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नोटबंदी के बावजूद चुनावों में कालेधन का इस्‍तेमाल रोकना मुश्किल

नोट बैन को UP चुनाव में बड़ा बदलाव माना जा रहा था. लेकिन ये कदम एसपी, BSP जैसी पार्टियों को प्रभावित नहीं कर पाएगा.

विवेक अवस्थी
नजरिया
Published:
(फोटो: रॉयटर्स)
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(फोटो: रॉयटर्स)
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कालेधन पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक से उत्तर प्रदेश में बीजेपी कार्यकर्ताओं में बेहद खुशी देखी जा रही है. उन्हें लगता है कि अब चुनावों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगेगी.

लेकिन जिस कदम को आने वाले उत्तर प्रदेश चुनावों में बड़ा बदलाव माना जा रहा है, दरअसल वो किसी भी तरह एसपी और बीएसपी को प्रभावित नहीं कर पाएगा. राजनीतिक पंडितों के मुताबिक, राजनीतिक पार्टियां ऐसी किसी भी स्थिति के लिए पहले से तैयार हैं.

छोटे व्यापारियों की तरह राजनेता अपने पैसे को घर में जमा कर नहीं रखते. वे अपना कालाधन मॉरीशस, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड और मिडिल ईस्ट जैसे सेफ हैवन में खपाने के लिए प्रसिद्ध हैं.
कुछ राजनेता रियल स्टेट और हॉस्पिटेलिटी जैसे सेक्टर में भी पैसा लगाते हैं. बहुत सारे लोगों का ऐसे धंधों में पैसा लगा है.
वहीं कई दूसरे नेता चार्टर्ड अकाउंटेंट और बिजनेसमैन को अपने बैंकर की तरह उपयोग करते हैं, जो पैसे को तब तक सुरक्षित रखते हैं, जब तक नेता को नगद पैसे की जरूरत न पड़े.

कुछ दिन पहले एक नेता को उत्तर प्रदेश की जाट पट्टी से टिकट चाहिए था. इसके लिए एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल ने उससे एक करोड़ रुपये की मांग की. लेकिन नए नोट न होने की वजह से नेता ने पैसा देने में असमर्थता जताई. पर राजनीतिक दल ने उससे पुराने नोटों में ही पैसे देने को कहा. दरअसल राजनीतिक दल यह पैसा वो चंदे के रूप में दर्शाकर एडजस्ट कर देगा.

वहीं एक दूसरे राजनीतिक दल ने नोट बैन की घोषणा होने के चंद घंटो के भीतर कैंडिडेट्स ( इन्हें चुनाव में टिकट का वादा किया गया था) से अपना चंदा वापस लेने के लिए कह दिया. उनसे बाद में इस रकम को देने को कहा गया. इस तरह राजनीतिक दल ने अपनी बड़ी रकम से छुटकारा पा लिया. बाद में जब नए नोट प्रचलन में आ जाएंगे, तो उनसे दोबारा चंदा लिया जाएगा.

मतलब साफ है, राजनीतिक दलों ने आसानी से प्रचलन में न रहने वाले नोटों से छुटकारा पा लिया है.

दरअसल दिक्कत हमारे सिस्टम में ही है. रिप्रेजेंटेशन अॉफ पीपुल्स एक्ट के मुताबिक, किसी भी राजनीतिक दल को 20,000 रुपये से कम के चंदे की रसीद देना जरूरी नहीं है. मतलब कोई भी बड़े बेस वाली पार्टी बीस-बीस हजार रुपये जमा कर आसानी से करोड़ों रुपये इकट्ठे कर सकती है.
मुलायम सिंह यादव (फोटोः PTI)

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने 2012 में राज्यसभा उम्मीदवार के तौर पर दिए हलफनामे में अपनी संपत्ति 111.64 करोड़ रुपये बताई थी. इस तरह वो देश के सबसे अमीर राजनेताओं में से एक हैं.

मुलायम सिंह यादव ने पिछले लोकसभा चुनाव में अपनी संपत्ति 15,96,71,544 रुपये बताई थी. लेकिन उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का केस चल रहा है. 1977 में मुलायम ने अपनी संपत्ति 77000 रुपये बताई थी. 28 साल बाद उनके संबंधियों को मिलाकर उन्होंने करीब 100 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जोड़ ली है.

नेता, नोट बैन के चलते अभी थोड़े पसोपेश में हैं, लेकिन उन्हें यकीन है कि चुनाव तक उनके पांच सौ और हजार के नोट नए नोटों में बदल जाएंगे.

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