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केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि दुनिया आर्थिक विकास के साम्यवाद, समाजवाद और पूंजीवाद के मॉडल से सारी मुश्किलों का समाधान खोज लेना चाहती हैं. लेकिन, हम मानते हैं कि इन तीनों में ही कुछ न कुछ कमियां हैं. इसीलिए हमारा मानना है कि दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन में ही दुनिया का सारी समस्याओं का समाधान है.
अब दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन की गहराइयों में जाने के बजाय सिर्फ इतना समझते हैं कि एकात्म मानव दर्शन में व्यक्ति, परिवार, घर, समाज, राष्ट्र सबको एक-दूसरे से जुड़ा कहा गया है. इसी वजह से इनमें संघर्ष के बजाय एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी के तौर पर एक-दूसरे का विकास करने की बात कही गई है.
लेकिन देश के संघ/मोदी/बीजेपी विरोधी बुद्धिजीवी और राजनीतिक दल न तो दीनदयाल उपाध्याय को महत्व देते हैं, न ही उनके एकात्म मानव दर्शन को. इसीलिए आप किसी से भी पूछिए, तो यही पता चलेगा कि भारतीय जनता पार्टी दक्षिणपंथी, पूंजीवादी पार्टी है और नरेंद्र मोदी पूंजीवादी नेता.
क्या यही वजह तो नहीं है कि विपक्ष और संघ/मोदी/बीजेपी विरोधी बुद्धिजीवी रणनीति बनाते हैं और लगातार फेल हो रहे हैं.
लेकिन यहीं पर गलती हो जाती है. नोटबंदी के फैसले के बाद एक इंटरव्यू में केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा था कि नरेंद्र मोदी मार्क्सवादियों से ज्यादा मार्क्सवादी हैं. नोटबंदी को उन्होंने इसका बड़ा उदाहरण बताया था. मुक्त बाजार के समर्थक और पूंजावीद के समर्थक विचारकों के लिए नरेंद्र मोदी का ये फैसला चौंकाने वाला था. किसी पूंजीवादी सरकार में ऐसा फैसला कोई नेता लेगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. कम से कम वो फैसला ग्रोथ पर चोट करेगा, ऐसा तो लगता ही था.
उत्तर प्रदेश के चुनावों में जब विचारकों और राजनीतिक पंडितों को लग रहा था कि नोटबंदी से बीजेपी को जबरदस्त नुकसान होगा, उसी समय नरेंद्र मोदी की सरकार चुपचाप एक बेहद समाजवादी फैसला अमल में ला रही थी. हर गरीब के गांव तक बिजली का खंभा लग रहा था. कुछ गांवों में उसकी रोशनी भी दिखने लगी थी.
लगे हाथ मोदी सरकार ऐसे लोगों को चमकता हुआ लाल रंग का एलपीजी सिलेंडर और सफेद चमकता गैस चूल्हा दे रही थी, जिनके परिवार के बच्चे-बड़े लकड़ी, कंडी, उपला और सूखा गोबर बटोरने में ही जीवन खपा दे रहे थे.
उत्तर प्रदेश की उस समय की सरकार की हर योजना में समाजवादी नाम के साथ लैपटॉप बांटने, एंबुलेंस और बसों को समाजवादी रंग में रंगने वाले अखिलेश यादव को अंदाजा ही नहीं लग रहा था कि जिस नरेंद्र मोदी से लड़ रहे हैं, वे उत्तर प्रदेश में अलग तरह के समाजवाद वाली योजनाओं को धरती पर उतार रहे थे.
दरअसल मोदी सरकार ने आने के साथ ही जिस तेजी से सब्सिडी लगातार खत्म करना शुरू किया, उससे नरेंद्र मोदी के घोर पूंजीवादी नेता होने की बात और पुख्ता होती दिखी.
सरकार को भी हजारों करोड़ का फायदा हो गया और उस अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी. अब 'सौभाग्य योजना' उसी आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति को मुख्य धारा में लाने की कोशिश है.
वामपंथी अकसर ये कहकर दक्षिणपंथियों का मजाक उड़ाते हैं कि दक्षिणपंथी या संघ पढ़ते-लिखते नहीं हैं. लेकिन वामपंथियों की असली दिक्कत ये हो गई है कि वे अपने लोगों का लिखा छोड़ कुछ नहीं पढ़ते. साथ ही दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन तो उनके लिए किसी दर्शन की श्रेणी में ही नहीं आता.
लेकिन यही दर्शन है, जिसे लागू करके नरेंद्र मोदी हर बार विरोधियों के हर पैंतरे को उन्हीं के पैर में फंसाकर पटक देते रहे हैं. कुल मिलाकर ‘पूंजीवादी मोदी’ से लड़ने में लगा विपक्ष अब तक ‘समाजवादी मोदी’ से हारता रहा है.
(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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Published: 11 Oct 2017,08:12 AM IST