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NSE को-लोकेशन का अजब केस: कोई गलती नहीं, फिर भी सजा

जिन लोगों ने 1990 के दशक में भारतीय शेयर बाजार में रिफॉर्म्स लागू किए, उनके साथ ऐसा सलूक अफसोसनाक है

राघव बहल
नजरिया
Published:
NSE को-लोकेशन केस का अजब मामला
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NSE को-लोकेशन केस का अजब मामला
(फोटो: द क्विंट)

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मैं इस लेख की शुरुआत एक डिस्क्लोजर से करना चाहता हूं:

मैं रवि नारायण, चित्रा रामकृष्ण और अजय शाह को जानता हूं. इन पर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर ट्रेडिंग सर्वर को को-लोकेट करके कथित तौर पर ‘कुछ गलत करने’ का आरोप लगा था. मैं इस मामले में सच-झूठ का फैसला करने वाला नहीं हूं, इसलिए केस के बारे में मेरे लिए निर्णायक ढंग से कुछ भी कहना संभव नहीं है. लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूं कि तीनों की पेशेवर ईमानदारी और उन्होंने अपनी जिंदगी में जो हासिल किया है, उसके प्रति मेरे मन में बहुत सम्मान है.

इसलिए, जब मैंने आर्थिक अखबारों में जब ऐसी हेडलाइंस पढ़ीं कि कुछ ब्रोकरों को ट्रेडिंग में नैनो-सेकेंड की बढ़त देकर, सिस्टम के साथ छल करके मोटा मुनाफा कमाने के मामले में इन्हें दोषी ठहराया गया है तो मैं दंग रह गया.

(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट)

इससे भी चौंकाने वाली बात यह थी कि उन पर ‘कोई आपराधिक या बदनीयती या भ्रष्टाचार या मुनाफाखोरी’ का आरोप साबित नहीं हुआ था. इसके बावजूद इन सम्मानित पेशेवरों को सजा दी गई. उनका बोनस वापस ले लिया गया. उनकी छवि मटियामेट की गई और कोई अफसोस तक नहीं जताया गया.

इस केस की डिटेल जानने के लिए मैंने एक दोस्त से संपर्क किया (जाहिर तौर पर मैं उनकी पहचान नहीं बता सकता). उन्होंने मुझे जो सूचना भेजी, वह मैं नीचे दे रहा हूं:

2015 के बाद से ‘व्हिस्लब्लोअरों से शिकायतें’ मिल रही थीं (ये ऐसी ईमेल होती हैं, जिनमें भेजने वाले का नाम नहीं होता. ऐसी मेल हजारों लोगों के साथ सेबी, सीबीआई, आईबी और ईडी आदि को भेजी गई थीं). इनमें एनएसई में कथित समस्याओं का जिक्र किया गया था और ओपीजी सिक्योरिटीज नाम की ब्रोकरेज फर्म पर आरोप लगाए गए थे. ओपीजी सिक्योरिटीज और रवि या चित्रा या अजय के बीच कोई डायरेक्ट लिंक साबित नहीं किया जा सका था.

2017 में एक नई ‘व्हिस्लब्लोअर कंप्लेंट’ मिली. इसमें एक कंस्पिरेसी थ्योरी दी गई थी कि अजय इस मामले से अंदरूनी तौर पर जुड़े हुए हैं. पहली नजर में यह बात अजीब लगती है, लेकिन इसके बाद एनएसई और अजय के यहां इनकम टैक्स के छापे पड़े, फिर सेबी ने जांच शुरू की और सीबीआई की रेड भी पड़ी.

सेबी ने 2009 में उनकी एक ईमेल के एक पैराग्राफ के आधार पर उन्हें ‘कारण बताओ नोटिस’ भेजा, जिसमें ‘भविष्य में कुछ करने’ के बारे में लिखा गया था, लेकिन बाद में वैसा कुछ भी नहीं हुआ. जांच करने वालों को किसी भी संबंधित पार्टी को लेकर गड़बड़ी, किसी ट्रेडिंग, किसी मुनाफे या पैसों के लेन-देन का सबूत नहीं मिला. इसके बावजूद अब सेबी ने अजय को ‘दोषी’ ठहरा दिया है.

दोस्त से मिली इस मेल को पढ़ने के बाद मैंने गौर किया कि कई न्यूजपेपर रिपोर्ट्स में इसे लेकर सवाल खड़े किए गए थे कि जब सेबी को किसी गड़बड़ी का सबूत नहीं मिला तो वह एनएसई पर जुर्माना कैसे लगा सकता है? उसने सिर्फ मैनेजमेंट के कुछ फैसलों पर ऐतराज जताया था, वह भी घटना के कई वर्षों बाद.

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जिन लोगों ने 1990 के दशक में भारतीय शेयर बाजार में रिफॉर्म्स लागू किए, उनके साथ ऐसा सलूक अफसोसनाक है. आखिर, शेयर बाजार में जो सुधार लागू किए गए, वह भी राष्ट्रनिर्माण का एक स्तंभ है. एनएसई मामले से भविष्य में सारे पब्लिक पॉलिसी प्रोसेस के लिए की जाने वाली पहल को लेकर खराब सिग्नल गया है. एनएसई के अधिकारियों के साथ जो हुआ, लोग उसे याद रखेंगे और किसी भी पहल में वो सबसे पहले खुद को बचाने की कोशिश करेंगे.

मेरा गुस्सा खासतौर पर देश के वित्तीय सुधारों को लेकर है. 1990 के दशक में हुए इक्विटी मार्केट रिफॉर्म्स का देश के आर्थिक कायाकल्प में बड़ा योगदान रहा है. यह इसके लिए सात अजूबों में से एक रहा है. जिन लोगों ने यह कमाल का काम किया, उन्हें ऐसी मुश्किल में डालना अक्षम्य अपराध है. एक तरफ तो सेबी कह रहा है कि उसे एनएसई में गड़बड़ी के कोई सबूत नहीं मिले, मैनेजमेंट की गलतियों से किसी को भी आर्थिक लाभ नहीं हुआ, लेकिन इसके साथ ही 1,000 करोड़ का जुर्माना लगाया गया और रवि नारायण और चित्रा रामकृष्ण के करियर में छुरा घोंप दिया गया. (दिल्ली हाईकोर्ट में एक पत्रकार शांतनु गुहा रे ने एक जनहित याचिका दायर कर रखी है. जिग्नेश शाह और एफटीआईएल पर किताब लिखने वाले रे चाहते हैं कि इस मामले में सी बी भावे की भूमिका की सीबीआई जांच करे. भावे एक और योग्य एडमिनिस्ट्रेटर रहे हैं).

एनएसई, एनएसडीएल, सेबी को शुरुआती वर्षों में खड़ा करना एक तरह की पॉलिसी आंत्रप्रेन्योरशिप थी यानी जिन लोगों को इसका जिम्मा दिया गया था, उन्होंने इसके लिए बढ़-चढ़कर काम किया था. उन्होंने कई जोखिम उठाए थे. बहुत तेजी से काम किया और उनकी वजह से देश के फाइनेंशियल मार्केट्स में बदलाव लाया जा सका. देश को इसके लिए जी वी रामकृष्ण, सी बी भावे, आर एच पाटिल, रवि नारायण, चित्रा रामकृष्ण, राघवन पुतरान और आशीष चौहान का आभारी होना चाहिए. उन्हें इस रिफॉर्म में वित्त मंत्रालय का भी पूरा साथ मिला था. ये लोग सारी रुकावटों के बीच आगे बढ़ते रहे. उन्होंने कई रिस्क उठाए. इनोवेशन किए. उन सबका अच्छा नतीजा निकला. जब आप 10 या 20 साल बाद किसी संगठन या पहल का विश्लेषण करते हैं तो हो सकता है कि आप कहें कि कागजी कार्यवाही और बेहतर हो सकती थी. लेकिन मुद्दे की बात यह है कि एनएसई का रिफॉर्म सफल रहा. उससे भारतीय शेयर बाजार में जरूरी बदलाव आया. जिस मामले में कोई फ्रॉड नहीं हुआ, कोई गड़बड़ी नहीं हुई, उसमें इस तरह की सजा देकर उन लोगों को गलत मेसेज दिया जा रहा है, जिन पर भविष्य में देश के आर्थिक सुधारों को आगे ले जाने की जिम्मेदारी होगी.

अपनी गर्दन मत फंसाओ, तेजी से काम मत करो, जोखिम मत लो, लोगों को नाराज मत करो. इन लोगों को ऐसा मेसेज देने के खतरनाक अंजाम हो सकते हैं.

भारतीय फाइनेंशियल सिस्टम की हालत बहुत खराब है. आज हमें एनएसई जैसी दर्जन भर टीमें चाहिए, जो इसकी परेशानियों को खत्म करने के उपाय तलाश सकें. बदकिस्मती से एनएसई के मामले में जो हुआ है, उससे ऐसी पहल रुक सकती है. देश के फाइनेंशियल मार्केट्स की प्रोग्रेस रुक गई है क्योंकि सेबी रिफॉर्म करने वालों के प्रति दुश्मन जैसी सोच रखता है.

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