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मोदी ने हर दांव जीता है, क्या योगी वाला फैसला भी सही निकलेगा?

मोदी हमेशा बड़ी बाजी खेलते हैं और हर बार पहले से बड़ी जीत हासिल करते हैं. लेकिन वो इतना रिस्क लेते क्यों हैं?

मयंक मिश्रा
नजरिया
Updated:


(फोटो: Twitter/<a href="https://twitter.com/PMOIndia/status/844078554237222912">@PMOIndia</a>)
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(फोटो: Twitter/@PMOIndia)
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कौन जोखिम उठाता है- वो जिसे लगता है कि फायदे तो बहुत होंगे, लेकिन हारने पर नुकसान उतना कहीं कम. या वो जिनको काफी नुकसान का डर हो, लेकिन फायदे गिनती के. मेरे खयाल से पहली कैटेगरी में ज्यादा लोग होंगे. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कब किसी खांचे में फिट होने वाले हैं. वो हमेशा बड़ी बाजी खेलते हैं और हर बार पहले से बड़ी जीत हासिल करते हैं. लेकिन वो इतना रिस्क लेते क्यों हैं?

सबसे पहले जान लेते हैं कि उन्होंने कौन-कौन से रिस्की फैसले लिए हैं और उनका परिणाम क्या हुआ है. इनमें पहला है, पाकिस्तान की जमीन पर सर्जिकल स्ट्राइक और इस खबर को सरेआम करना. आशंका थी कि पाकिस्तान की तरफ से जवाबी कार्रवाई होगी. उस देश से घुसपैठियों की तादाद बढ़ जाएगी. लेकिन हुआ क्या?

पाकिस्तान के तेवर बदले-बदले से हैं. मैत्री की बातें हो रही हैं. जिस अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बदले तेवर का डर था, वो भी या तो इस मुद्दे से अलग रहा या फिर भारत के साथ रहा. कुल मिलाकर सर्जिकल स्ट्राइक बिल्कुल अपने निशाने पर लगा.

अब नोटबंदी की बात करते हैं. फैसला बहुत ही बड़ा था. इसके बुरे राजनीतिक परिणाम हो सकते थे. नोटबंदी का कंजंप्शन पर काफी बुरा असर हुआ. कंपनियों के मुनाफे काफी गिरे, विदेशी निवेशक यहां के बाजार से डॉलर निकालने लगे.

(फोटो: Rhythum Seth/ The Quint)

अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका बढ़ी. पैसा निकालने के लिए लंबी लाइनों में लगे लोगों को भारी दिक्कतें हुईं. लेकिन मोदी जी की लोकप्रियता जस की तस रही. मतलब एक और बड़े रिस्क का भी परिणाम मोदी जी के पक्ष में ही गया.

तीसरा बड़ा रिस्क उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बिना किसी चेहरे के उतरना रहा. लेकिन यह ऐसा काम कर गया कि भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में सारे चुनावी रिकॉर्ड तोड़ दिए. जीत ऐसी कि सब भौंचक्के रह गए.

लीक से हटकर काम करके मोदी जी हर बार बाजी कैसे मार लेते हैं? कुछ लोगों के लिए मोदी जी ऐसे तारणहार हैं, जो उन्हें सामाजिक न्याय की राजनीति से छुटकारा दिला सकते हैं. कुछ और के लिए वो एक ऐसे प्रभावी नेता हैं, जो तुष्टि‍करण की राजनीति को खत्म कर सकते हैं.

देश की बड़ी आबादी को लगता है कि मोदी जी जल्द ही नौकरियों की वर्षा करने वाले हैं और देश की औकात जल्दी ही सुपरपावर जैसी होने वाली है. दुनिया के नेताओं के साथ उनका उठना-बैठना, लगातार विदेशी दौरा, बड़ी-बड़ी घोषणाएं, भ्रष्टाचार और ब्लैकमनी को खत्म करने वाले उनके बड़े-बड़े वादे- इन सबने मिलकर ब्रांड मोदी को मजबूती दी है. लोगों को उनमें एक मजबूत नेता दिखता है, जो उनसे पहले के कमजोर दिखने वाले नेताओं से काफी अलग है.

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ऐसे में जब भी वो बड़ा रिस्क लेते हैं, उनके प्रभावशाली नेता वाली छवि की चमक और बढ़ जाती है. मतलब जितना रिस्क, ब्रांड मोदी को उतना ही फायदा.

मोदी जी की प्रभावशाली नेता वाली छवि कई सालों से बनती रही है. टाटा नैनो प्रोजेक्ट का पश्चिम बंगाल के सिंगूर से गुजरात के साणंद में आना, इस छवि को चमकाने में काफी कारगर रहा था.

लेकिन हमेशा बड़ा रिस्क लेने वाले मोदी के लिए आदित्यनाथ योगी को उत्तर प्रदेश में सरकार चलाने की जिम्मेदारी एक बहुत बड़ा रिस्क नहीं है? वैसे तो मोदी जी कंट्रोल अपने पास रखना पसंद करते हैं. लेकिन योगी को अपने एजेंडा के लिए मनवाना आसान नहीं होगा. हो सकता है कि योगी को मुख्यमंत्री की कुर्सी देने वाला फैसला 2019 के लोकसभा चुनाव की वजह से किया गया हो. लेकिन क्या मोदी और योगी के एजेंडे का मेल होगा?

मोदी जी को जो जानते हैं, वो तो कहेंगे कि इस रिस्की फैसले से उन्हें फायदा ही मिलेगा. लेकिन यह देखना होगा कि कौन किसके एजेंडे के लिए राजी होता है.

इस आलेख को ENGLISH में पढ़ें:

Modi’s Bets Have Paid Off So Far, Will Adityanath Be One Too Much?

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Published: 21 Mar 2017,06:38 PM IST

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