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बाइडेन टीम में शामिल होने जा रहीं भारतीय मूल की नीरा टंडन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुखर आलोचक रही हैं. उन्होंने ट्रंप के भारत दौरे के दौरान हुए दिल्ली दंगों के खिलाफ भी खुलकर बोला था. ट्रंप के साथ ही मोदी सरकार की भी आलोचना की थी. फरवरी 2020 में धार्मिक सहिषणुता को लेकर नीरा टंडन ने तीखी टिप्पणियां की थीं.
पिछले साल भारत सरकार ने सीएए कानून बनाया था. जिसके खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुआ. प्रदर्शन के दौरान ट्रंप भारत दौरे पर पहुंचे थे. फरवरी,2020 में दिल्ली में दंगे हुए थे. करीब 38 लोगों की मौत हुई तो 200 से ज्यादा लोग घायल हुए. दिल्ली हिंसा पर मोदी सरकार की आलोचना करने वाली नीरा टंडन अब व्हाइट हाउस ऑफिस ऑफ मैनेजमेंट एंड बजट की जिम्मेदारी संभालने जा रही हैं. इस कार्यालय का काम प्रशासन के बजट का प्रबंधन करना होता है. जो अमेरिकी सरकार में एक प्रमुख पद है.
नीरा टंडन का जन्म अमेरिकी राज्य मैसाच्यूसेट्स के बेडफोर्ड में 10 सितंबर 1970 को हुआ था. नीरा के माता-पिता भारतीय थे. जब नीरा की उम्र पांच साल थी, उनके माता-पिता का तलाक हो गया. इसके बाद नीरा की मां ने करीब दो सालों तक जिंदगी वेलफेयर के सहारे गुजारी. दो साल बाद उन्हें एक ट्रैवेल एजेंट की नौकरी मिली.
वहीं बाइडेन शासन में उपराष्ट्रपति बनने जा रहीं कमला हैरिस अप्रवासी, शरणार्थियों और मुस्लिमों पर प्रतिबंध पर ट्रंप प्रशासन की नीतियों की आलोचक रही हैं. तो वहीं भारत की मौजूदा सरकार की नीतियों का भी विरोध करती नजर आती हैं. चाहे धार्मिक कट्टरवाद का बढ़ना हो या कश्मीर से धारा 370 का हटाना. कमला हैरिस लगातार इनका विरोध करती रही हैं. सितंबर 2019 को टेक्सास के ह्यूस्टन में आयोजित एक इवेंट में उनसे कश्मीर में फोन और इंटरनेट पर लगे प्रतिबंध और लोगों को हिरासत में लेने के बारे में पूछा गया था. इस पर कमला हैरिस ने कहा था,
“हम लोगों को ये बताना चाहते हैं कि वो अकेले नहीं हैं, हम नजर बनाए हुए हैं. एक राष्ट्र के तौर पर ये हमारे मूल्यों का हिस्सा है कि हम मानवाधिकार उल्लंघन के बारे में बोलते हैं, और जहां जरूरी होता है, हम दख़ल भी देते हैं.”
बाइडेन-हैरिस प्रशासन का रुख देखना बाकी
लेकिन, इन सभी बातों को कमला हैरिस के एक पक्ष के रूप में देखा जाता है. साल 2017 में उन्होंने एक ट्वीट करके भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमरीका में स्वागत किया था.
ये बात भी है कि विपक्ष में रहने के दौरान नेताओं का रुख और फिर सत्ता में आने के बाद रुख एक जैसा हो, जरूरी नहीं है. खुद डेमोक्रेटिक पार्टी और बाइडेन लोकतांत्रिक मूल्यों के बेहतर पैरोकार माने जाते हैं. वो कह चुके हैं कि वो सत्ता में आए तो लोकतंत्रों का एक इंटरनेशनल सम्मेलन बुलाएंगे.
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