मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019भारत- पाक युद्ध हल नहीं: ऑपरेशन पराक्रम से सीखे मोदी सरकार

भारत- पाक युद्ध हल नहीं: ऑपरेशन पराक्रम से सीखे मोदी सरकार

उरी घटना पर सोच- समझकर फैसला ले मोदी सरकार, ऑपरेशन पराक्रम भी सफल नहीं हुआ था

सी उदय भास्कर
नजरिया
Published:
(फोटो: Indian Army)
i
(फोटो: Indian Army)
null

advertisement

उरी हमले के बाद भारत के अंदर गुस्सा और बेचैनी चरम पर है. यह गुस्सा अपने अस्पष्ट शत्रु के खिलाफ है, उन आतंकवादियों के खिलाफ है, जिसने भारतीय सेना के कैंप पर हमला किया और कायराना तरीके से सोते हुए जवानों की हत्या कर दी, यह गुस्सा इन आतंकवादियों के प्रायोजक पाकिस्तानी सेना के खिलाफ भी है.

यह बेचैनी भारत सरकार और विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी है, जो कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार से बेहतर तरीके से अधिक कठोरता से पाकिस्तानी विश्वासघात से निपटने और देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत बनाने के वादों के साथ सत्ता पर काबिज हुए हैं.

अभी तक भारत को पठानकोट हमले के कलंक से गुजरना पड़ा था, जहां सैन्य हवाई अड्डे पर आतंकी हमला हुआ और इसके लिए रावलपिंडी को कोई सजा नहीं दी जा सकी. अब इस बात का डर है कि उरी में भी उसी की पुनरावृति होगी, शुरुआत में थोड़ा गुस्सा दिखाई देगा, सोशल मीडिया पर आक्रोश दिखाई देगा और फिर सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो जाएगा.

पीएम मोदी ने कहा है कि 18 जवानों की मौत बेकार नहीं जाएगी. (Photo Courtesy: Twitter/@Shiv Aroor)

उरी के बाद जंग की मांग जोर पकड़ी

भारत में लोग युद्ध की मनोदशा में आ गए हैं. पीएम मोदी ने कहा है कि 18 सैनिकों की मौत बेकार नहीं जाएगी और इसके जिम्मेदार लोग सजा से नहीं बच पाएंगे. भारतीय जनता पार्टी ने घोषित कर दिया है कि सामरिक संयम की नीति का समय खत्म हो गया और अब पाकिस्तान के खिलाफ अत्यधिक कठोर नीति अपनाने की आवश्यकता है.

अधिकांश लोगों की राय राष्ट्रीय मनोदशा को प्रतिबिंबित करती है. उसके हिसाब से भारत को तेजी से पाकिस्तान के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए. उनका मानना है कि अब बहुत हो गया और बर्दाश्त करने की जरूरत नहीं है.

लेकिन भारतीय सेना की प्रतिक्रिया कितनी सफल होगी और राजनैतिक उद्देश्य क्या है ?

दिसम्बर 2001 में संसद पर हमले में मिले कुछ अहम सबूतों के बाद भारत ने ऑपरेशन पराक्रम चलाया था.

संसद पर हमले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सेना को सीमा की ओर कूच करने का आदेश दिया था और दिसंबर 2001 से जून 2002 तक भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की सेना धीरे-धीरे नियंत्रण रेखा (एलओसी) की ओर बढ़ती रही.

मदन लाल खुराना और लाल कृष्ण आडवाणी के साथ पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजेपीय की तस्वीर. (Photo Courtesy: PIB)

यह भारत के द्वारा दिखाई गई ताकत थी और यह माना गया कि इसने रावलपिंडी (पाकिस्तानी सैन्य मुख्यालय) को अपनी नीति बदलने को मजबूर कर दिया तथा उसने आतंकवादी समूहों को समर्थन देना बंद कर दिया.

जब ऑपरेशन पराक्रम अपने चरम पर था तो एक अनुमान के अनुसार दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर करीब 8 लाख सैनिक एकत्र कर लिए थे और इसने सैन्य तनाव बढ़ा दिया और कई मिसाइल परीक्षण भी किए गए. जाहिर तौर पर पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय चिंता को बढ़ाने के लिए अपनी परमाणु हथियार क्षमता का जिक्र किया और अपनी योजना में थोड़ा सफल भी हुआ.

हालांकि 9/11 की घटना के बाद वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ आक्रोश पैदा हुआ और इसके कारण पाकिस्तान शांत हो गया.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सेना के कूच करने की तैयारी के 6 महीने बाद, जून 2002 में वाजपेयी ने सेना को वापस बुलाने का संकेत दिया और अंत में ऑपरेशन पराक्रम को समाप्त कर दिया गया. उस समय सेना ने शांति के समय के लिए निर्धारित स्थान को एक साल से अधिक समय तक के लिए पार कर लिया था. 

एक अनुमान के अनुसार ऑपरेशन पराक्रम के कारण भारत के खजाने के ऊपर करीब 3 बिलियन डॉलर का बोझ पड़ा था और पाकिस्तान को भी लगभग 1.5 बिलियन डॉलर खर्च करना पड़ा था.

ऑपरेशन पराक्रम की सैनिकों को क्या कीमत चुकानी पड़ी थी ?

जुलाई 2003 के अंत में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने लोकसभा को बताया था कि बिना युद्ध किए हमारे 798 सैनिकों की मौत हुई. ये मौतें हथियारों से संबंधित दुर्घटनाएं, बारूदी सुरंग विस्फोट एवं कुछ मामलों में दोस्ताना गोलीबारी के कारण हुई थी. इसके विपरीत 1999 के करगिल युद्ध के समय भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए थे.

पराक्रम कितना सफल रहा?

इसके बारे में मिले-जुले विचार हैं और कुछ लोगों का मानना है कि भारत पाकिस्तान को रोकने में सफल रहा, जो ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि ऑपरेशन पराक्रम गलत तरीके से किया गया था और लोगों को बड़े पैमाने पर लामबंद करने का कोई स्पष्ट राजनीतिक उद्देश्य नहीं था.

हाल में, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार ने ऑपरेशन पराक्रम को एक बड़ी गलती करार दिया था.

उन्होंने कहा,

ऑपरेशन पराक्रम के लिए कोई उद्देश्य या सैन्य लक्ष्य नहीं था. मैं यह स्वीकार करने में कोई हिचक महसूस नहीं कर रहा कि यह भारतीय सुरक्षा बलों के लिए सबसे दंडनीय गलती थी.

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र ने दावा किया था कि ऑपरेशन पराक्रम ने पाकिस्तानी सेना को सावधान कर दिया था और उसके व्यवहार में परिवर्तन आया था, लेकिन यह बहुत छोटे समय के लिए रहा और नवंबर 2008 में मुंबई में आतंकी हमला हुआ.

ऑपरेशन पराक्रम का उद्देश्यपूर्ण परीक्षण मोदी सरकार को उरी घटना के बाद की प्रतिक्रिया के लिए एक हानि-लाभ विश्लेषण प्रदान कर सकता है.

भारत-पाकिस्तान के बीच ठंडे पड़ चुके बहुत सारे मामले सतह पर आ गए हैं जिसमें बलूचिस्तान एवं पराक्रम से उरी तक के तनाव का विस्तार शामिल है. भारत के पास सेना के इस्तेमाल का विकल्प है लेकिन दोनों में से कोई देश इससे होने वाले जन-धन के नुकसान से बच नहीं सकता है. कम कीमत चुकाने वाला कोई विकल्प नहीं है. इसलिए उरी हमले के बाद भारत की ओर से एक संयमित, नैतिक एवं सुलझी हुई प्रतिक्रिया की आवश्यकता है.

सीमित तौर पर ही सही लेकिन किसी देश को जन भावनाओं को शांत करने के लिए युद्ध की ओर नहीं जाना चाहिए.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT