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न राम का हुआ, न रहमान का हुआ
कुछ कबीर सी फितरत थी, हर इंसान का हुआ
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने ये बात मई, 2014 में एक अलग संदर्भ में कही थी. बीजेपी से बरसों पुरानी दोस्ती तोड़ने, फिर नए सिरे से गठजोड़ करने के बाद नीतीश एक बार फिर दोराहे पर खड़े नजर आ रहे हैं. उनकी कही वो बात आज भी एकदम प्रासंगिक मालूम पड़ती है.
ऐसा लगता है कि कभी पीएम मेटेरियल करार दिए जा रहे नीतीश को एनडीए के भीतर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. नीतीश के सियासी विरोधी ये कयास लगा रहे हैं कि वे एक बार फिर यू-टर्न ले सकते हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश साल 2019 के चुनाव से पहले सचमुच एक बार फिर बीजेपी विरोधी कैंप में शामिल हो सकते हैं?
वैसे तो सियासत और क्रिकेट मैच का रुख बदलने में देर नहीं लगती. लेकिन ऐसे कई कारण हैं, जिनसे नीतीश के रुख पर सवाल उठ रहे हैं.
नीतीश कुमार का सबसे हाल का बयान नोटबंदी को लेकर है. उन्होंने बीते दिनों नोटबंदी के फायदों पर सवाल उठाकर न केवल अपनी सहयोगी बीजेपी को चौंकाया, बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं को भी हैरत में डाल दिया.
बिहार सीएम ने बैंक अधिकारियों के साथ एक मीटिंग में कहा:
नीतीश का बयान सामने आना था कि बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने ताना दे मारा, "हमारे प्यारे नीतीश चाचा ने एक और यू-टर्न ले लिया है."
हाल की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नीतीश केंद्र से बाढ़ राहत की रकम बेहद कम मिलने से खफा हैं. इसमें बताया गया है कि बिहार सरकार ने पिछले साल बाढ़ राहत के लिए केंद्र सरकार से 7,600 करोड़ रुपये मांगे थे, लेकिन केवल 1700 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए. बाद में इसमें कटौती की गई और केवल 1200 करोड़ रुपये ही दिए गए.
केंद्र और राज्य के बीच इस तरह डिमांड और सप्लाई में अंतर पाया जाना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन जाहिर तौर पर, इस तरह की उपेक्षा से नीतीश आहत हुए जरूर होंगे.
तो क्या नीतीश सचमुच अपनी सहयोगी बीजेपी से नाराज चल रहे हैं? क्या NDA में नीतीश को वो भाव नहीं मिल रहा, जिसके वे हकदार हैं?
मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार से पहले ये तय माना जा रहा था कि इसमें जेडीयू को जगह दी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब खबरें ऐसी भी हैं कि नीतीश को पीएम मोदी से मुलाकात करने का भी मनचाहा वक्त नहीं दिया जाता. अब वे बस एक प्रदेश के सीएम बनकर रह गए हैं. ऐसे में अगर आम चुनाव से सालभर पहले उनकी महत्वाकांक्षा जाग गई हो, तो इस पर किसी को अचरज नहीं होना चाहिए.
एक सवाल ये है कि अगर नीतीश बिहार सीएम की कुर्सी दांव पर लगाकर बीजेपी से पिंड छुड़ाना चाहें, तो वे पब्लिक के बीच इसका कारण क्या बता सकते हैं?
बिहार की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि नीतीश ने एक कार्ड अभी भी बचाकर रखा है, जिसे वह कभी भी चल सकते हैं.
ऐसी खबरें भी हैं कि नीतीश इस मुद्दे पर बड़ा आंदोलन छेड़ने का प्लान तैयार करने में जुटे हैं.
नीतीश एक कारण ये भी बता सकते हैं कि हाल के दिनों में देश का सामाजिक माहौल खराब हुआ है, सांप्रदायिक सद्भाव में भी कमी आई है, जिससे वे दुखी हैं.
... और जब बीजेपी से बार-बार गले मिलने और बार-बार कुट्टी करने की वजह पूछी जाएगी, तो कम शब्दों में वे इतना भी कह सकते हैं:
न राम का हुआ, न रहमान का हुआ
कुछ कबीर सी फितरत थी, हर इंसान का हुआ
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Published: 29 May 2018,06:20 PM IST