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मुझे आपके शपथ ग्रहण का दिन याद है, इसलिए बात वहीं से शुरू करता हूं. आपने संविधान के पालन करने की शुद्ध अंत:करण से शपथ ली थी. आपने अपने ईश्वर को साक्षी माना था. पूरे देश ने आपका स्वागत किया था. भारतीय संविधान में एक ही प्रधानमंत्री का प्रावधान है. राष्ट्रपति लोकसभा में सत्ता पक्ष के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करते हैं.
लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि प्रधानमंत्री सत्ता पक्ष का होता है. आप सिर्फ उन 31 प्रतिशत मतदाताओं के प्रधानमंत्री नहीं हैं, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट दिया था. जिस दिन आपने पद और गोपनीयता की शपथ ली, उस दिन से आप हम सबके प्रधानमंत्री हैं, अभिभावक हैं. इस नाते मुझे लगता है कि गाय-गुंडागर्दी पर बोलने में आपने देर कर दी.
गोरक्षकों को लेकर आपकी चिंता जायज है कि इनमें से सत्तर से अस्सी फीसदी लोग रात में असामाजिक गतिविधियां करते हैं. आप चाहते हैं कि राज्य सरकारें इनका डोजियर बनाए और इनके खिलाफ कार्रवाई करे. वाजिब है. लेकिन अगर आपने दादरी में अखलाक की उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या के बाद ही यह बयान दिया होता, तो बीजेपी को आज आप उस राजनीतिक नुकसान से बचा लेते, जिससे चिंतित होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बार-बार बयान देकर कह रहा है कि अपने ही दलित भाइयों को मत मारो.
नरेंद्र मोदी जी, आप अखलाख के भी प्रधानमंत्री थे.
गोरक्षक अपराधी जिन मुसलमानों को सरेआम पीटते हैं, उन सबके प्रधानमंत्री भी आप ही हैं. अखलाक को अगर इस देश में कानून की सुरक्षा चाहिए, तो यह सुरक्षा देना, देश के अभिभावक होने के नाते आपका दायित्व था.
माना कि कानून और व्यवस्था राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, लेकिन जिस डोजियर को बनाने के लिए आप राज्य सरकारों को अब कह रहे हैं, वह आप पहले भी कह सकते थे. तब शायद बात उतनी न बिगड़ती, जितनी आज बिगड़ गई है.
मुझे चिंता इस बात की भी है कि आपके बयान के बाद भी गोरक्षकों के हमले रुक नहीं रहे हैं. यहां आपके इकबाल का प्रश्न आता है.
आखिर आपके बयान को गोरक्षकों ने गंभीरता से क्यों नहीं लिया? क्या आपका इकबाल इतना बुलंद नहीं है कि आप कहें और संघ और अनुषंगी संगठन मान जाएं. आपका कहा बेअसर क्यों हो रहा है?
हम भारतीय गणराज्य के प्रधानमंत्री से उसी इकबाल की उम्मीद करते हैं. गोरक्षा का सवाल यहां पर बहुत महत्वपूर्ण है. गोरक्षा होनी चाहिए. मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूं कि मैं ऐसा चाहता हूं. मेरे लिए सभी जानवर समान हैं. गोरक्षा कानूनों से मेरी असहमति है. लेकिन कानून है, तो उसका सख्ती से पालन होना चाहिए. गोरक्षा उन राज्यों में जरूर होनी चाहिए, जहां गोरक्षा के कानून हैं.
इस देश में पांच राज्यों को छोड़कर हर राज्य में गोरक्षा के कानून हैं, और कानून तोड़ने की सजा है. ये कानून संविधान के नीति निर्देशक तत्व से संबंधित अनुच्छेद 48 की वजह से हैं. हालांकि नीति निर्देशक तत्वों में से गोरक्षा के अलावा किसी और को लेकर कानून नहीं बनाया गया है, लेकिन यह एक और बहस है.
इस तरह तो संविधान और कानून के शासन का अंत हो जाएगा. फिर देश बचेगा क्या?
गोरक्षकों से देश को बचाइए. पूरे देश का अभिभावक होने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को निभाएं.
स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं. आपका, एक भारतीय नागरिक
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
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Published: 11 Aug 2016,02:34 PM IST