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जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति चुन लिए गए, लेकिन इस चुनाव में जीत के लिए बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की वाहवाही करना और कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष की एक और हार मानना ठीक नहीं होगा. इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए कई पॉजिटिव चीजें रही हैं,जिनके बारे में हम यहां जानकारी दे रहे हैं.
उपसभापति के चुनाव में नवीन पटनायक के बीजेडी का समर्थन हासिल करना बीजेपी की सबसे बड़ी उपलब्धि रही.
नाराज शिवसेना भी बीजेपी से गिले-शिकवे भुलाती दिखी, जिससे उसकी जान में जान आई होगी.
बीजेपी और नीतीश कुमार के जेडीयू के बीच रिश्ते मजबूत हुए, जिससे बिहार में एनडीए मजबूत होगा.
कांग्रेस के लिए खुशी की बात यह है कि बीएसपी, एसपी, डीएमके, टीएमसी और लेफ्ट पार्टियों के साथ विपक्षी दलों का बड़ा गठबंधन शक्ल लेता दिखा.
सहयोगी दलों के हितों का ख्याल रखने के लिए कांग्रेस तैयार दिखी. वह उपसभापति पद के लिए गैर-कांग्रेसी उम्मीदवार खड़ा करने को भी मान गई थी.
चुनाव में गैर-कांग्रेसी नेताओं ने विपक्षी एकता के लिए बढ़-चढ़कर कोशिश की, जो कांग्रेस की एक और कामयाबी मानी जा सकती है. इनके अलावा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के लिए कई संदेश भी छिपे हैं.
बीजेपी ने एनडीए के मौजूदा और संभावित सहयोगियों को संदेश देने के लिए जेडीयू के हरिवंश को उम्मीदवार बनाया था. सत्ताधारी पार्टी यह मेसेज देना चाहती थी कि वह ‘बिग ब्रदर एटीट्यूड’ को छोड़कर सहयोगी दलों के हितों का ख्याल रखने को तैयार है. हरिवंश की उम्मीदवारी पर बीजेपी, शिवसेना, अकाली दल और जेडीयू नेताओं के एंडोर्समेंट के जरिये सत्ताधारी पार्टी ने यह संदेश दिया. इसी वजह से बीजेडी और आईएनएलडी जैसी पार्टियों ने एनडीए उम्मीदवार का खुलकर समर्थन किया और शिवसेना और अकाली दल भी पिछले मतभेद भुलाकर बीजेपी के साथ खड़े हो गए.
सहयोगी दलों को लेकर बीजेपी के तेवर क्यों बदल गए हैं? उसे लग रहा है कि 2019 में बीजेपी के लिए अपने दम पर बहुमत हासिल करना मुश्किल होगा. इसलिए वह मौजूदा और संभावित सहयोगियों को संदेश दे रही है कि बीजेपी उनके हितों का ख्याल रखेगी. सहयोगी दलों के साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इधर मनमुटाव दूर करने की जो कोशिश की है, उसका यही मकसद है. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में भी यह मेसेज था.
कुछ समय पहले जेडीयू और बीजेपी में अनबन की खबरें आई रही थीं. हरिवंश के चुने जाने से ऐसी खबरों पर विराम लग जाएगा. राज्यसभा के उपसभापति जैसा महत्वपूर्ण राजनीतिक पद सहयोगी दल को देकर 40 संसदीय सीटों वाले बिहार में एनडीए को एकजुट रखने का इंतजाम हो गया है. इससे आम चुनाव में सीटों को लेकर सहयोगी दलों के साथ बीजेपी की खींचतान में भी कमी आएगी.
उपसभापति चुनाव के लिए गुरुवार को वोटिंग की पूर्वसंध्या पर आम आदमी पार्टी (आप) ने आरोप लगाया कि कांग्रेस विपक्षी एकता के आड़े आ रही है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी के राज्यसभा में तीन सांसद हैं, जिन्होंने उपसभापति चुनाव में वोटिंग नहीं की. इससे विपक्षी एकता पर आंच आई. इसी तरह,अपोजिशन बीजेडी को अपने पाले में नहीं कर सका, जिसे झटका माना जा रहा है.
हालांकि, मजबूत विपक्षी एकता की हिमायत करने वाले इस बात से खुश हो सकते हैं कि एक दूसरे की विरोध टीएमसी और लेफ्ट पार्टियां एक ही कैंप में थीं.
बीजेपी और बीजेडी के करीब आने की खबरें मिल रही हैं. शायद बीजेपी को अहसास हो गया है कि ओडिशा में बीजेडी को सत्ता से हटाना मुश्किल होगा और इसलिए नवीन पटनायक सरकार को लेकर उसके तेवर नरम पड़ गए हैं.
ऐसी भी खबर आई कि हरिवंश के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटनायक को फोन करके समर्थन मांगा था. ऐसा लग रहा है कि उनकी पार्टी और बीजेडी के बीच रणनीतिक समझ बनी है कि वे एक दूसरे के क्षेत्र में दखल नहीं देंगे. पटनायक की केंद्र की सियासत में बड़ी भूमिका निभाने में दिलचस्पी नहीं है और बदले में बीजेपी ओडिशा में कम एग्रेसिव दिखेगी. इसका असर राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में दिखेगा, जो अगले साल एक साथ होने वाले हैं.
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Published: 10 Aug 2018,01:05 PM IST