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क्या PM मोदी ने अनजाने में क्रोनीज की मदद कर निवेशकों को सजा दी?

IL&FS संकट से निकलने के लिए मोदी सरकार को चाहिए “मिनी TARP”

राघव बहल
नजरिया
Updated:
(Photo: Harsh Sahni /  Quint Hindi)
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(Photo: Harsh Sahni / Quint Hindi)

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कैशः हर उद्यमी जानता है कि ये ऑक्सीजन की तरह महत्वपूर्ण है. अगर आप किसी फलते-फूलते कारोबार में कैश की सप्लाई बंद करके उसका गला घोंट देंगे, तो सबसे कीमती एसेट का मूल्य भी तेजी से गिरने लगेगा और आखिरकार उसकी हैसियत दो कौड़ी की नहीं रह जाएगी.

स्टिचः यानी सिलाई का टांका. हर दर्जी जानता है कि अगर आपने वक्त पर एक टांका नहीं लगाया, तो ड्रेस की सिलाई नौ जगह से उधड़ जाएगी.

पानीः फायर ब्रिगेड का हर कर्मचारी जानता है कि आग बुझाने के लिए उस पर पानी की बौछार डालनी ही पड़ती है, इस बात की परवाह किए बिना, कि वो आग लगी कैसे थी.

बदकिस्मती से, प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक टीम में ना तो कोई उद्यमी है, ना कोई दर्जी और ना ही आग बुझाने वाला. उनकी टीम में सिर्फ इतने लोग हैं - एक वकील-राजनेता, एक दर्जन आईएएस अफसर और आधा दर्जन अर्थशास्त्री. इनमें से किसी ने भी न तो कभी समृद्धि पैदा की है और न ही बाजार के कहर का सामना किया है. इनमें से एक के पास भी ये तजुर्बा नहीं है कि व्यवस्था की नाकामियों के चलते दिवालिया हो रहे कारोबार की लाचारी से कैसे निपटा जाता है. यही वजह है कि IL&FS की वजह से शुरू हुए संकटों के सिलसिले से निपटने की उनकी इन कोशिशों को ज्यादा से ज्यादा "मासूमियत भरा" कहा जा सकता है:

  • भारतीय रिजर्व बैंक NBFC यानी नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों को नकदी मुहैया कराने के प्रस्ताव को खारिज कर देता है; ये कहते हुए कि सिस्टम को अभी तो कोई खतरा नहीं है.
  • अर्थव्यवस्था में नेट कोर लिक्विडिटी लगातार पांच हफ्ते से नेगेटिव यानी नकारात्मक है, लेकिन वित्त मंत्रालय का कहना है कि "अभी तो कोई संकट नहीं है, क्योंकि NBFC की समस्या अपेक्षाकृत छोटी है. इससे मांग पर बहुत गहरा असर नहीं पड़ा है. हमें दूसरी तिमाही के आंकड़ों का इंतजार करना चाहिए."
  • तेल की कीमतें बजट में अनुमानित 65 डॉलर/बैरल के स्तर से काफी ऊपर हैं; विदेशी मुद्रा भंडार से 40 अरब डॉलर की रकम महज सात महीने में निकल चुकी है; और रुपया 75/डॉलर के करीब पहुंच रहा है, लेकिन हमारा वित्त मंत्रालय अब भी मस्त है, क्योंकि - अभी तो उसे इस बात का “पूरा यकीन है कि तेल की कीमतें 70 डॉलर/बैरल के नीचे आ जाएंगी.”

नोट: "अभी तो" पर खास जोर मैंने दिया है, ताकि ये बताया जा सके कि हमारे शासक मौजूदा संकट को कितने मजे से नजरअंदाज कर रहे हैं. आने वाले दिनों में आर्थिक आंकड़े क्या करवट लेने वाले हैं, ये भविष्यवाणी वो जिस मासूमियत और पक्के यकीन के साथ कर रहे हैं, उस पर तो किसी को भी प्यार आ सकता है! बदकिस्मती से इस "आत्मविश्वास" (या नादानी) के पीछे भोलेपन से भरा ये यकीन छिपा है कि बाजार को नियंत्रित किया जा सकता है.

TARP: इन चार अक्षरों को मोदी ने नजरअंदाज कर दिया

मैं अपनी अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने के लिए TARP जैसी किसी योजना की वकालत लंबे अरसे से करता आ रहा हूं. इससे एक तो कंपनियों और बैंकों - दोनों की बिगड़ी हुई बैलेंस शीट सुधरेगी और IL&FS के कारण शुरू हुआ संकट भी रुकेगा. ऐसे पर्याप्त आंकड़े और पिछले अनुभव मेरे पास हैं, जिनसे साबित हो सकता है कि TARP से अर्थव्यवस्था का भला होगा. इससे आम नागरिकों को फायदा होगा और ताकतवर लोगों से नजदीकी का गलत ढंग से फायदा उठाने वाले क्रोनी कैपिटलिस्ट को करारा झटका लगेगा. (असलियत इस आम धारणा से बिलकुल अलग है कि ऐसा करना "नैतिक रूप से गलत" होगा). मैं बताता हूं कि ऐसा कैसे होगा.

हम इसकी शुरुआत इतिहास से करते हैं. अमेरिका में लेमैन ब्रदर्स ने खुद दिवालिया घोषित किए जाने की अर्जी 15 सितंबर 2008 को दाखिल की. बाजार धराशायी हो गया, पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के सामने तबाही का खतरा पैदा हो गया.

लेकिन इसे एक इमरजेंसी मानकर फौरन कार्रवाई करने के लिए अंकल सैम की तारीफ करनी होगी. तीन हफ्ते से भी कम वक्त में, 3 अक्टूबर 2008 को राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इमरजेंसी इकनॉमिक स्टैबिलाइजेशन एक्ट पर दस्तखत कर दिए, जिसे TARP यानी ट्रबल्ड एसेट री-कंस्ट्रक्शन प्रोग्राम के नाम से भी जाना जाता है. अमेरिकी सरकार ने संकट में फंसे एसेट्स को खरीदने के लिए 700 अरब डॉलर निवेश करने, यानी दिवालिया कंपनियों की बैलेंस शीट में सीधे-सीधे नकदी लगाने, का फैसला कर लिया.

245 अरब डॉलर की रकम बैंकों को दी गई, 70 अरब डॉलर एआईजी जैसी विशाल इंश्योरेंस कंपनी को दिए गए और 80 अरब डॉलर का इस्तेमाल जीएम और क्रिसलर जैसी ऑटो कंपनियों को गहरे संकट से बाहर निकालने के लिए किया गया. बाकी रकम मुसीबत में घिरी कई कंपनियों को दी गई. हैरानी की बात ये है कि इन तमाम उपायों पर कुल 410 अरब डॉलर ही खर्च हुए. 290 अरब डॉलर की रकम को इस्तेमाल करने की नौबत ही नहीं आई.

TARP के तहत ये सारी रकम न तो अनुदान थी और न ही सब्सिडी. ये सारा फंड निवेश के तौर पर दिया गया, जिसे कंपनियों को वाजिब रिटर्न के साथ वापस लौटाना था. फिर भी, अमेरिकी संसद के बजट ऑफिस ने शुरुआत में अनुमान लगाया था कि 700 अरब डॉलर की कुल रकम में से करीब 356 अरब डॉलर वापस नहीं आएंगे, जिसे बट्टे खाते में डालना पड़ेगा. लेकिन अमेरिकी सांसद अपने देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए इतनी रकम खर्च करने को खुशी से तैयार थे. उन्हें पता था कि फौरन नकदी देने का सरकार का वादा, पूरे सिस्टम को तबाह होने से बचा लेगा (काश, मोदी की टीम के पास भी बाजार के मनोविज्ञान की इतनी ही गहरी समझ होती !)

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TARP कितना सफल रहा?

इस बात का सटीक आकलन कर पाना संभव नहीं है कि अगर TARP को लागू नहीं किया गया होता, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ होता. इस बारे में हम सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हैं. एलन बिंदेर और मार्क जैंडी के अध्ययन के मुताबिक ऐसा होने पर अमेरिका में बेरोजगारी की दर 16 फीसदी तक पहुंच सकती थी (1930 के ग्रेट डिप्रेशन के दौरान बेरोजगारी की ये दर 25 फीसदी के सबसे ऊंचे स्तर तक जा पहुंची थी).

लेकिन TARP के असर का आकलन करने का एक और बेहतर तरीका भी है. TARP के चलते सरकार को 356 अरब डॉलर का घाटा होने का डर जाहिर किया गया था, लेकिन वास्तविक घाटा रहा – शून्य! बल्कि असलियत तो ये है कि अमेरिकी सरकार को अपने निवेश पर मामूली मुनाफा भी मिला !

आज, महज एक दशक बाद, अमेरिकी अर्थव्यवस्था बेहद अच्छी हालत में है. बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं, सालाना विकास दर 4 फीसदी तक पहुंच रही है और बेरोजगारी की दर घटकर 5 फीसदी से कम रह गई है. मेरे हिसाब से TARP की असली सफलता यही है.

IL&FS के संकट से निकलने के लिए चाहिए “मिनी TARP”

TARP जैसे किसी भी राहत पैकेज के खिलाफ सबसे पुरानी दलील ये है कि ऐसा करने से नैतिक रूप से गलत मिसाल पेश होती है, क्योंकि इससे उन गलती करने वालों को मदद मिलती है, जिन्हें सजा मिलनी चाहिए, जबकि ईमानदार करदाताओं के पैसों की “लूट” होती है. लेकिन असलियत इससे ठीक उलट है, जिसे मैं बेहद आसान अंक गणित से साबित करूंगा.

मैं कुछ मान्यताओं (assumptions) से शुरुआत करूंगा, जो हकीकत के बेहद करीब हैं.

अब जरा उन मौजूदा हालात पर एक नजर डालिए, जो मोदी सरकार की तरफ से TARP जैसे किसी पैकेज के अभाव में बने हैं:

  • IL&FS के इक्विटी/ऋण में निवेश करने वालों को हुआ नुकसान = 50 हजार करोड़ रुपये (1.5 लाख करोड़ रुपये की कुल पूंजी - मॉनेटाइज किए जाने लायक 1 लाख करोड़ रुपये)
  • NBFC में पैसे लगाने वाले “मासूम”/आम निवेशकों को हुआ नुकसान = 4 लाख करोड़ रुपये

TARP से आम निवेशकों को होगा फायदा

लेकिन अगर सरकार TARP जैसी योजना ले आती, तो ये सारा गणित नाटकीय रूप से बदल जाता, जिसमें IL&FS के निवेशकों के मुकाबले दूसरे आम निवेशक ज्यादा फायदे में रहते.

और अंत में, अगर हम बेहद उदारता दिखाते हुए ये मान लें कि मार्केट कैप में NBFC को हुए कुल नुकसान का महज आधा हिस्सा ही IL&FS के डिफॉल्ट की वजह से हुआ है, जो TARP लाने पर नहीं होता, तो भी आम निवेशकों को सीधे-सीधे 2 लाख करोड़ का फायदा है! TARP जैसी योजना में सरकार द्वारा लगाया गया कुल कैश (एसेट्स की बिक्री से मिलने वाली रकम पर पहला हक भी सरकार का होगा) = 30 हजार करोड़ रुपये

तो अब पूरी बात आपके सामने है. TARP जैसा राहत पैकेज न देकर, प्रधानमंत्री मोदी ने उन क्रोनी कैपिटलिस्ट को 30 हजार करोड़ का अतिरिक्त लाभ दे दिया, जो IL&FS के बर्बाद होने के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि आपके और मेरे जैसे आम/निर्दोष निवेशकों को 2 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त चपत लग गई.

मैंने ऊपर जो अंक गणित समझाया है, वो बेहद आसान है. लेकिन आईएएस के बाबुओं की टीम इसे कभी नहीं समझेगी, क्योंकि वो बाजार की ताकतों को हमेशा ही गहरे संदेह के साथ देखते हैं. और प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी आर्थिक नीतियों को उन्हीं के हवाले कर दिया है, जबकि उद्यमियों, दर्जियों और आग बुझाने वालों की उसमें कोई जगह नहीं है.

आपने ये क्या कर दिया प्रधानमंत्री मोदीजी?

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Published: 27 Oct 2018,06:29 PM IST

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