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जज साहब के नाम खुला खत, जरा हमारा रास्ता भी बदलवा दीजिए 

घर से निकलकर दिल्ली जाने के लिए दो मील का चक्कर कटना पड़ता है, जबकि हम दिल्ली से सिर्फ दो सौ मीटर दूर रहते हैं.

संजय अहिरवाल
नजरिया
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(फोटो: Rhythum Seth/<b>The Quint</b>)
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(फोटो: Rhythum Seth/The Quint)
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गुड़गांव का सरकारी महकमा बावला हुआ पड़ा है. जो सरकारी अफसर कभी एसी युक्त ठंडे कमरों से बाहर नहीं निकले, वो आज साइबर हब, ऐम्बि‍आन्स मॉल, उद्योग विहार, सेक्टर 29 लेजर वैली की तपती दुपहरी में सड़कें नाप रहे हैं. गुड़गांव से लेकर चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री एमएल खट्टर के ऑफि‍स तक सबको एक ही सुध लगी है कि NH 8 के अगल-बगल के दारू के अड्डे बंद न हों. किसी तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन से बचा जा सके, जिसमें न्यायालय ने हाइवे से 500 मीटर दूर तक के सभी शराब बेचने वाली दुकानों और होटलों को बंद करने का आदेश दिया था.

दनादन नए रास्ते निकाले जा रहे हैं. नई दीवारें खड़ी हो रही हैं कि किसी तरह होटल, रेस्तरां की हाइवे से दूरी 500 मीटर से ज्‍यादा निकल आए. चलो बड़ी खुशी की बात है. शराब बिकनी ही चाहिए. और इसकी बिक्री में सरकारी अमले का भी सहयोग होता रहे, तो सोने पर सुहागा.

इस बात की किसको फिक्र है कि भारत की सड़कों पर हर चार मिनट में एक मौत ऐक्सिडेंट से होती है, यानी 377 मौतें हर दिन और 1 लाख 37 हजार से ज्‍यादा मौतें सालाना. ये ऐक्सिडेंट ज्‍यादातर शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर की लापरवाही से होते हैं. साथ ही NH 8 का गुड़गांव से गुजरने वाला हिस्सा शायद भारत का सबसे किलर स्ट्रेच है.

खैर ऐक्सिडेंट मेरा मुद्दा नहीं है. मेरा मुद्दा तो है गुड़गांव के होटलों के लिए नए रास्तों का निर्माण. शायद बहती गंगा में हमारा भी हाथ धुल जाए. और मेरी प्रार्थना सबसे है, मुख्यमंत्री साहब, डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, डिविजनल कमिश्‍नर, हूडा, डीएलएफ जिसकी आज्ञा के बगैर गुड़गांव में परिंदा भी पर नहीं मार सकता. कोई तो NH 8 पर स्थित नेशनल मीडिया सेंटर में रहने वाले 1500 लोगों की गुहार सुन ले. जरा हमारे लिए भी अपनी रिहायशी कॉलोनी से बाहर निकलने और अंदर आने के लिए रास्तों का निर्माण हो जाए, ताकि हम सब भी दो-दो मील लंबा चक्कर काटे बगैर दिल्ली और गुड़गांव के लिए आराम से मेन रोड तक पहुंच सकें. वैसे भी हमारी सोसायटी साइबर हब और ऐम्बि‍आन्स मॉल के बीच में ही पड़ती है, जहां आजकल सब अफसर दारू के ठेके खुलवाने के लिए पिले पड़े हैं.

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हड़प ली गई 400 करोड़ रु की प्राइवेट जमीन

नेशनल मीडिया सेंटर है तो बिलकुल N H 8 पर और चार साल पहले तक यहां रहने वाले हम सब बेरोक-टोक दिल्ली और गुड़गांव के लिए आराम से हाइवे का रास्ता लिया करते थे. फिर मई 2013 में डीएलएफ ने हूडा और मुख्यमंत्री हुड्डा के साथ मिलकर हमारी दो एकड़ जमीन हड़प ली, सड़क निर्माण के नाम पर. डीएलएफ पर रॉबर्ट वाड्रा की सरपरस्ती थी, तो हमारी क्या बिसात थी? पुलिस, सरकार, सब हमारे खि‍लाफ थे.

400 करोड़ की प्राइवेट जमीन पर मुफ्त में अवैध कब्जा.

हमने दो दशक से इस जगह को ग्रीन बेल्‍ट की तरह छोड़ रखा था. सारे पेड़ एक रात में काट डाले गए. पूरी जमीन पर रातोंरात बुल्डोजर और डंपर चला दिए गए पुलिस की निगरानी में. सरकारी अमला जब गुंडागर्दी पर उतारू हो, तो किसकी क्या बिसात.

पर्यावरण के नाम पर हम सुप्रीम कोर्ट की ग्रीन बेंच एनजीटी में याचिका लेकर गए, लेकिन वो भी सड़क निर्माण को रोकने का साहस नहीं दिखा सके. वैसे ही, जैसे उनको श्रीश्री रविशंकर का यमुना किनारे आयोजन रोकने की हिम्मत नहीं बन पड़ी थी और अब साल बाद करोड़ों रूपयों और पर्यावरण को नुकसान की बात कर रहे हैं. पंजाब हाईकोर्ट ने भी हमारी गुहार पर ध्यान नहीं दिया और हमारी याचिका खारिज कर दी. मामला अब सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.

इन कानूनी लड़ाइयों का सीधा असर पड़ा हमारे मेन गेट पर. डीएलएफ और हूडा ने न सिर्फ हमारी जमीन हथि‍या ली, बल्कि हमारे अच्छे-भले रास्ते में बड़े-बड़े अड़ंगे लगा दिए. नई सड़क पर नए रास्ते निकाले गए, पुराने रास्ते जोड़े गए. सब कुछ करते वक्‍त इस बात का खास ध्यान रखा गया कि नेशनल मीडिया सेंटर में रहने वालों के लिए जितनी परेशनियां पैदा कर सकें, की जाएं.

अब दूर हो गई दिल्ली

अब घर से निकलकर दिल्ली जाने के लिए हमें दो मील का चक्कर कटना पड़ता है, जबकि हम दिल्ली से सिर्फ दो सौ मीटर दूर रहते हैं. गुड़गांव में अगर आपको इफको चौक से नेशनल मीडिया सेंटर आना हो, तो फिर आपको दो मील का चक्कर लगाकर दिल्ली में घुसकर रजोकरी फ्लाइओवर के नीचे से यू-टर्न लेकर दोबारा गुड़गांव में घुसना होगा, नहीं तो डीएलएफ फेज 3 के रास्ते से आएं, जो कि और भी लम्बा पड़ता है. सिर्फ यही नहीं, हमारा घर से मेन रोड पर आना अपने आप में जानलेवा काम हो गया है, क्‍योंकि घर के बाहर ऐसी सड़क बना दी गई है, जिस पर वाहन बहुत तेजी से चलते रहते हैं और ऐक्सिडेंट की पूरी आशंका रहती है.

डीएलएफ और गुड़गांव प्रशासन ने पूरा प्रयास किया है कि वे नेशनल मीडिया सेंटर में रहने वालों को ऐसे घेरे में बांध दें, जिससे उनका बाहर निकलना और अंदर आना दूभर हो जाए. शायद हमारे न्यायालय जाने का बदला निकाल रहे हैं. हमसे उम्मीद रखते थे कि वो हमारी दो एकड़ जमीन हथिया लें और हम चूं तक न करें . उनसे तो उम्मीद रखना हमने छोड़ दिया है. लेकिन जज साहब, हाल में हमने आपका रसूख देखा. सब थर-थर कांप गए. आपके डर से ही हर जगह नए रास्ते बन रहे हैं.

इसलिए अब आपके सामने गुहार लगा रहे हैं. नेशनल मीडिया सेंटर के 190 घरों में ज्‍यादातर रिटायर्ड जर्नलिस्ट और प्रोफेसर रहते हैं. जरा उनकी उम्र का लिहाज करते हुए इन सरकारी अफसरों को आदेश दे दें कि शराब के ठेकों के लिए रास्ता निकलते-निकलते जरा हमारे लिए भी छोटा और गैर-खतरनाक रास्ता निकाल दें, ताकि हम भी अपने घरों को बगैर परेशानी आ-जा सकें.

(इस आर्टिकल के लेखक जाने-माने पत्रकार और NDTV वर्ल्‍डवाइड के मैनेजिंग एडिटर हैं. यह उनके निजी विचार हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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