मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019पाकिस्तान की सरकार भयानक बाढ़ पर अपने लोगों से भयानक झूठ बोल रही है

पाकिस्तान की सरकार भयानक बाढ़ पर अपने लोगों से भयानक झूठ बोल रही है

Pakistan में 12 साल पहले भी भयानक बाढ़ आई थी लेकिन सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा

डॉ. असिम यूसुफजई
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>बाढ़ के कारण&nbsp;पाकिस्तान सरकार ने&nbsp;26 अगस्त को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की </p></div>
i

बाढ़ के कारण पाकिस्तान सरकार ने 26 अगस्त को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की

फोटो : ट्विटर / @KhaledBeydoun

advertisement

एक ओर पाकिस्तान पहले से ही अपने राजनीतिक तूफान का सामना कर रहा है वहीं दूसरी ओर आधिकारिक सरकारी आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में हाल ही में आई बड़ी बाढ़ में 1300 से अधिक लोग मारे गए हैं. बारिश और बाढ़ से 10 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है. पाकिस्तानी बाढ़ बुनियादी ढांचे की विफलता और खराब शासन का एक आदर्श परिणाम है.

अप्रैल, मई और जून में मासिक तापमान सामान्य से काफी ज्यादा रहने की वजह से शुष्क हवाएं ऊपर की ओर उठीं, जिसके कारण हिंद महासागर से नमी से भरी हवा से एक विशाल वैक्यूम निकल गया, जिसके परिणामस्वरूप देश में बारिश का एक झरना गिर गया. जलवायु में होने वाली उथल-पुथल पूरी दुनिया पर कहर बरपा रही है, आज जो धरातल पर दिखाई दे रहा है, वह ग्लेशियरों के पिघलने से हुई मूसलाधार बारिश का प्रत्यक्ष परिणाम है.

चीन एक असाधारण गर्मी का सामना कर रहा है जिसकी वजह से नदियां और झीलें सूख गई हैं, वहीं यूरोप 500 वर्षों में अपने सबसे खराब सूखे से जूझ रहा है. मिसिसिपी के जैक्सन शहर के मेयर ने वहां के निवासियों से शहर को खाली करने का आग्रह किया है, क्योंकि बाढ़ का खतरा है. जेट धाराओं में बदलाव, अफ्रीका से गर्म हवाओं, अटलांटिक महासागर के गर्म होने से समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि और आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ते तापमान के कारण वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन होता है. जल संसाधनों में कमी, जंगल की आग और हीट वेव सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन के कारण होती हैं, हमें इस पर काफी नजदीक से ध्यान देने की जरूरत है.

सबसे जल्दी चपेट में आने वाले टॉप 10 देशों में पाकिस्तान  

पाकिस्तान उन टॉप 10 देशों में से एक है जो जलवायु परिवर्तन के लिए अतिसंवेदनशील है. यह जल्द ही जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं के चपेट में आ जाता है. इसके बावजूद भी इस मुल्क ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए खुद को तैयार करने के लिए बहुत कम काम किया है. महज 12 साल पहले ही पाकिस्तानियों ने इस त्रासदी को देखा है. इंडस (सिंधु) सिस्टम पर बाढ़ नियमित तौर पर आती रहती है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने 2010 की रिकॉर्ड बाढ़ के बाद बहुत कम तैयारी की है. उस बाढ़ में हजारों लोग मारे गए थे और लाखों लोग विस्थापित हुए थे.

पाकिस्तान के जलवायु परिवर्तन मंत्री शेरी रहमान ने हालिया बाढ़ को "जल प्रलय और अभूतपूर्व" बताया है. इसमें कोई संदेह नहीं कि ये बाढ़ बड़े पैमाने पर थी, लेकिन ये न तो अति भयंकर थी न ही अभूतपूर्व. पाकिस्तान में आई हालिया विनाशकारी बाढ़ और सरकार तथा सिविल सोसायटी द्वारा अल्प राहत प्रतिक्रिया ने आपदा प्रबंधन के प्रति देश की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है.

पाकिस्तान को जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट के प्रतिकूल प्रभावों के कारण 24 बिलियन यूएस डालर का सालाना नुकसान होता है. ये बात जाहिर है कि पाकिस्तान सैन्य बजट पर काफी खर्च करता है लेकिन जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए स्थानीय रणनीति तैयार करने पर उस राशि का एक अंश खर्च करने से पाकिस्तान जैसे विकासशील देश को बहुत बड़ा लाभ प्राप्त हो सकता है. हम देख ही रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण पाकिस्तान को कई तरह के पर्यावरणीय खतरों का सामना करना पड़ रहा है.

21वीं सदी में दुनिया जिस होलोसीन या अभिनव जलवायु परिवर्तन का अनुभव कर रही है, उसकी कई अभिव्यक्तियों में से एक हीटवेव भी है; पिछले 15 में से 14 वर्ष इतिहास में सबसे गर्म रिकॉर्ड किए गए हैं. हिंद महासागर की समुद्री सतह का तापमान दुनिया के बाकी महासागरों की तुलना में कहीं अधिक तेज गति से बढ़ रहा है, जिससे मानसून पैटर्न बदल रहा है.

खारे पानी का भी सामना करेगा पाकिस्तान

इससे खारे पानी की घुसपैठ नामक एक और जियोलॉजिक (भूगर्भिक) खतरा पैदा होगा. इस परिदृश्य में समुद्र का खारा पानी धीरे-धीरे सिंध और बलूचिस्तान तट के किनारे मीठे पानी के जलाशय (चट्‌टान के नीचे के स्रोत) की जगह लेगा, जिसका प्रभाव पेयजल आपूर्ति और मैंग्रोव आवासों पर पड़ेगा. पूरे मुल्क में भूजल स्तर में कमी देखी गई है क्योंकि किसी जलाशय में पुनर्भरण और रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं है.

पाकिस्तान में 7000 से अधिक ग्लेशियर हैं, इससे कोई भी बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. बता दें कि अट्टाबाद झील की घटना ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) से शुरू हुई थी. बाढ़, सूखा और मरुस्थलीकरण की वजह से पहले से ही पूरे मुल्क में गरीब किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. अधिक आबादी, वनों की कटाई और बेतरतीब शहरीकरण के कारण पाकिस्तान ने पिछले तीन दशकों में पेड़ों के सबसे बड़े नुकसान का अनुभव किया है.

पाकिस्तान का केवल 1.9% क्षेत्र वनों से आच्छादित है जबकि भारत में 23.8% है. पाकिस्तान में पौधरोपण के अभियानों ने कोई ठोस परिणाम नहीं दिया है क्योंकि वे मुख्य रूप ऑब्जेक्ट के बजाय स्टाइल पर केंद्रित हैं. क्रोनिक एयर और पानी से होने वाली बीमारियां बढ़ रही हैं, अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण ये विशेष तौर पर देश के ग्रामीण हिस्सों में जल्द ही स्थानिक या महामारी बन सकती हैं. पाकिस्तान से डायरिया, त्वचा में संक्रमण और अन्य पानी से पैदा होने वाली बीमारियां व्यापक तौर पर सामने आ रही हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

2010 की बाढ़ से नहीं सीखा कोई सबक

2010 में उत्तरी पाकिस्तान ने भीषण बाढ़ का सामना किया था, यह पाकिस्तान के इतिहास में दर्ज सबसे खराब प्राकृतिक आपदा थी, जेनेवा स्थित विश्व मौसम विज्ञान संगठन के वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें कोई संदेह नहीं है कि उच्च समुद्र की सतह के तापमान ने आपदा में योगदान दिया है. तब से सिंधु नदी के बेसिन में ताजे स्नोपैक, ग्लेशियरों के पिघलने और अभूतपूर्व मानसूनी बारिश के कारण हर साल पाकिस्तान को बाढ़ का सामना करना पड़ा है. अकेले यह तथ्य इस बात पर जोर देते हुए मांग करता है कि सिंधु और काबुल की नदियों पर छोटे और मध्यम बांधों का निर्माण करके एक प्रभावी बाढ़ नियंत्रण प्रणाली तैयार की जाए, इससे देश में बिजली की कमी को कम करने में भी मदद मिलेगी.

आम जनता इस बात से अच्छी तरह परिचित है कि जलवायु परिवर्तन से उसके समुदाय को क्या खतरे हो सकते हैं, लेकिन सरकार के दृष्टिकोण में भारी बदलाव की जरूरत है. हाल ही में भयानक हीटवेव ने मुल्क के दक्षिणी हिस्सों में एक सप्ताह से भी कम समय में 1200 से अधिक लोगों की जान ले ली. अक्टूबर 2014 में जब नीलोफर नामक चौथे श्रेणी का उष्णकटिबंधीय चक्रवात हिंद महासागर में विकसित हो रहा था तब यह स्पष्ट तौर पर कराची तट रेखा की ओर बढ़ रहा था.

लॉन्च के ठीक बाद राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन नीति रोक दी गई 

जब एक महिला सांसद ने सिंध विधानसभा अध्यक्ष आगा सिराज दुर्रानी का ध्यान आसन्न खतरे की ओर आकृष्ट किया तब उन्होंने असेंबली फ्लोर में कहा पर कहा कि संत अब्दुल्ला शाह गाजी का मकबरा कराची को चक्रवात नीलोफर से बचाएगा. उन्होंने उन लोगों को सिंध के अंदरूनी हिस्सों में जाने का भी सुझाव दिया जो "चक्रवात से डरे हुए थे." जाहिर तौर पर कोई अलर्ट नहीं दिया गया और सरकार द्वारा कोई संसाधन नहीं जुटाए गए. अगर नीलोफर कराची तट पर लैंडफॉल बनाता तो इससे होने वाले जान-माल के नुकसान की कल्पना करना मुश्किल होता. यहां जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नीतियों का कोई सिलसिला एक सरकार से दूसरी सरकार तक नहीं है.

महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन नीति को मार्च 2013 में लॉन्च किया गया था, लेकिन लॉन्च के ठीक बाद इसे स्थगित कर दिया गया था. पाकिस्तान में जलवायु मंत्रालय के लिए कोई बजट आवंटन नहीं है, यह उसी बिल्डिंग में है जहां 2012 में था. इस मंत्रालय का एकमात्र काम जलवायु परिवर्तन रणनीतियों का समन्वय करना और स्टेकहोल्डर्स को सुविधा प्रदान करना है. पाकिस्तानी बाढ़ बुनियादी ढांचे की विफलता और खराब शासन का एक आदर्श परिणाम है. 2010 की भयावह बाढ़ के बाद भी बाढ़ को लेकर कोई अनुकूल रणनीति नहीं थी. अभी भी प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स नदी के किनारे बनाए जा रहे हैं. अगर आप प्राकृतिक चीजों का मार्ग अवरुद्ध करते हैं तो पानी गुरुत्वाकर्षण से खुद के बहने का रास्ता खोज लेगा.

पाकिस्तान अभी भी सतह पर हाथ-पैर मार रहा है

बाढ़ की वजह से पाकिस्तान को पावर लाइन का भारी नुकसान हुआ है, इससे कोई भी रास्ता नहीं बचता है कि पाकिस्तान बड़े जलाशयों से अपने घटते जल विद्युत उत्पादन पर निर्भर रह सके, यहां पहले से ही गाद भरी हुई है. पाकिस्तान के पास अपनी चिरकालीन ऊर्जा की कमी को दूर करने का एकमात्र विकल्प वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत है. जल असीमित संसाधन नहीं है; मीठे पानी के जलस्रोत गंभीर दबाव में हैं, अगले सात वर्षों में पाकिस्तान पानी की कमी वाला देश बन जाएगा. जलवायु परिवर्तन रूपी राक्षस से निपटने में अनुकूलन और शमन से जुड़े दीर्घकालिक स्थायी समाधान मदद कर सकते हैं.

जलवायु परिवर्तन से लड़ाई लंबी चलेगी, इसकी राह काफी कठिन होगी. जलवायु परिवर्तन को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाने के लिए सरकार को सलाह दी जाएगी

सेमिनार और कॉन्फ्रेंस का आयोजन करके सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग जलवायु परिवर्तन से लड़ रहे हैं, यह एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन यह केवल इस विकराल समस्या पर सतही काम करने जैसा है. इससे जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में केवल खरोंच मारी जा सकती है.

( डॉ. असिम यूसुफजई, वाशिंगटन, डीसी में रहते हैं. यूसुफजई जियो-साइंस प्रोफेशनल हैं और नियमित रूप से तकनीकी और भू-रणनीतिक मुद्दों पर लिखते हैं. “Afghanistan: From Cold War to Gold War” नामक पुस्तक के लेखक है. इन्हें @asimusafzai पर फॉलो किया जा सकता है. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT