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100 दिन बाद, 90 परसेंट छोटे कारोबारियों को हर महीने रिटर्न से राहत देते हुए जीएसटी को सिंपल टैक्स करने का दावा सरकार ने किया है. लेकिन सच तो यही है कि भारत में बड़े सुधार चुनाव का डर ही कराता है. यही वजह है कि लागू होने के करीब साढ़े तीन माह बाद कारोबारियों और एक्सपोर्टर्स की भारी नाराजगी और गुजरात में विधानसभा चुनाव का असर है कि जीएसटी में कई बड़े बदलाव हो गए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर दावा किया है कि जीएसटी और सिंपल हो गई है और इससे पूरे देश के छोटे कारोबारियों को फायदा होगा. साफ दिखाई दे रहा है कि ज्यादातर बदलाव गुजरात को ध्यान में रखकर किए गए हैं, क्योंकि वहां अगले 2 माह में विधानसभा चुनाव होने हैं. कारोबारियों के सबसे ज्यादा गुस्से की खबरें वहीं से आ रहीं थी.
लेकिन क्या इस सबसे कारोबारियों का कष्ट कम हो जाएगा?
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 100 दिन के अनुभव के बाद जान लिया है कि जीएसटी नेटवर्क में 90 परसेंट तो छोटे कारोबारी हैं. वो कुल जीएसटी कलेक्शन में मुश्किल से 8 परसेंट योगदान दे रहे हैं. लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना उन्हें ही करना पड़ रहा है. इसकी वजह से नेटवर्क में भी बहुत बोझ पड़ रहा है. जीएसटी के मौजूदा सिस्टम से सबसे ज्यादा शिकायतें छोटे कारोबारियों और एक्सपोर्टर्स की तरफ से थी. उनको हर महीने रिटर्न भरने में पसीने छूट रहे थे.
इस तरीके से छोटे कारोबारी ही नहीं जीएसटी नेटवर्क का भी बड़ा सिरदर्द दूर होगा. दरअसल हर महीने रिटर्न भरने के चक्कर में जीएसटी नेटवर्क में ट्रैफिक इतना ज्यादा बढ़ जाता था कि पूरा सिस्टम अक्सर बैठ जाता था. वित्तमंत्री ने भी माना कि हर महीने रिटर्न भरने की अंतिम तारीख के आसपास 90 परसेंट से ज्यादा छोटे कारोबारी के भारी ट्रैफिक से नेटवर्क को जाम हो जा रहा था. जबकि इनसे टैक्स कलेक्शन बहुत मामूली हो रहा था.
जीएसटी कलेक्शन में 92 परसेंट से ज्यादा टैक्स बड़ी इंडस्ट्री ही देती है. अब छोटे कारोबारी महीने के रिटर्न से बाहर हो जाएंगे तो बड़ी इंडस्ट्री के लिए भी बड़ी राहत होगी.
जीएसटी में राहत के सबसे बड़े फैसले पर कई सवाल भी उठने लगे हैं. जानकारों के मुताबिक सरकार ने दावा किया था कि जीएसटी से टैक्स का दायरा बढ़ेगा, लेकिन अगर 90 परसेंट से ज्यादा छोटे कारोबारी (1.5 करोड़ टर्नओवर) को हर महीने रिटर्न से छूट मिलने के बाद क्या टैक्स का दायरा बढ़ाने का दावा कमजोर नहीं पड़ जाएगा?
लेकिन दूसरे जानकारों का मानना है कि इससे टैक्स में वसूली कम होने का खतरा है क्योंकि होल सेलर से रिटेलर तक की जो पूरी चेन बनी हुई है उसपर खासा असर होगा. छोटी इंडस्ट्री के लिए सिर्फ इतना ही नहीं हुआ है. सरकार ने मंत्रियों का एक समूह बनाया है जो छोटी इंडस्ट्री की दूसरी दिक्कतों जैसे इनपुट क्रेडिट सिस्टम, कॉम्पोजीशन स्कीम में टर्नओवर कैलकुलेट करने के तरीकों पर भी विचार करेगा. यह समूह दो हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देगा.
जीएसटी काउंसिल के फैसले से सबसे बड़ा फायदा एक्सपोर्टर्स के हिस्से में आया है. सबसे ज्यादा शिकायतें भी उन्हें हीं थीं.
वैसे तो 27 प्रोडक्ट के टैक्स रेट बदल दिए गए हैं. पर जरा ध्यान दीजिए तो साफ लगता है कि बहुत कुछ परिवर्तन गुजरात को ध्यान में रखकर किए गए हैं.
छोटी इंडस्ट्री सरकार के फैसलों से खुश तो है, लेकिन वो कह रहे हैं कि अब प्रैक्टिकल अनुभव के बाद इस पता लगेगा कि उन्हें कितनी राहत मिली है. खास तौर पर छोटे शहरों के कारोबारियों को संदेह बरकरार है. मध्यप्रदेश में महाकौशल चेम्बर ऑफ कॉमर्स के ट्रेजरार युवराज जैन के मुताबिक यार्न पर टैक्स की दरें कम होने से टैक्सटाइल के मैन्यूफैक्चरर को सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि उनकी लागत कम हो जाएगी. उनकी बड़ी रकम जो टैक्स में फंस जा रही थी. लेकिन उनका मानना है कि कारोबारियों को असली दिक्कत प्रक्रिया और पोर्टल से थी, इसलिए अगर इन फैसलों से प्रक्रिया तेज होती है तो इसका स्वागत है.
लेकिन कई चार्टर्ड अकाउंटेंट इस बदलाव पर अभी भी संदेह उठा रहे हैं.
अग्रवाल के मुताबिक जीएसटी काउंसिल को कई असल मुद्दों पर गौर करना चाहिए जैसे-
अक्सर ये कहा जाता है कि भारत में हर मामले में राजनीति घुसने से दिक्कतें होती हैं. लेकिन जीएसटी में बदलाव से साफ है कि अंत में सबसे असरदार राजनीतिक दबाव ही होता है. सरकार को गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर ही सही कारोबारियों की दिक्कत का अहसास तो हुआ. लेकिन असली तस्वीर तो इन फैसलों पर अमल के बाद ही नजर आएगी.
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Published: 07 Oct 2017,12:06 PM IST