं के साथ उनकी राजनीतिक और व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता के इतिहास के उजागर होने का खतरा है. साथ ही यह मौत कई अनसुलझे सवालों से भी भरी हुई है, जिनका जवाब आज की राज्य सरकार की सत्तावादी प्रकृति के कारण कभी नहीं दिया जा सकता है. दिसंबर 2023 में, मुख्तार के सबसे छोटे बेटे उमर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आशंका जताई कि आदित्यनाथ सरकार मुख्तार के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बृजेश सिंह के साथ मिलकर उन्हें जेल में खत्म करने की साजिश रच रही है.

अपनी याचिका में, उमर ने एक चिंताजनक पैटर्न का जिक्र किया: कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्तार के करीबियों और मामले में सह-आरोपीयों की एक-एक करके हत्या की जा रही है. पहला, फिरदौस को 2006 में पुलिस ने गोली मार दी थी. मुख्तार के सहायक प्रेम प्रकाश सिंह, जिन्हें मुन्ना बजरंगी के नाम से जाना जाता है, की 2018 में बागपत जेल में एक अन्य दोषी सुनील राठी ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

बजरंगी की पत्नी ने भी आशंका व्यक्त की थी कि राज्य सरकार द्वारा उसकी हत्या कर दी जाएगी. उससे दो साल पहले, लखनऊ में बजरंगी के बहनोई और कानूनी सलाहकार की हत्या कर दी गई थी. उस वक्त कृष्णानंद राय के परिवार की ओर उंगली उठाई गई थी. 2020 में, मुख्तार के एक अन्य सहयोगी राकेश पांडे उर्फ हनुमान को राज्य पुलिस ने एक कथित एनकाउंटर में गोली मार दी जब उनकी कार रविवार को सुबह एक पेड़ से टकरा गई थी. उसके पिता ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने उसका घर से अपहरण कर लिया और उसे मार दिया. पिछले साल, मुख्तार के करीबी संजीव माहेश्वरी उर्फ 'जीवा' की लखनऊ के एक अदालत में पेश किए जाने के दौरान एक हमलावर ने गोली मारकर हत्या कर दी.

मुख्तार के परिवार का मानना था कि पिछले अप्रैल में लाइव टेलीविजन पर पूर्व सांसद अतीक अहमद और उसके भाई की गोली मारकर हत्या किए जाने के बाद तलवार मुख्तार के सिर पर लटकने लगी थी. यहां तक कि वारदात के वक्त हथियारबंद पुलिसकर्मी भी मौजूद थे. अक्सर जवाबी कार्रवाई में गोली चलाने के लिए जल्दबाजी में रहने वाली पुलिस उस दिन दर्शक बनकर खड़ी थी. इन मौतों का पैटर्न और उनका लिंक कभी भी पूरी तरह से उजागर या स्थापित नहीं हो सकता है. ना ही मजबूत विपक्ष या सक्रिय न्यायपालिका के अभाव में राज्य की मिलीभगत के आरोप किसी तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचेंगे.

फिर भी, ये मौतें सरकारी संरक्षण की बढ़ती भावना और जनता की ओर से जवाबदेही में गिरावट का संकेत देती हैं. मुख्तार की जिंदगी और उनकी मौत का असल कारण अभी भी हमारे सामने साफ नहीं है. इस मामले ने आम जनता के सामने क्राईम, राजनीति और सरकारी शह की ऐसे गुंथी हुई धुंधली तस्वीर पेश की है जिसकी गूंज आने वाले चुनाव के साथ-साथ आने वाले समय में भी महसूस की जा सकती है.

(उमर राशिद एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो हिंदी पट्टी के अंदरूनी इलाकों में राजनीति और जीवन पर लिखते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT