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मैंने थोड़ा रिसर्च किया. पुराने इंटरव्यू में उनकी कई कही गई बातों को गौर से सुना. पिछली जुलाई में मुझे उनका इंटरव्यू करने का मौका मिला था. उस इंटरव्यू की बातों को मैंने नए संदर्भ देने की कोशिश की. गूगल सर्च से निकली प्रासंगिक रिपोर्ट्स पढ़ीं और आरबीआई वेबसाइट का भी अध्ययन किया.
मैंने पाया कि पिछले 30 महीने में उन्होंने 15 बार या तो अलग अलग मौके पर भाषण दिया है या पेपर्स लिखे हैं. मतलब यह कि सही समय पर और मौजूं मुद्दों पर उन्होंने बोला भी है और लिखा भी है.
हां ये बात सही है कि उनके भाषणों में सनसनी खेज हेडलाइन्स की कमी रही है और न्यूज जन्कीज को इससे निराशा हो सकती है.
तो डॉ. पटेल की क्या सोच है? हम पता है कि वह येल और ऑक्सफॉर्ड से पढ़े हैं और आईएमएफ में उन्होंने काम किया है. इसी वजह से उनको पश्चिमी आर्थिक मॉडल के एक मजबूत समर्थक के रूप में पेश किया जाता रहा है.
मेरे हिसाब से ये आकलन सही नहीं है.
डॉ. पटेल को वैश्विक वित्तीय प्रणाली की अच्छी समझ है. लेकिन उसकी चरमराती इमारत से वो भली भांति वाकिफ हैं.
उनके भाषणों में हमें उनके विचार की साफ झलक मिलती है. एक बात हम साफ तौर पर कह सकते हैं कि उनकी पॉलिसी अमेरिका केंद्रित नहीं होगी. उनकी नजर चीन पर भी है क्योंकि उन्हें पता है कि चीन की घटनाओं का असर हमारी अर्थव्यवस्था पर दूरगामी हो सकता है.
मॉनिटरी पॉलिसी को नई दिशा देने के लिए रघुराम राजन को काफी शाबाशी मिली लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी विभाग में डॉ. पटेल पिछले 4 साल से डिप्टी गवर्नर रहे हैं.
मैंने जितना उन्हें जाना है, उसके हिसाब से मैं यही कह सकता हूं कि अपने कार्यकाल में इन मसलों पर ध्यान देंगे.
ब्याज दर पर उनका फैसला आंकड़ों के आधार पर ही होगा. उनको मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी बनानी है और उसे चलाना है. लेकिन मेरा मानना है कि मंहगाई मापने के तौर तरीके में बदलाव होगेें. फिलहाल सीपीआई अलग अलग आर्थिक समूह और क्षेत्र पर मंहगाई के प्रभाव को ठीक से परिलक्षित नहीं करता है. ग्लोबल मापदंड पर भी यह खरा नहीं उतर पा रहा है. नए मापदंड से मंहगाई रोकने का लक्ष्य भी पूरा हो पाएगा और ब्याज दर घटाने बढ़ाने की फ्लैक्सिब्लिटी भी रहेगी.
लोगों का आकलन है कि इस मसले पर डॉ. पटेल, रघुराम राजन की विरासत को ही आगे बढ़ाएंगे. इसका मतलब कि मंहगाई पर आरबीआई का अड़ियल रवैया ही रहेगा. लेकिन मेरे हिसाब से डॉ. पटेल इस मामले में साहसिक कदम उठा सकते हैं. खासकर तब जब आर्थिक विकास को रफ्तार देने की बात हो.
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की जेनेट येलेन अगले कुछ महीने में क्या कदम उठाती हैं. आरबीआई की उस पर पैनी नजर होगी.
मेेरे हिसाब से डॉ. पटेल का रवैया आक्रमक ही रहेगा. इस प्रक्रिया में पारदर्शिता रहेगी, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया को तेजी से पूरा करना होगा. उम्मीद यह लगाई जा रही है, कई सालों से रुके बड़े प्रोजेक्ट को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश हो सकती है.
सरकारी बैंक से लोन देने की दर काफी कम है. प्राइवेट बैंक सरकारी बैंकों का मार्केट शेयर घटा रहे हैं. नए कैपिटल का भी मसला है. इन सब पर डॉ. पटेल को मूलभूत सुधार करने होंगे. बैंडेज चिपकाने से काम नहीं चलेगा.
राजन के नेतृत्व में डॉलर के मुकाबले रुपया काफी स्थिर रहा. सरकार चाहती है कि रुपया मजबूत हो. लेकिन एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए रुपये में थोड़ी बहुत कमजोरी नुकसानदेह नहीं. डॉ. पटेल के सामने चुनौती होगी कि रुपए को डॉलर के मुकाबले 65 से 70 के बीच रखें.
इस मसले पर सबकी नजर होगी. मोदी जी का यह पंसदीदा विषय है और मुझे लगता है कि डॉ. पटेल इसको आगे बढ़ाने में आरबीआई की तरफ से होने वाली कोशिशों में कमी नहीं होने देंगे.
हम लोग डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं. इसके बावजूद करोड़ो लोगों तक बैंकिग सेक्टर का फायदा नहीं पहुंच पा रहा है. आरबीआई की चुनौती इस खाली जगह को भरने की है.
प्रधानमंत्री की एक और महत्तवकांक्षी योजना है मुद्रा. इसके तहत छोटे व्यापारियों को सस्ते दर पर लोन दिया जाता है. बिग डाटा का प्रयोग कर ऐसे लोन को बांटने की प्रक्रिया में कैसे तेजी लाई जाए. इस पर भी रिजर्व बैंक को ध्यान देना होगा.
डॉ. पटेल के सामने ये सब नई चुनौतियां होंगी. देश की अर्थव्यवस्था की दिशा इसी से तय होगी.
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Published: 04 Sep 2016,09:10 AM IST