मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019UPSC टॉपर टीना डाबी की सफलता ‘बोनस मार्क्स’ ने नहीं लिखी

UPSC टॉपर टीना डाबी की सफलता ‘बोनस मार्क्स’ ने नहीं लिखी

क्या सफलता के लिए किसी खास जाति का होना मायने रखता है?

हंसा मल्होत्रा
नजरिया
Published:
 UPSC का रिजल्ट आने के बाद टीना अपने परिवार के साथ. (फोटो: फेसबुक/<a href="https://www.facebook.com/tina.dabi?fref=ts">टीना डाबी</a>)
i
UPSC का रिजल्ट आने के बाद टीना अपने परिवार के साथ. (फोटो: फेसबुक/टीना डाबी)
null

advertisement

2015 UPSC की परीक्षा में अव्वल रहकर टीना डाबी ने रिकार्ड कायम किया. उसकी सफलता के पीछे का कारण उसका दलित होना नहीं था. एक दलित होने के कारण उसे कोई बोनस अंक नहीं मिले थे! उसे UPSC की ओर से जारी मेरिट लिस्ट में रैंक #1 घोषित किया गया था. उसने अपनी मेहनत से यह मुकाम पाया.

अगर आप सोच रहे हैं कि हम इस बारे में क्या बात कर रहे हैं, तो चलिए हम समझने में आपकी मदद करते हैं. हाल ही में ‘टीना डाबी और आरक्षण विवाद’ शीर्षक से एक ब्लॉग पोस्ट काफी वायरल हुआ. ब्लॉग में आरोप लगाया गया कि आरक्षण के दम पर उसने परीक्षा पास की है. इसके बाद कमेंट का दौर चल पड़ा कि “आरक्षण योग्यता को मारता है.”

“आरक्षित” का मतलब “अयोग्य”?

हाँ, कुछ लोगो का यह मानना है कि “आरक्षित” का मतलब “अयोग्य” है. डाबी पहली दलित महिला हैं जिन्होंने UPSC परीक्षा में टॅाप किया. लेकिन उसकी सफलता लोगों को हजम नहीं हुई. उसे तथाकथित ‘दलित’ कार्ड और व्यवस्थित जाति आधारित घृणा के कारण लगातार ऑनलाइन ट्रलिंग का सामना करना पड़ा.

एक दलित होकर UPSC में उसने परचम लहराया. इसके लिए उसे भी बहुत कुछ करना पड़ा.

  • UPSC की परीक्षा तीन चरणों में आयोजित होती है प्रिलिम्स, मेंस और इंटरव्यू.
  • 2015 में प्रिलिम्स के लिए कट-ऑफ सामान्य वर्ग के लिए 107.34 और अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 94 था.
  • डाबी ने प्रिलिम्स के पेपर-1 में 96.66 हासिल किए जो, स्पष्ट रुप से उल्लेखित है कि 94 नंबर के कट-ऑफ से ज्यादा था.
  • अनुसूचित जाति वर्ग का होने के कारण उसे प्रिलिम्स में मदद मिली.
  • पेपर-2 पास करने के लिए 66 नंबर लाने होते हैं. डाबी ने इसमें 98.73 नंबर पाए.
टीना डाबी की प्रारंभिक परीक्षा का रिजल्ट. (फोटो: UPSC वेबसाइट)

हाँ, डाबी प्रीलिम्स में कटऑफ अनुसूचित जाति वर्ग की होने के कारण ला पाई. लेकिन अंतिम मेरिट लिस्ट मेंस और इंटरव्यू स्कोर के आधार पर तय किया जाता है. प्रीलिम्स एक योग्यता परीक्षा होती है. हालांकि यह अंतिम मेरिट लिस्ट को प्रभावित नहीं करती.

अनुसूचित जाति वर्ग का बताकर उसके आवेदन को नकारना, उसकी सफलता का जातिवाद के मुद्दे के रूप में गलत इस्तेमाल करना एक बीमार मानसिकता दिखाता है. यह सवाल करने के लिए हमें मजबूर करता है..कि आरक्षण एक वैध संवैधानिक अधिकार है, न कि एक पक्ष. तो क्यों नहीं वह इसके उपयोग की हकदार हो सकती?

एक ऑनलाइन कैंपेन के तहत टीना के खिलाफ आरक्षण विरोधी रुख अपनाया गया. उसे अयोग्य कहकर बदनाम करने और दमनकारी पाखंड के प्रदर्शन के लिए उसके नाम का इस्तेमाल किया गया.

इन सब की वजह से टीना पर व्यक्तिगत हमला तो लाजिमी था. अंकित श्रीवास्तव, जो इस साल परीक्षा में सफल नहीं हो पाए, ने एक ब्लॅाग लिखा. उन्होनें डाबी के खिलाफ एक मुहिम चलाई.

जो खुद दो साल से कट ऑफ क्लीयर नहीं कर सका, उसने अपने नंबरों की तुलना डाबी के साथ कर उसे अयोग्य बताया. UPSC का कटऑफ तो हर साल बदलता रहता है. ऐसे में स्कोर की तुलना की वैधता क्या है?

इतना ही नहीं, डाबी के 35 से अधिक फर्जी फेसबुक प्रोफाइल बना दिए गए. उसके नाम से लिखे एक फेसबुक पोस्ट में मोदी की तारीफ और वोट बैंक के राजनीतिक हथियार के रूप में आरक्षण की बुराई की गई. एक दूसरे पोस्ट में उसे क्रीमीलेयर का बताकर कोटा का हकदार नहीं बताया गया.

टीना का फेक फेसबुक पोस्ट. 
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
ब्लॉग में किया गया कमेंट.

क्रीमीलेयर का तर्क काफी विवादास्पद है. ऐतिहासिक दृष्टि से आरक्षण की जरुरत हाशिए पर और उससे बाहर के लोगों की मदद के लिए पड़ी थी. यह एक गरीबी उन्मूलन योजना तो नहीं थी, लेकिन बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और जाति आधारित उत्पीड़न की सदियों से चले आ रहे दमन को खत्म करने का एक तरीका थी.

आंकड़े बताते हैं 2012 तक, 149 सचिव स्तर के अधिकारियों में कोई अनुसूचित जाति से नहीं था. अनुसूचित जनजाति से सिर्फ 4 लोग थे .

टीना डाबी , UPSC टॅापर. (फोटो: फेसबुक)

कई कारकों के आकलन की जरूरत

सबसे पहले, कितनी पीढ़ियों के बाद हमें आरक्षित कोटा की जरुरत नहीं होगी? दूसरा, कोई कैसे तय कर सकता है कि “इसे आरक्षण की जरूरत है”? कई समूह आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, लेकिन “आरक्षित” आबादी के बाड़े से बाहर हैं.

इसी तरह, कई पिछड़े लोग, जो आरक्षण का लाभ लेते हैं असल में आर्थिक रूप से बेहतर हैं. डाबी के लिए की गई सारी आलोचना से ये साफ हुआ कि आरक्षण की “जरूरत” पर विचार करना होगा, बजाय आर्थिक रूप से अच्छे परिवार से संबंधित होने की वजह से किसी को कोसा जाए.

आरक्षण पर बहस तेज

टीना रैंक वन धारक है या नहीं क्या इस बारे में चिंता करने की परवाह है? शायद नहीं.

अगर आप ये सोचते हैं कि आरक्षण सिर्फ भारत में ही है तो आप गलत हैं. ऐतिहासिक रूप से पिछड़े समूह के सदस्यों के पक्ष में नीति बनाना, आइवी लीग के स्कूलों में भी प्रचलित है.

यह एक राजनीतिक मसला तब बना जब एशियाई अमेरिकी संगठनों ने आरोप लगाते हुए कहा कि येल विश्वविद्यालय सहित स्कूलों में ‘रेशियल बैलेंस’ के नाम पर रेशियल कोटा की क्या जरुरत है? पिछले साल, प्रिंसटन शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि अफ्रीकी अमेरिकियों को 230 ‘बोनस’ अंक और हिस्पैनिक्स को एडमिशन के लिए 185 अंक चाहिए.

हालांकि, टीना को किसी भी ‘बोनस’ की मदद नहीं मिली. (मुद्दे पर वापस लौटते हैं) उसके “दलित” होने पर हुई चर्चा ने हमें सामूहिक चिंतन के लिए मजबूर कर दिया कि जाति भारत में अभी भी क्यों, और कितना, मायने रखती है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT