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समाजवादी पार्टी के भीतर पारिवारिक झगड़े की वजह से सपा का सदाबहार मुस्लिम वोट बैंक खिसक रहा है. लंबे समय से सपा के वफादार वोटर रहे मुस्लिम, इस वजह से सपा से अलग कोई ऐसा विकल्प ढूंढ रहे हैं, जो बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने में सक्षम हो.
ऐसे में फिलहाल उनके पास केवल बीएसपी का विकल्प बचता है.19% वोट शेयर के चलते मुस्लिम समाजवादी पार्टी के मजबूत स्तंभ रहे हैं. यहां तक कि मुलायम सिंह यादव को 'मुल्ला मुलायम' तक कहा जाता है. मुस्लिम-यादव गठबंधन के चलते ही सूबे में समाजवादी पार्टी सत्ता में आ पाती है.
बीजेपी को रोकने में कांग्रेस की कमजोरी के चलते अल्पसंख्यक समुदाय के पास मजबूत विकल्प के तौर पर केवल बीएसपी बचती है. मुस्लिम समुदाय लंबे समय से बीजेपी को रोकने और सपा को सत्ता में लाने के लिए रणनीतिक वोटिंग करता रहा है. लेकिन अब यह पुरानी बात नजर आ रही है.
आंकड़ों से पता चलता है कि सपा और बीएसपी के सत्ता हासिल करने में केवल 4 से 5 फीसदी वोटों का अंतर होता है.
2007 में जब मायावती ने सोशल इन्जीनियरिंग का कार्ड खेला था, तब बीएसपी की 206 सीटें आईं थी. वहीं सपा केवल 97 सीटों पर सिमट गई थी. इस चुनाव में बीएसपी को 30.43 % वोट्स मिले थे और सपा को 25.43% . केवल 5 फीसदी वोटों से बीएसपी को सत्ता की सवारी का सुख मिल गया था.
2012 में एक हद तक राज्य में एंटी इनकम्बेंसी थी. सपा 29.14% वोट शेयर के जरिए 224 सीटों पर काबिज हुई. वहीं मायावती 25.91% वोटों के साथ 80 सीटों पर सिमट गई. दोनों पार्टियों को वोट शेयर में केवल 3% से कुछ ज्यादा का ही फासला था.
अॉल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुखी से जब अल्पसंख्यक वोटों के खिसकने के बारे में सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि सपा में जितना ज्यादा झगड़ा होगा, अल्पसंख्यकों में उतनी ही उलझन बढ़ेगी.
फारुखी के मुताबिक, मुस्लिम पहले ही दूसरे विकल्प की तलाशी शुरू कर चुके हैं, जों स्वाभाविक रूप से बीएसपी है. अब यह समाजवादी पार्टी पर निर्भर करता है कि वह कैसे टूटती है और कौन किसके साथ जाता है.
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Published: 31 Oct 2016,08:44 PM IST