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एक कहानी को ठीक से समझा नहीं गया है. वो है वित्तमंत्री अरुण जेटली का तिलिस्म. कई लोग कहते हैं कि डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी का अरविंद सुब्रह्मण्यम पर हमला दरअसल जेटली की मुश्किलें बढ़ाने के लिए है. मैं जिस कहानी को जोड़कर देखने की बात कर रहा हूं, वो है राम जेठमलानी और अरुण शौरी. इनके साथ डॉ. स्वामी को रखिए.
अब देखिए कि इसमें कॉमन क्या है? कॉमन है कि ये सब जेटली के मित्र नहीं हैं. शौरी और जेठमलानी बीजेपी और संघ से अपने गहरे रिश्तों के कारण उम्मीद रखते थे कि मोदी सरकार में उनके अच्छे दिन गारंटीड हैं.
पर ऐसा नहीं हुआ. थोड़े इंतजार के बाद दोनों ने जेटली पर सीधे या छिपे हमले भी किए. लेकिन न तो उन्हें कुछ मिला और न ही जेटली किसी मुश्किल में पड़े.
वहीं डॉ. स्वामी कुछ बेहतर हालत में दिखते हैं, क्योंकि उनको राज्यसभा की सीट मिल गई है. जब सीट मिल गई है, तो आखिर वो ऐसे बागी बने क्यों घूम रहे हैं? वो सोचते होंगे कि पहले आरबीआई चीफ रघुराम राजन का शिकार किया और अब मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम को निपटाया जाए. उनके पास ऐसे 27 लोगों की लिस्ट है.
ऐसा नहीं हो सकता, तो फिर एक निष्कर्ष ये निकल सकता है कि डॉ. स्वामी को लगता है कि वाकई वो वित्तमंत्री बन सकते हैं. ये बेताबी इतनी तेज है कि डॉ. स्वामी को शायद ये न दिखता हो कि जेटली बेहद महफूज हैं.
स्वामी हल्ला करते हैं, जबकि जेटली शांत रहते हैं. शांत आदमी शतरंज अच्छी खेलता है. दो बड़े वजीर जेठमलानी और शौरी से मोदी जी का अच्छा रिश्ता रहा है. बावजूद इसके उनको वो न मिला, वो जो चाहते थे. ये साबित कर पाना मुश्किल है कि इन वजीरों को शतरंज पर जो मात मिली है, उसमें जेटली का कोई हाथ है. कितनी शांति से ये सब हुआ.
डॉ. स्वामी का ये पूर्वानुमान गलत हो सकता है कि संघ-बीजेपी के कई दुश्मनों को मैंने तंग किया है, तो मेरे एक प्रतिस्पर्धी को तंग करने की आजादी मुझे भी मिलनी चाहिए. यथार्थवादी होकर सोचिए कि डॉ. स्वामी वित्त मंत्री के रूप में कैसे दिखेंगे, कैसा सिग्नल देंगे?
सत्ता के गलियारों में अंदाजा ये है कि डॉ. स्वामी अति करेंगे, तो जेटली शतरंज खेलेंगे. अभी मैंने जेटली के लिए ‘तिलिस्म’ शब्द का इस्तेमाल किया है. उसकी जगह ‘ताकतवर’ लिखना है कि नहीं, इसका पता हमें थोड़ा आगे चलकर लगेगा.
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Published: 22 Jun 2016,09:45 PM IST